भक्ति सम्प्रदाय MCQ Quiz - Objective Question with Answer for भक्ति सम्प्रदाय - Download Free PDF
Last updated on Jun 11, 2025
Latest भक्ति सम्प्रदाय MCQ Objective Questions
भक्ति सम्प्रदाय Question 1:
भक्ति आंदोलन को इनमें से किस विद्वान ने 'इस्लामी आक्रमण की प्रतिक्रिया' कहा है?
Answer (Detailed Solution Below)
भक्ति सम्प्रदाय Question 1 Detailed Solution
भक्ति आंदोलन को रामचंद्र शुक्ल विद्वान ने 'इस्लामी आक्रमण की प्रतिक्रिया' कहा है
Key Points आचर्य रामचंद्र शुक्ल-
- जन्म- 1884 - 1941 ई.
- आलोचनात्मक कृतियां-
- गोस्वामी तुलसीदास (1923 ई.)
- जायसी ग्रंथावली (1924 ई.)
- भ्रमरगीत सार (1925 ई.)
- हिंदी साहित्य का इतिहास (1929 ई.)
- काव्य में रहस्यवाद (1929 ई.)
- कविता क्या है?
Important Pointsभक्ति आंदोलन-
- मध्यकालीन भारत के सांस्कृतिक इतिहास में भक्ति आन्दोलन एक महत्वपूर्ण पड़ाव था।
- इस काल में सामाजिक-धार्मिक सुधारकों द्वारा समाज में विभिन्न तरह से भगवान की भक्ति का प्रचार-प्रसार किया गया।
- भक्ति आंदोलन सबसे पहले रामानुज द्वारा आयोजित किया गया था।
- सातवीं शताब्दी से दक्षिण भारत में धर्म के पुनरुत्थान के रूप में भक्ति आंदोलन की शुरुआत हुई।
- चैतन्य महाप्रभु भक्ति आंदोलन के सबसे बड़े संत थे।
- भक्ति आंदोलन के द्वारा ही सिख धर्म का उद्भव हुआ है।
Additional Informationविश्वनाथ प्रसाद मिश्र-
- जन्म-1906-1982 ई.
- भारत के महान् क्रांतिकारियों में से एक चन्द्रशेखर आज़ाद के घनिष्ट मित्र थे।
- ये प्रख्यात साहित्यिक संस्था ‘प्रसाद परिषद’ के सभापति रहे थे।
- रचनाएँ-
- हिन्दी साहित्य का अतीत
- हिन्दी का सामायिक इतिहास
- हिन्दी नाट्य साहित्य का विकास
- बिहारी की वाग्विभूति
- कामांग कौमुदी आदि।
महावीर प्रसाद द्विवेदी -
- जन्म- 1864 - 1938 ई.
- हिंदी साहित्य का दूसरा युग 'द्विवेदी युग' (1900–1920) के नाम से जाना जाता है।
- उन्होंने सत्रह वर्ष तक हिन्दी की प्रसिद्ध पत्रिका सरस्वती का सम्पादन किया।
- हिन्दी नवजागरण में उनकी महान भूमिका रही।
- यह द्विवेदी युग के प्रमुख आलोचक थे।
- मुख्य काव्य रचनाएँ-
- काव्य मंजूषा
- सुमन(1923ई.)
- देवी स्तुति शतक आदि।
- आलोचना ग्रंथ -
- नैषधीयचरित चर्चा
- हिंदी कालिदास की समालोचना
- कालिदास की निरंकुशता
- आलोचनांजलि
- समालोचना समुच्चय
- साहित्यालाप
हजारी प्रसाद द्विवेदी-
- जन्म- 1907 - 1979 ई.
- आलोचना ग्रंथ -
- सूर साहित्य (1930)
- हिंदी साहित्य की भूमिका (1940)
- कबीर (1942)
- हिंदी साहित्य का आदिकाल(1952)
- सहज साधना (1963)
- कालिदास की लालित्य योजना (1965)
- मध्यकालीन बोध का स्वरूप (1970) आदि।
भक्ति सम्प्रदाय Question 2:
द्वैताद्वैतवाद के प्रवर्तक कौन हैं?
Answer (Detailed Solution Below)
भक्ति सम्प्रदाय Question 2 Detailed Solution
द्वैताद्वैतवाद के प्रवर्तक है- निम्बार्क
Key Pointsविभिन्न दर्शन इस प्रकार है-
दर्शन | प्रवर्तक | सम्प्रदाय |
विशिष्टाद्वैतवाद | रामानुजाचार्य | श्री सम्प्रदाय |
द्वैतवाद | मध्वाचार्य | ब्रह्म संप्रदाय |
अद्वैतवाद | शंकराचार्य | स्मार्त सम्प्रदाय |
शुद्धाद्वैतवाद | विष्णु स्वामी | रूद्र सम्प्रदाय |
द्वैताद्वैतवाद | निम्बर्काचार्य | सनकादि संप्रदाय |
शुद्धाद्वैतवाद | बल्लभाचार्य | रूद्र संप्रदाय |
Important Points
विशिष्टाद्वैतवाद-
- इसके अनुसार यद्यपि जगत् और जीवात्मा दोनों कार्यतः ब्रह्म से भिन्न हैं फिर भी वे ब्रह्म से ही उदभूत हैं और ब्रह्म से उसका उसी प्रकार का संबंध है जैसा कि किरणों का सूर्य से है, अतः ब्रह्म एक होने पर भी अनेक हैं।
द्वैतवाद-
- इस दर्शन के अनुसार प्रकृति, जीव तथा परमात्मा तीनों का अस्तित्त्व मान्य है।
- द्वैतवादियों का मानना है कि विश्व में तीन चीजों का अस्तित्व है : ईश्वर, प्रकृति तथा जीवात्मा।
- ईश्वर, प्रकृति तथा जीवात्मा तीनों ही नित्य हैं परन्तु प्रकृति और जीवात्मा में परिवर्तन होते रहते हैं जबकि ईश्वर में कोई परिवर्तन नहीं होता अर्थात् वो शाश्वत है।
- द्वैतवादी मानते हैं कि ईश्वर सगुण है अर्थात् उसमे गुण विद्यमान हैं, जैसे दयालुता, न्याय, शक्ति इत्यादि|
शुद्धाद्वैतवाद-
- यह एक वैष्णव सम्प्रदाय है जो श्रीकृष्ण की पूजा अर्चना करता है।
- शुद्धाद्वैत मत में माया सम्बन्धरहित नितान्त शुद्ध ब्रह्म को जगत् का कारण माना जाता है।
- इनके मार्ग को पुष्टि मार्ग कहा जाता है|
- बल्लभाचार्य विष्णु स्वामी के शिष्य थे|उनके बाद इन्होंने ही इस मार्ग को आगे बढ़ाया|
द्वैताद्वैतवाद-
- इस सम्प्रदाय को हंस सम्प्रदाय, कुमार सम्प्रदाय और निम्बार्क सम्प्र्दक भी कहा जाता है|
- उनके दर्शन को भेदाभेदवाद (भेद+अभेद वाद) भी कहते हैं। ईश्वर, जीव व जगत् के मध्य भेदाभेद सिद्ध करते हुए द्वैत व अद्वैत दोनों की समान रूप से प्रतिष्ठा करना ही निम्बार्क दर्शन (द्वैताद्वैत) की प्रमुख विशेषता है|
अद्वैतवाद-
- भारत के सनातन दर्शन वेदांत के सबसे प्रभावशाली मतों में से एक है।
- इसके अनुयायी मानते हैं कि उपनिषदों में इसके सिद्धांतों की पूरी अभिव्यक्ति है और यह वेदांत सूत्रों के द्वारा व्यस्थित है।
- उन्होंने तर्क दिया कि 'द्वैत' है ही नहीं; मस्तिष्क जागृत अवस्था या स्वप्न में माया में ही विचरण करता है; और सिर्फ 'अद्वैत' ही परम सत्य है।
- शंकर ने तर्क दिया कि उपनिषद ब्रह्म (परम तत्त्व) की प्रकृति की शिक्षा देते है और सिर्फ अद्वैत ब्रह्म ही परम सत्य है|
भक्ति सम्प्रदाय Question 3:
वल्लभाचार्य द्वारा प्रतिपादित पुष्टिमार्ग में 'पुष्टि' शब्द से क्या आशय है?
Answer (Detailed Solution Below)
भक्ति सम्प्रदाय Question 3 Detailed Solution
वल्लभाचार्य द्वारा प्रतिपादित पुष्टिमार्ग में 'पुष्टि' शब्द से आशय है- अनुग्रह
Key Pointsवल्लभाचार्य
- जन्म - 27 अप्रैल 1479 ई.
- म्रत्यु - 26 जून 1531ई.
- रचनाएँ -
- यमुनाष्टक
- बालबोध
- सिद्धान्त मुक्तावली
- पुष्टिप्रवाहमर्यादाभेद
- सिद्धान्तरहस्य
- नवरत्नस्तोत्र
- अन्तःकरणप्रबोध
- सम्मान - महाप्रभु वल्लभाचार्य के सम्मान में भारत सरकार ने सन 1977 में एक रुपये मूल्य का एक डाक टिकट जारी किया था।
Important Pointsपुष्टिमार्ग -
- पुष्टि मार्ग भक्ति का वह मार्ग है जिसमें भक्त साधन निरपेक्ष हो,
- उसमें भक्ति भगवान् के अनुग्रह से स्वतः उत्पन्न हो और जिसमें भगवान् दयालु होकर स्वतः जीव पर दया करें, वह पुष्टि मार्ग या पुष्टि भक्ति कहलाती है।
- भगवान् वल्लभाचार्य के अनुसार भगवान् श्री कृष्ण के अनुग्रह को पुष्टि कहा गया है।
- पुष्टिमार्ग की स्थापना 16 वीं शताब्दी की शुरुआत में वल्लभाचार्य (1479-1531) द्वारा की गई थी और यह कृष्ण पर केंद्रित है।
- पुष्टि मार्ग में भक्ति की भी तीन प्रकार की अवधारणाएँ हैं-
- प्रवाह पुष्टि भक्ति
- मर्यादा पुष्टि भक्ति
- शुद्ध पुष्टि भक्ति
- ‘प्रवाह पुष्टि भक्ति’ के अन्तर्गत जन्म मरण के चक्र में बँधा भक्त ईश्वर का स्मरण करता हुआ क्रमिक मोक्ष प्राप्त करता है।
- ‘मर्यादा पुष्टि भक्ति’ के अन्तर्गत भक्त शास्त्रों से ब्रह्म ज्ञान प्राप्त करने के बाद भगवान की ओर उन्मुख होता है और मोक्ष की ओर बढ़ता है।
- ‘शुद्ध पुष्टि भक्ति’ में भक्त स्वयं को पूर्णतया भगवान की शरण में समर्पित कर देता है।
- सूरदास को पुष्टिमार्ग का जहाज कहा जाता है।
भक्ति सम्प्रदाय Question 4:
वल्लभाचार्य के विषय में कौन सा कथन सही नहीं है ?
Answer (Detailed Solution Below)
भक्ति सम्प्रदाय Question 4 Detailed Solution
वल्लभाचार्य के विषय में कथन सही नहीं है - मूलतः इनका संबंध रामानुजाचार्य के श्री संप्रदाय से स्थिर किया जाता है।
Key Pointsश्री सम्प्रदाय-
- अन्य नाम- रामानंदी सम्प्रदाय
- सिद्धांत- विशिष्टाद्वैतवाद
- मुख्य आचार्य-
- रंगनाथ मुनि
- पुण्डरीकाक्ष
- राम मिश्र
- यामुनाजाचार्य
- रामानंद
- राघवानंद
- रामानुजाचार्य आदि।
- इस संप्रदाय में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।
Important Pointsवल्लभाचार्य-
- वल्लभाचार्य भक्ति आंदोलन के प्रमुख समर्थक थे।
- उन्होंने श्रीकृष्ण की भक्ति में अपना जीवन समर्पित कर दिया था और वह शुद्धाद्वैत सिद्धांत के प्रवर्तक थे।
- उनकी रचनाएं अंकुरार्पण, वासुदेव महात्म्य, ज्ञानदीपिका आदि हैं।
Additional Informationशुद्धाद्वैतवाद-
- यह एक वैष्णव सम्प्रदाय है जो श्रीकृष्ण की पूजा अर्चना करता है।
- शुद्धाद्वैत मत में माया सम्बन्धरहित नितान्त शुद्ध ब्रह्म को जगत् का कारण माना जाता है।
- इनके मार्ग को पुष्टि मार्ग कहा जाता है।
- बल्लभाचार्य विष्णु स्वामी के शिष्य थे। उनके बाद इन्होंने ही इस मार्ग को आगे बढ़ाया।
भक्ति सम्प्रदाय Question 5:
किस आचार्य के दार्शनिक सिद्धांत को 'भेदाभेदवाद' के नाम से भी जाना जाता है ?
Answer (Detailed Solution Below)
भक्ति सम्प्रदाय Question 5 Detailed Solution
निंबार्काचार्य आचार्य के दार्शनिक सिद्धांत को 'भेदाभेदवाद' के नाम से भी जाना जाता है।
Key Pointsनिम्बार्काचार्य-
- जन्म- 1250 ई.
- वैष्णव सम्प्रदाय के प्रवर्तक व इसे निम्बार्क संप्रदाय भी कहा जाता है।
- द्वैताद्वैतवाद-
- इस सम्प्रदाय को हंस सम्प्रदाय, कुमार सम्प्रदाय और निम्बार्क सम्प्र्दक भी कहा जाता है।
- उनके दर्शन को भेदाभेदवाद (भेद+अभेद वाद) भी कहते हैं। ईश्वर, जीव व जगत् के मध्य भेदाभेद सिद्ध करते हुए द्वैत व अद्वैत दोनों की समान रूप से प्रतिष्ठा करना ही निम्बार्क दर्शन (द्वैताद्वैत) की प्रमुख विशेषता है।
Important Pointsरामानुजाचार्य-
- इन्हें दक्षिण में 'विष्णु का अवतार' माना जाता है।
- इनके अनुसार-
- ईश्वर और ब्रह्म में कोई भेद नहीं है।
- ईश्वर के सगुण रूप की उपासना की है।
- सत्, चित् और आनंद उसके गुण है।
- आत्मा और जगत ईश्वर के अंश है।
मध्वाचार्य-
- इनका जन्म दक्षिण भारत के बेलिग्राम नामक स्थान पर हुआ था।
- दार्शनिक मत-द्वैतवाद
- तत्ववाद के प्रवर्तक है।
विष्णुस्वामी-
- जन्म-1300 ई.
- सम्प्रदाय-रुद्र सम्प्रदाय
- सिद्धांत-शुद्धाद्वैतवाद
Additional Informationश्री सम्प्रदाय-
- अन्य नाम- रामानंदी सम्प्रदाय
- सिद्धांत- विशिष्टाद्वैतवाद
- मुख्य आचार्य-
- रंगनाथ मुनि
- पुण्डरीकाक्ष
- राम मिश्र
- यामुनाजाचार्य
- रामानंद
- राघवानंद
- रामानुजाचार्य आदि।
- इस संप्रदाय में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।
ब्रह्म संप्रदाय-
- मध्वाचार्य ने अद्वैतवाद का घोर विरोध करते हुए द्वैतवाद की स्थापना की।
- इनके अनुसार जगत सत्य है;ईश्वर और जीव का भेद,जीव का जीव से भेद तथा जड़ का जीव से भेद वास्तविक है।
- सभी जीव हरि के अनुत्तर है।
- विष्णु ही ब्रह्म है।
- वेद का समस्त तात्पर्य विष्णु ही है।
वल्लभ सम्प्रदाय-
- अन्य नाम- रुद्र सम्प्रदाय
- दार्शनिक मत- शुद्धाद्वैतवाद
- प्रवर्तक- विष्णु स्वामी,वल्लभाचार्य
- इस सम्प्रदाय में कृष्ण पूर्णानंद स्वरूप पूर्ण पुरूषोत्तम परब्रह्म हैं।
- इनकी भक्ति पुष्टि मार्ग की है।
- 'पुष्टि' भगवान के आग्रह या कृपा को कहा जाता है।
- अनुयायी-
- कुम्भनदास, सूरदास, परमानंद दास, कृष्णदास, छित स्वामी, नंददास आदि।
निम्बार्क सम्प्रदाय-
- अन्य नाम-सनकादि सम्प्रदाय
- दार्शनिक मत-द्वैताद्वैतवाद
- इस सम्प्रदाय में कृष्ण के वामांग में सुशोभित राधा के स्वकीय रूप का विधान है।
- इस सम्प्रदाय की सबसे बड़ी गद्दी राजस्थान के सलेमाबाद स्थान पर है।
- अनुयायी-
- श्री भट्ट,परशुराम आदि।
Top भक्ति सम्प्रदाय MCQ Objective Questions
गोस्वामी विट्ठलनाथ द्वारा 'अष्टछाप' की स्थापना का वर्ष है
Answer (Detailed Solution Below)
भक्ति सम्प्रदाय Question 6 Detailed Solution
Download Solution PDFउपर्युक्त विकल्पों में से विकल्प 1565 सही है अन्य विकल्प असंगत है।
- गोस्वामी विट्ठलनाथ ने अष्टछाप की स्थापना 1565 में की थी।
- अष्टछाप, महाप्रभु श्री वल्लभाचार्य जी एवं उनके पुत्र श्री विट्ठलनाथ जी द्वारा संस्थापित 8 भक्तिकालीन कवियों का एक समूह था, जिन्होंने अपने विभिन्न पद एवं कीर्तनों के माध्यम से भगवान श्री कृष्ण की विभिन्न लीलाओं का गुणगान किया।
- "चौरासी वैष्णवन की वार्ता" तथा "दो सौ वैष्ण्वन की वार्ता" में इनका जीवनवृत विस्तार से पाया जाता है।
- अष्टछाप के कवि
- वल्लभाचार्य के शिष्य
- कुम्भनदास
- सूरदास
- परमानंद दास
- कृष्णदास
- अन्य चार गोस्वामी बिट्ठलनाथ के शिष्य थे -
- गोविंदस्वामी
- नंददास
- छीतस्वामी
- चतुर्भुजदास
- वल्लभाचार्य के शिष्य
निम्नलिखित में से किसने पुष्टिमार्ग की स्थापना की?
Answer (Detailed Solution Below)
भक्ति सम्प्रदाय Question 7 Detailed Solution
Download Solution PDFवल्लभाचार्य यहाँ सही विकल्प है। पुष्टिमार्ग की स्थापना वल्लभाचार्य ने किया है।
अत: सही विकल्प 2) वल्लभाचार्य ही होगा।
पुष्टिमार्ग का अर्थ - पुष्टि का अर्थ होता है पोषण, वृद्धि। पुष्टि मार्ग एक वैष्णव संप्रदाय है। इसे वल्लभ सम्प्रदाय भी कहते हैं।
पुष्टिमार्ग का जहाज - सूरदास
पुष्टिमार्ग का वाद - शुद्धाद्वेतवाद
रामानन्द का संबंध किस संप्रदाय से था?
Answer (Detailed Solution Below)
भक्ति सम्प्रदाय Question 8 Detailed Solution
Download Solution PDFरामानन्द का संबंध श्री संप्रदाय से था।
- रामानन्द सम्प्रदाय के प्रवर्तक श्री रामानन्दाचार्य का जन्म सम्वत् 1236 में हुआ था।
- रामानन्द के प्रमुख शिष्य-
- अनन्तानन्द ,कबीर, सुखानन्द, सुर सुरानन्द,पद्मावती, नरहर्यानन्द, पीपा,भावानन्द, रैदास, धना, सेन, और सुरसुरी आदि थे।
- क्रांतिकारी कबीर ने रामानंद से निर्गुण राम तथा भक्ति का रहस्य सीखा।
Additional Information
वैष्णव भक्ति के संप्रदाय, आचार्य और दर्शन निम्नलिखित हैं:-
निम्नलिखित दार्शनिक मतों को उनके प्रवर्तक आचार्यों के साथ सुमेलित कीजिए तथा सही कूट का चयन कीजिए :
दार्शनिक मत |
प्रवर्तक आचार्य |
||
a. |
विशिष्टाद्वैतवाद |
1. |
शंकराचार्य |
b. |
शुद्धाद्वैतवाद |
2. |
रामानुजाचार्य |
c. |
अद्वैतवाद |
3. |
निम्बार्काचार्य |
d. |
द्वैताद्वैतवाद |
4. |
बल्लभाचार्य |
Answer (Detailed Solution Below)
भक्ति सम्प्रदाय Question 9 Detailed Solution
Download Solution PDFसही उत्तर है- उपर्युक्त में से कोई नहीं
Key Pointsविभिन्न दर्शन इस प्रकार है-
दर्शन | प्रवर्तक | सम्प्रदाय |
विशिष्टाद्वैतवाद | रामानुजाचार्य | श्री सम्प्रदाय |
द्वैतवाद | मध्वाचार्य | ब्रह्म संप्रदाय |
अद्वैतवाद | शंकराचार्य | स्मार्त सम्प्रदाय |
शुद्धाद्वैतवाद | विष्णु स्वामी | रूद्र सम्प्रदाय |
द्वैताद्वैतवाद | निम्बर्काचार्य | सनकादि संप्रदाय |
शुद्धाद्वैतवाद | बल्लभाचार्य | रूद्र संप्रदाय |
Important Pointsविशिष्टाद्वैतवाद-
- इसके अनुसार यद्यपि जगत् और जीवात्मा दोनों कार्यतः ब्रह्म से भिन्न हैं फिर भी वे ब्रह्म से ही उदभूत हैं और ब्रह्म से उसका उसी प्रकार का संबंध है जैसा कि किरणों का सूर्य से है, अतः ब्रह्म एक होने पर भी अनेक हैं।
द्वैतवाद-
- इस दर्शन के अनुसार प्रकृति, जीव तथा परमात्मा तीनों का अस्तित्त्व मान्य है।
- द्वैतवादियों का मानना है कि विश्व में तीन चीजों का अस्तित्व है : ईश्वर, प्रकृति तथा जीवात्मा।
- ईश्वर, प्रकृति तथा जीवात्मा तीनों ही नित्य हैं परन्तु प्रकृति और जीवात्मा में परिवर्तन होते रहते हैं जबकि ईश्वर में कोई परिवर्तन नहीं होता अर्थात् वो शाश्वत है।
- द्वैतवादी मानते हैं कि ईश्वर सगुण है अर्थात् उसमे गुण विद्यमान हैं, जैसे दयालुता, न्याय, शक्ति इत्यादि|
शुद्धाद्वैतवाद-
- यह एक वैष्णव सम्प्रदाय है जो श्रीकृष्ण की पूजा अर्चना करता है।
- शुद्धाद्वैत मत में माया सम्बन्धरहित नितान्त शुद्ध ब्रह्म को जगत् का कारण माना जाता है।
- इनके मार्ग को पुष्टि मार्ग कहा जाता है|
- बल्लभाचार्य विष्णु स्वामी के शिष्य थे|उनके बाद इन्होंने ही इस मार्ग को आगे बढ़ाया|
द्वैताद्वैतवाद-
- इस सम्प्रदाय को हंस सम्प्रदाय, कुमार सम्प्रदाय और निम्बार्क सम्प्र्दक भी कहा जाता है|
- उनके दर्शन को भेदाभेदवाद (भेद+अभेद वाद) भी कहते हैं। ईश्वर, जीव व जगत् के मध्य भेदाभेद सिद्ध करते हुए द्वैत व अद्वैत दोनों की समान रूप से प्रतिष्ठा करना ही निम्बार्क दर्शन (द्वैताद्वैत) की प्रमुख विशेषता है|
अद्वैतवाद-
- भारत के सनातन दर्शन वेदांत के सबसे प्रभावशाली मतों में से एक है।
- इसके अनुयायी मानते हैं कि उपनिषदों में इसके सिद्धांतों की पूरी अभिव्यक्ति है और यह वेदांत सूत्रों के द्वारा व्यस्थित है।
- उन्होंने तर्क दिया कि 'द्वैत' है ही नहीं; मस्तिष्क जागृत अवस्था या स्वप्न में माया में ही विचरण करता है; और सिर्फ 'अद्वैत' ही परम सत्य है।
- शंकर ने तर्क दिया कि उपनिषद ब्रह्म (परम तत्त्व) की प्रकृति की शिक्षा देते है और सिर्फ अद्वैत ब्रह्म ही परम सत्य है|
गौड़ीय सम्प्रदाय के प्रवर्तक आचार्य थे-
Answer (Detailed Solution Below)
भक्ति सम्प्रदाय Question 10 Detailed Solution
Download Solution PDFगौड़ीय सम्प्रदाय के प्रवर्तक आचार्य चैतन्य महाप्रभु थे। अन्य विकल्प असंगत है ।अतः सही उत्तर विकल्प 3 चैतन्य महाप्रभु होगा ।
Key Points
वल्लभाचार्य |
श्रीवल्लभाचार्यजी भक्तिकालीन सगुणधारा की कृष्णभक्ति शाखा के आधारस्तंभ एवं पुष्टिमार्ग के प्रणेता थे। |
मध्वाचार्य |
मध्वाचार्य भारत में भक्ति आन्दोलन के समय के सबसे महत्वपूर्ण दार्शनिकों में से एक थे। वे पूर्णप्रज्ञ व आनन्दतीर्थ के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। |
चैतन्य महाप्रभु |
चैतन्य महाप्रभु वैष्णव धर्म के भक्ति योग के परम प्रचारक एवं भक्तिकाल के प्रमुख कवियों में से एक हैं। इन्होंने वैष्णवों के गौड़ीय संप्रदाय की आधारशिला रखी, भजन गायकी की एक नयी शैली को जन्म दिया |
स्वामी हरिदास |
स्वामी हरिदास भक्त कवि, शास्त्रीय संगीतकार तथा कृष्णोपासक सखी संप्रदाय के प्रवर्तक थे। इन्हें ललिता सखी का अवतार माना जाता है। वे वैष्णव भक्त थे तथा उच्च कोटि के संगीतज्ञ भी थे। |
“भक्ति आंदोलन इस्लामी आक्रमण से पराजित हिंदू जनता की असहाय एवं निराश मन∶स्थिति का परिणाम था।"
यह कथन किसका है?
Answer (Detailed Solution Below)
भक्ति सम्प्रदाय Question 11 Detailed Solution
Download Solution PDFसही उत्तर 'आचार्य रामचंद्र शुक्ल' है।Key Points
- “भक्ति आंदोलन इस्लामी आक्रमण से पराजित हिंदू जनता की असहाय एवं निराश मन∶स्थिति का परिणाम था।"
यह पंक्ति आचार्य रामचंद्र शुक्ल की है।
- 'हिंदी साहित्य का इतिहास'(1929) में आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा।
- 'हिंदी साहित्य का इतिहास' नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित 'हिंदी शब्द-सागर' की भूमिका के रूप में लिखा गया था।
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल "अपने पौरुष से हताश जाति के लिए भगवान की शक्ति और करुणा की ओर ध्यान ले जाने के अतिरिक्त दूसरा मार्ग ही क्या था।"
Additional Information
रचनाकार | जन्म | रचनाएँ |
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी | 1907ई. | सूर साहित्य(1930),हिंदी साहित्य की भूमिका(1940),कबीर(1941),हिंदी साहित्य का आदिकाल(1952),हिंदी साहित्य का उद्भव और विकास(1952),सहज साधना(1963),कालिदास की लालित्य योजना(1965),मध्यकालीन बोध का स्वरूप(1970)। |
डॉ. रामकुमार वर्मा |
1905ई. |
हिंदी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास। |
डॉ. नगेन्द्र |
1915ई.
|
सुमित्रानंदन पंत(1938),साकेत:एक अध्ययन(1939),आधुनिक हिंदी नाटक(1940),विचार और विवेचन(1944),रीतिकाव्य की भूमिका(1949),देव और उनकी कविता(1949),विचार और अनुभूति(1949),आधुनिक हिंदी कविता की प्रवृत्तियाँ(1951),विचार और विश्लेषण(1955),अरस्तू का काव्यशास्त्र(1957),अनुसंधान और आलोचना(1961),रस सिद्धांत(1964),आलोचक की आस्था(1966)। |
पुष्टिमार्गियों की मान्यताएँ निम्नवत हैं;
A. भगवान के अनुग्रह पर भरोसा करते हैं।
B. स्वर्ग प्राप्ति में विश्वास नहीं रखते।
C. नित्यलीला में प्रवेश का विश्वास बना रहता है।
D. प्रवाह जीव सांसारिक सुखों की प्राप्ति में लगे रहते हैं।
E. विधि - निषेधों का पालन नहीं करते।
नीचे दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर का चयन कीजिए
Answer (Detailed Solution Below)
भक्ति सम्प्रदाय Question 12 Detailed Solution
Download Solution PDFपुष्टिमार्गीय की मान्यताएं - A, C और D
Key Points
पुष्टि का अर्थ –
- स्वयं को भगवान के अनुग्रह पर छोड़ देते हैं।
- पुष्टिमार्गियों की मान्यताएँ निम्नवत हैं।
- भगवान के अनुग्रह पर भरोसा करते हैं।
- नित्यलीला में प्रवेश का विश्वास बना रहता है।
- प्रवाह जीव सांसारिक सुखों की प्राप्ति में लगे रहते हैं।
Important Points
वल्लभ संप्रदाय / पुष्टिमार्ग संप्रदाय –
- प्रवर्तक – वल्लभाचार्या
- दर्शन – शुद्धाद्वैतवाद
- इनके दर्शन शुद्धाद्वैतवाद को पुष्टिमार्ग दर्शन भी कहा जाता है।
- इसमें श्री कृष्ण पूर्णानंद स्वरूप, पूर्ण पुरुषोत्तम, परब्रह्म है।
- श्री कृष्ण का लोक बैकुंठ लोक है।
- इन्होंने जीव की मुक्ति के 3 मार्ग बताएं -
1. प्रवाह मार्ग
2. मर्यादा मार्ग
3. पुष्टीमार्ग
Additional Information
वल्लभाचार्य के ग्रंथ –
- पूर्व मीमांसा भाष्य
- उत्तर मीमांसा भाष्य
- सुबोधिनी टीका
- तत्व दीप निबंध
- उत्तर मीमांसा भाष्य अणु भाष्य या ब्रह्मसूत्र भाषा भी कहते हैं।
- अनु भाष्य को वल्लभाचार्या अधूरा छोड़ दिया जिसके डेढ़ अध्याय को उनके पुत्र विट्ठलनाथ ने पूरे किए।
विशिष्टाद्वैत-सिद्धान्त के प्रवर्तक आचार्य हैं
Answer (Detailed Solution Below)
भक्ति सम्प्रदाय Question 13 Detailed Solution
Download Solution PDFउपर्युक्त विकल्पों में से विकल्प "रामानुजाचार्य" सही है तथा अन्य विकल्प असंगत है।
- विशिष्टाद्वैत
- विशिष्टाद्वैत (विशिष्ट+अद्वैत) आचार्य रामानुज का प्रतिपादित किया हुआ यह दार्शनिक मत है।
- इसके अनुसार यद्यपि जगत् और जीवात्मा दोनों कार्यतः ब्रह्म से भिन्न हैं फिर भी वे ब्रह्म से ही उदभूत हैं और ब्रह्म से उसका उसी प्रकार का संबंध है जैसा कि किरणों का सूर्य से है, अतः ब्रह्म एक होने पर भी अनेक हैं।
- इस सिद्धांत में आदि शंकराचार्य के मायावाद का खंडन है।
- रामानुज ने अपने सिद्धांत में यह स्थापित किया है कि जगत भी ब्रह्म ने ही बनाया है।
- शंकराचार्य
- अद्वैत वेदान्त की एक शाखा है।
- अहं ब्रह्मास्मि अद्वैत वेदांत यह भारत में उपजी हुई कई विचारधाराओं में से एक है।
- जिसके आदि शंकराचार्य पुरस्कर्ता थे।
- कुंभन दास
- अष्ट छाप के प्रसिद्ध कवि हैं।
- यह कृष्ण भक्त हैं।
- वल्लभाचार्य
- वल्लभाचार्य (1479-1531 ई) द्वारा प्रतिपादित दर्शन शुद्धाद्वैत है।
- शुद्धाद्वैत दर्शन, आचार्य शंकर के अद्वैतवाद से भिन्न है।
- शुद्धाद्वैत मत में माया सम्बन्धरहित नितान्त शुद्ध ब्रह्म को जगत् का कारण माना जाता है।
शुद्धाद्वैतसिद्धान्त के समर्थक आचार्य हैं
Answer (Detailed Solution Below)
भक्ति सम्प्रदाय Question 14 Detailed Solution
Download Solution PDFउपर्युक्त विकल्पों में से विकल्प "बल्लभाचार्य" सही है तथा अन्य विकल्प असंगत है।
- शुद्धाद्वैत
- वल्लभाचार्य (1479-1531 ई) द्वारा प्रतिपादित दर्शन है।
- शुद्धाद्वैत दर्शन, आचार्य शंकर के अद्वैतवाद से भिन्न है।
- शुद्धाद्वैत मत में माया सम्बन्धरहित नितान्त शुद्ध ब्रह्म को जगत् का कारण माना जाता है।
- शुद्धाद्वैत में ‘‘ब्रह्मसत्यं जगत्सत्यं अंशोजीवोहि नापरः“ (ब्रह्म सत्य है, जगत सत्य है, जीव ब्रह्म का अंश है) ऐसा कहा गया है।
- वल्लभाचार्य रुद्र संप्रदाय के प्रवर्तक हैं।
- निंबार्काचार्य
- सनकादि संप्रदाय के प्रवर्तक हैं।
- द्वैताद्वैतवाद के समर्थक है।
- मध्वाचार्य
- धर्म संप्रदाय के प्रवर्तक, द्वैतवाद के समर्थक।
- विष्णु स्वामी
- रुद्र संप्रदाय के प्रवर्तक, शुद्धाद्वैतवाद के समर्थक।
'ब्रह्मसम्प्रदाय' के संस्थापक कौन है ?
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भक्ति सम्प्रदाय Question 15 Detailed Solution
Download Solution PDF- 'ब्रह्मसम्प्रदाय' के संस्थापक 'श्री मध्वाचार्य' हैं।
- भक्तिकाल के उपदेशकों में मध्वाचार्य उल्लेखनीय हैं , वेदांत दर्शन के तीन दार्शनिकों में उनका नाम रामानुजाचार्य तथा शंकराचार्य के साथ लिया जाता है।
Key Points
- मध्वाचार्य का दार्शनिक मत द्वैतवाद है , वे तत्त्ववाद के प्रवर्तक थे , जिसे द्वैतवाद के नाम से जाना जाता है।
- वेद का समस्त तात्पर्य विष्णु ही है , मध्वाचार्य का सम्प्रदाए ब्रह्मसम्प्रदाए के नाम से विख्यात है।
Important Points
- जीव और जीव में भी भेद , जीव जगत भी अलग - अलग , अंतिम स्थिति में भी भेद , जगत - सृष्टि शक्ति द्वारा - द्वैतवाद।
Additional Information
- शंकराचार्य - भक्ति आन्दोलन के प्रथम प्रचारक और संत शंकराचार्य थे।
- श्री निम्बार्काचार्य रामानुजाचार्य के समकालीन थे , इनका मानना था कि भक्ति कृपास्वरुप प्राप्त की जा सकती है।
- श्री रामानुजाचार्य श्री सम्प्रदाय परंपरा में आते थे।