काव्य शास्त्र MCQ Quiz - Objective Question with Answer for काव्य शास्त्र - Download Free PDF

Last updated on Jun 27, 2025

Latest काव्य शास्त्र MCQ Objective Questions

काव्य शास्त्र Question 1:

अनुष्टुप् छन्दसि सर्वत्र लघुः कतमो वर्णः भवति?

  1. षष्ठः
  2. सप्तमः
  3. पञ्चमः
  4. उपर्युक्तेषु एकस्मात् अधिकम्
  5. उपर्युक्तेषु कश्चन अपि नास्ति

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : पञ्चमः

काव्य शास्त्र Question 1 Detailed Solution

प्रश्न अनुवाद - अनुष्टुप् छन्द के सभी लघु वर्ण किसमें होते है ?

स्पष्टीकरण -

अनुष्टुप छन्द के प्रत्येक चरण में आठ अक्षर (वर्ण) होते है। अत: चारों चरणों में कुल मिलाकर (8 x 4 - 32) बत्तीस वर्ण होते है।

लक्षण -

“श्लोके षष्ठं गुरुज्ञेयं सर्वत्र लघु पञ्चमम्।
द्विचतुष्पादयोह्रस्वं सप्तमं दीर्घमन्ययोः।।"

अर्थात् जिस छन्द के चारों चरणों (पादों) में छठा अक्षर (वर्ण) ‘गुरु’ हो और पाँचवां वर्ण अक्षर चारों चरणों में ‘लघु' हो, दूसरे और चौथे चरण (पाद) में सप्तम वर्ण (अक्षर) ह्रस्व हो और पहले तथा तीसरे चरण (पाद) में सप्तम वर्ण (अक्षर) दीर्घ (गुरु) हो, यह पद्य का लक्षण है। इसी को अनुष्टुप तथा श्लोक भी कहते है। इसके प्रत्येक चरण में आठ - आठ अक्षर (वर्ण) होते है।

अत: 'पञ्चमः' उचित विकल्प है।

Important Points

अनुष्टुप छन्द में यह नियम विशेष रूप से ध्यान रखने योग्य है -

  • चारों चरणों में पाँचवां वर्ण लघु (ह्रस्व) हो।
  • चारों में चरणों में छठवां’ वर्ण गुरु (दीर्घ) हो।
  • दूसरे और चौथे इन दो चरणों में सातवां वर्ण ह्रस्व (लघु) हो।
  • पहले और तीसरे इन दो चरणों में सातवाँ वर्ण गुरु (दीर्घ) हो।

काव्य शास्त्र Question 2:

सर्वेषु पादेषु पञ्चमाक्षरं लघु कस्मिन् छन्दसि भवति?

  1. वंशस्थे 
  2. मन्दाक्रान्तायां 
  3. अनुष्टुप् छन्दसि 
  4. उपर्युक्तेषु एकस्मात् अधिकम्
  5. उपर्युक्तेषु कश्चन अपि नास्ति

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : अनुष्टुप् छन्दसि 

काव्य शास्त्र Question 2 Detailed Solution

प्रश्नानुवाद - सभी पादों में पाँचवा अक्षर लघु किस छन्द में होता है?

स्पष्टीकरण - एक श्लोक में चार पाद होते हैं। अनुष्टुप् छन्द वह छन्द है, जिसका पाँचवा वर्ण/अक्षर लघु होता है।

छन्द की परिभाषा - पद्ये यत्र अक्षराणां मात्राणां वा प्रतिपादं गणना भवति तत्र छन्दः इत्युच्यते। अर्थात् जहाँ पद्य में अक्षरों और मात्राओं की प्रत्येक पाद में गणना होती है, वह छन्द होता है।

Important Pointsअनुष्टुप् छन्द -

लक्षण -

श्लोकेषष्ठं गुरुज्ञेयं, सर्वत्र लघुपञ्चमम्। 
द्विचतुष्पादयोर्हस्वं सप्तमं दीर्घमन्ययोः।।

अर्थात् अनुष्टुप् छन्द में प्रत्येक चरण में 8 वर्ण होते हैं। जिनमें केवल 5, 6, 7 इन तीनों वर्गों पर ही नियम लगता है। 5वां वर्ण चारों चरणों में लघु तथा 6ठां वर्ण गुरु होता है। सातवां वर्ण द्वितीय तथा चतुर्थ चरणों में हस्व (लघु) तथा अन्य (प्रथम और तृतीय) चरणों में दीर्घ (गुरु) होता है। 

अतः स्पष्ट है कि यहाँ अनुष्टुप् छन्द उचित विकल्प है।

Additional Information

अन्य विकल्प

वंशस्थ -

  • लक्षण - ‘जतौ तु वंशस्थमुदीरितं जरौ'।
  • अर्थात् क्रमशः जगण, तगण, जगण और रगण इन चार गणों को वंशस्थ छन्द कहते हैं।
  • इसमें 12 वर्ण पर अर्थात् चरण के अन्त में यति (विराम) होती है।

मन्दाक्रान्ता 

  • लक्षण -  मन्दाक्रान्ताऽम्बुधिरसनगैर्मो भनौ तौ गयुग्मम्।
  • इसमें क्रमशः 1 मगण , 2 भगण , 1 नगण , 2 तगण दो गुरू होते हैं। 
  • मंदाक्रांता में प्रत्येक पात्र में 17 वर्ण होते हैं।

स्रग्धरा -

  • क्षण - म्रभ्नैर्यानां त्रयेण त्रिमनियतियुता स्रग्धरा कीर्तितेयम। 
  • अर्थात् यहाँ क्रमशः मगण, रगण, भगण, नगण, यगण, यगण, गण इन सात गणों को स्रग्धरा छन्द कहते हैं।
  • इस छन्द में त्रिमुनि (7, 7, 7) वर्णों पर तीन यतियां तथा कुल 21 वर्ण होते हैं।

काव्य शास्त्र Question 3:

मेघदूतकाव्ये प्रयुक्तस्य छन्दसः नाम वर्तते-

  1. स्रग्धरा
  2. भुजंगप्रयातम्
  3. मन्दाक्रान्ता
  4. उपर्युक्तेषु एकस्मात् अधिकम्
  5. उपर्युक्तेषु कश्चन अपि नास्ति

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : मन्दाक्रान्ता

काव्य शास्त्र Question 3 Detailed Solution

प्रश्न अनुवाद - मेघदूतकाव्य में प्रयुक्त छन्द का नाम है -

मेघदूतम् महाकवि कालिदास द्वारा रचित विख्यात दूतकाव्य है। मेघदूतम् काव्य दो खंडों में विभक्त है। पूर्वमेघ में यक्ष बादल को रामगिरि से अलकापुरी तक के रास्ते का विवरण देता है और उत्तरमेघ में यक्ष का यह प्रसिद्ध विरहदग्ध संदेश है जिसमें कालिदास ने प्रेमीहृदय की भावना को उड़ेल दिया है।Important Pointsस्पष्टीकरण - 
महाकवि कालिदास द्वारा मेघदूत की रचना मन्दाक्रान्ता छन्द में की गयी है।

सम्पूर्ण मेघदूत मन्दाक्रान्ता छन्द में लिखा है। इसका कारण यह है कि इसका प्रारम्भ वर्षा ऋतु से होता है और उसमें विशेष रूप से प्रवास का वर्णन है।

अत: 'मन्दाक्रान्ता' उचित विकल्प है। 

Additional Informationमन्दाक्रान्ता छन्द -

लक्षण - मन्दाक्रान्ताऽम्बुधिरसनगैर्मो भनौ तौ गयुग्मम् 
मंदाक्रांता संस्कृत सत्रह वर्णों का एक छंद है, जिसके प्रत्येक चरण में क्रमशः मगण, भगण, नगण और तगण तथा अंत में दो गुरु होते है।

काव्य शास्त्र Question 4:

(1.25) वरुणसूक्ते छन्दः वर्तते-

  1. गायत्री
  2. अनुष्टुप्
  3. उद्गीथः
  4. उपर्युक्तेषु एकस्मात् अधिकम्
  5. उपर्युक्तेषु कश्चन अपि नास्ति

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : गायत्री

काव्य शास्त्र Question 4 Detailed Solution

प्रश्न का हिंदी भाषांतर : वरुणसूक्त में कौन सा छन्द है?
 
वरुणसूक्त
  • ऋग्वेदके प्रथम मण्डल का पचीसवाँ सूक्त वरुणसूक्त कहलाता है। इस सूक्त में शुनःशेप के द्वारा वरुणदेवता की स्तुति की गयी है ।
  • शुनःशेप की कथा वेदों, ब्राह्मणग्रन्थों तथा पुराणों में विस्तार से आयी है।
  • कथासार यह है कि इक्ष्वाकुवंशी राजा हरिश्चन्द्र के कोई सन्तान नहीं थी। उनके गुरु वसिष्ठजी ने बताया कि तुम वरुणदेवता की उपासना करो; राजा ने वैसा ही किया। वरुणदेव प्रसन्न हुए और बोले - राजन् ! तुम यदि अपने पुत्र को मुझे समर्पित करने की प्रतिज्ञा करो तो तुम्हें पुत्र अवश्य होगा।
मुख्य बिंदु
 
  • ऋषि - शुनः शेप
  • देवता - वरुण देवता
  • छन्द - गायत्री
  • सूक्त क्रमाङ्क - १.२५
  • ऋचाओं की संख्या - २१ ऋचाएं

अतः उचित पर्याय 'गायत्री' है।

काव्य शास्त्र Question 5:

अवनिरमरसिन्धुः सार्द्धमस्मद्विधाभिः;

स च कुलपतिराद्यश्छन्दसां यः प्रयोक्ता ।

स च मुनिरनुयातारुन्धतीको वशिष्ठः;

त्वयि वितरतु भद्रं भूयसे मंगलाय।।

श्लोकेऽस्मिन्‌ किं छन्दः

  1. मालिनी
  2. मन्दाक्रान्ता
  3. शिखरिणी
  4. उपर्युक्तेषु एकस्मात् अधिकम्
  5. उपर्युक्तेषु कश्चन अपि नास्ति

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : मालिनी

काव्य शास्त्र Question 5 Detailed Solution

प्रश्न का हिंदी भाषांतर : प्रस्तुत श्लोक में कौन सा छंद है?

संपूर्ण श्लोक :

स च कुलपतिराद्यश्छन्दसां यः प्रयोक्ता।

स च मुनिरनुयातारुन्धतीको वशिष्ठः;

त्वयि वितरतु भद्रं भूयसे मंगलाय।। (उत्तररामचरितम्, ३.४८)

स्पष्टीकरण : 

  • प्रस्तुत श्लोक के प्रत्येक चरण में १५ वर्ण है। यह मालिनी छंद का उदाहरण है।
  • मालिनी छन्द एक सम वर्ण वृत छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में "न न म य य" अर्थात दो 'नगण' एक 'मगण' और दो 'यगण' के क्रम से 15 वर्ण होते हैं।
  • आठवें और सातवें वर्णों पर यति होती है।

 

अतः स्पष्ट है, 'मालिनी' यह इस प्रश्न का सही उत्तर है।

Top काव्य शास्त्र MCQ Objective Questions

यमक अलङ्कार होता है 

  1. सार्थक वर्णसमूहों की पुनरावृत्ति 
  2. अनर्थक वर्णसमूहों की पुनरावृत्ति 
  3. एक सार्थक दूसरा अनर्थक वर्णसमूह की पुनरावृत्ति 
  4. उपर्युक्त सभी प्रकार के वर्णसमूहों की पुनरावृत्ति

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : उपर्युक्त सभी प्रकार के वर्णसमूहों की पुनरावृत्ति

काव्य शास्त्र Question 6 Detailed Solution

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जब कोई वर्ण समूह दो या अधिक बार आये और हर बार अलग अर्थ से आये तब  यमक अलंकार होता है, कभी शब्द के अंश की भी पुनरावृत्ति होती है जिसका स्वतन्त्र रूप से अर्थ नहीं होता वहा भी यमक अलंकार होता है इसलिए 'उपर्युक्त सभी प्रकार के वर्णसमूहों की पुनरावृत्ति' यह उचित पर्याय होगा

लक्षण -
“सत्यर्थे पृथगर्थायाः स्वरव्यञ्जन संहतेः।
क्रमेण तेनैवावृत्तिर्यमकं विनिगद्यते।”

अर्थात् जहाँ अर्थयुक्त भिन्न-भिन्न अर्थों के शब्दों की पूर्वक्रम से आवृत्ति होती है। वहा एक वर्णसमूह का अर्थ दूसरे वर्णसमूह से अलग होगा।

"मन्दं मन्दं नुदति पवनश्चानुकूलो यथा त्वाम्" इत्यत्र छन्दः अस्ति-

  1. मन्दाक्रान्ता
  2. शिखरिणी
  3. शार्दूलविक्रीडितम्
  4. मालिनी

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : मन्दाक्रान्ता

काव्य शास्त्र Question 7 Detailed Solution

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प्रश्न का हिंदी भाषांतर : "मन्दं मन्दं नुदति पवनश्चानुकूलो यथा त्वाम्" यहाँँ कौन सा छंद है?

स्पष्टीकरण : 

प्रस्तुत काव्यपंक्ति महाकवि कालिदास विरचित मेघदूतम् इस खंडकाव्य से संगृहीत है। संपूर्ण मेघदूतम् खंडकाव्य मंदाक्रांता इस छंद में विरचित है। अतः 'मन्दाक्रान्ता' यह इस प्रश्न का सही उत्तर है।

Important Points

मंदाक्रांता छंद का लक्षण - मन्दाक्रान्ताऽम्बुधिरसनगैर्मो भनौ तौ गयुग्मम्।

  • गण - म भ न त त ग ग
  • यति - अम्बुधि (४) , रस(६), नग(७)।
  • अक्षरसंख्या - १७

Additional Information

अन्य उदाहरण - 

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम् ।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥

कालिदास ने 'अभिज्ञान शाकुन्‍तलम्' में कितने प्रकार के छन्‍दों का प्रयोग किया है ?

  1. 15
  2. 18
  3. 20
  4. 24

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : 24

काव्य शास्त्र Question 8 Detailed Solution

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स्पष्टीकरण-

अभिज्ञानशाकुन्‍तलम्

  • अभिज्ञानशाकुन्‍तलम् न केवल भारतवर्ष अपितु विश्व का सर्वोत्तम नाटक रत्न हैI 
  • यह नाटक लोकरत्न महाकवि कालिदास की कृति हैI  
  • इस नाटक में कालिदास की नाट्यकला का चरम परिपाक हैI  
  • अभिज्ञानशाकुन्‍तलम् में श्रृंगार अङ्गी रस है तथा अन्य रसों की भी मार्मिक अभिव्यञ्जना दृष्टिगत होती हैI 
  • विभिन्न प्रकार के छन्दों का प्रयोग करके महाकवि कालिदास ने अपनी कवितावनिता को उत्तम बना दिया हैI  
  • इस नाटक में राजा दुष्यन्त और शकुन्तला के परिणय की कथा है।
  • इस नाटक में 7 अंक है।
छन्द 
  • छन्द - जिस रचना में मात्राओं और वर्णों की विशेष व्यवस्था और संगीतात्मक लय एवं गति की योजना रहती है, उसे 'छन्द' कहते हैं।
  • कालिदास ने विभिन्न स्थलों पर नाटक अनुरूप ही छन्दों का प्रयोग किया हैI  
  • कालिदास ने 24 प्रकार के छन्दों का प्रयोग इस नाटक में किया है, जो निम्नलिखित हैं- 
  1. आर्या
  2. अनुष्टुप्
  3. पथ्यावक्त्र
  4. अपरवक्त्र
  5. गीति
  6. त्रिष्टुप्
  7. शालिनी
  8. रथोद्धता
  9. रुचिरा
  10. इन्द्रवज्रा
  11. उपजाति
  12. पुष्पिताग्रा
  13. सुन्दरी
  14. द्रुतविलम्बित
  15. मालभारिणी
  16. वंशस्थ
  17. मालिनि
  18. प्रहर्षिणी
  19. हरिणी
  20. शिखरिणी
  21. वसन्ततिलका
  22. मन्दाक्रान्ता
  23. शार्दूलविक्रीडित
  24. स्रग्धरा 
  • कालिदास ने सर्वाधिक आर्या छन्द का प्रयोग इस नाटक में किया हैI
  • इस तरह स्पष्ट है कि कालिदास ने इस नाटक में 24 छन्दों का उपयोग किया।

द्रुतविलम्बितछन्दसि गणव्यवस्था विद्यते-

  1. जतौ जरौ 
  2. चतुर्भिर्यकारैः 
  3. तभजाजगौ गः 
  4. नभौ भरौ 

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : नभौ भरौ 

काव्य शास्त्र Question 9 Detailed Solution

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प्रश्न का अनुवाद - द्रुतविलम्बित छन्द में गणव्यवस्था है- 
उत्तर- नभौ भरौ यह द्रुतविलम्बित छन्द में गणव्यवस्था है।

Important Points

लक्षण- द्रुतविलम्बित सोह न भा भ रा

  •  इस छन्द में  12 -12  वर्णो के बाद यति आती  है। नभौ भरौ याने इसमें  एक नगण , दो भगण तथा एक रगण के क्रम में १२ वर्ण होते है। 
  • सम छंद को वृत्त कहते हैं। इसमें चारों चरण समान होते है। और प्रत्येक चरण में आने वाले लघु गुरु मात्राओं का क्रम निश्चित रहता है।
  • जैसे - द्रुतविलंबित, मालिनी वर्णिक मुक्तक : इसमें चारों चरण समान होते हैं और प्रत्येक चरण में वर्णों की संख्या निश्चित होती है।

           अतः स्पष्ट है कि ,नभौ भरौ यह द्रुतविलम्बित छन्द में गणव्यवस्था है।

Additional Information

  • संस्कृत वाङ्मय में सामान्यतः लय को बताने के लिये छन्द शब्द का प्रयोग किया गया है। विशिष्ट अर्थों या गीत में वर्णों की संख्या और स्थान से सम्बंधित नियमों को छ्न्द कहते हैं जिनसे काव्य में लय और रंजकता आती है।

          छंद के निम्नलिखित अंग होते हैं -

  1. गति - पद्य के पाठ में जो बहाव होता है उसे गति कहते हैं।
  2. यति - पद्य पाठ करते समय गति को तोड़कर जो विश्राम दिया जाता है उसे यति कहते हैं।
  3. तुक - समान उच्चारण वाले शब्दों के प्रयोग को तुक कहा जाता है। पद्य प्रायः तुकान्त होते हैं।
  4. मात्रा - वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है उसे मात्रा कहते हैं। मात्रा २ प्रकार की होती है लघु और गुरु।
  5. ह्रस्व उच्चारण वाले वर्णों की मात्रा लघु होती है तथा दीर्घ उच्चारण वाले वर्णों की मात्रा गुरु होती है। लघु मात्रा का मान १ होता है और उसे "।" चिह्न से प्रदर्शित किया जाता है। इसी प्रकार गुरु मात्रा का मान २ होता है और उसे "ऽ" चिह्न से प्रदर्शित किया जाता है।


गण - मात्राओं और वर्णों की संख्या और क्रम की सुविधा के लिये तीन वर्णों के समूह को एक गण मान लिया जाता है।

गणों की संख्या ८ है - यगण (।ऽऽ), मगण (ऽऽऽ), तगण (ऽऽ।), रगण (ऽ।ऽ), जगण (।ऽ।), भगण (ऽ।।), नगण (।।।) और सगण (।।ऽ)।

किरातार्जुनीयस्य प्रथम सर्गस्य अन्तिमं पद्यं केन छन्दसा निबद्धोऽस्ति ?

  1. वंशस्थ-छन्दसा
  2. उपजाति-छन्दसा
  3. आर्या-छन्दसा 
  4. मालिनी-छन्दसा

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : मालिनी-छन्दसा

काव्य शास्त्र Question 10 Detailed Solution

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प्रश्न अनुवाद - किरातार्जुनीयम् के प्रथम सर्ग के अन्तिम पद्य किस छन्द में निबद्ध है ?
स्पष्टीकरण - किरातार्जुनीयम् के प्रथम सर्ग के अन्तिम पद्य मालिनी छन्द में निबद्ध है। 
  • किरातार्जुनीयम् महाकवि भारवि की कृति है।  
  • किरातार्जुनीयम् ग्रन्थ बृहत्रयी के अन्तर्गत है।  
  • किरातार्जुनीयम् ग्रन्थ में 46 श्लोक है।  
  • किरातार्जुनीयम् के प्रथम सर्ग में 1 से 44वें तक के श्लोकों में वंशस्थ छन्द है। 
  • किरातार्जुनीयम् के प्रथम सर्ग के 45वें श्लोक में पुष्पिताग्रा छन्द है। 
  • किरातार्जुनीयम् के प्रथम सर्ग के 46वें श्लोक में मालिनी छन्द है। 

अत: 'मालिनी-छन्दसा' विकल्प सही है।  

Additional Information

मालिनी छन्द -
  • लक्षण - 'ननमयययुतेयं मालिनी भोगिलोकै:'
  • मालिनी छन्द एक सम वर्ण वृत छन्द है। 
  • इसके प्रत्येक चरण में दो नगण, एक मगण और दो यगण के क्रम से 15 वर्ण होते है। 
  • आठवें और सातवें वर्णों पर यति होती है।

"प्रस्फुटं सुन्दरं साम्यं..." 

इत्येतैः विशेषणैः कस्यालंकारस्य लक्षणं ज्ञायते?

  1. उपमा
  2. रूपकम्
  3. उत्प्रेक्षा
  4. व्यतिरेकः

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : उपमा

काव्य शास्त्र Question 11 Detailed Solution

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प्रश्न का हिंदी भाषांतर : "प्रस्फुटं सुन्दरं साम्यं..." इन विशेषणोंं से किस अलंकार के लक्षण का बोध होता है?

स्पष्टीकरण :

प्रश्न में पूँँछी गई पूर्ण पंक्ति इस प्रकार है - 

  • प्रस्फुटं सुन्दरं साम्यमुपमेत्यभिधीयते साम्‍यं वाच्‍यमवैधर्म्‍यं वाक्‍यैक्‍य उपमा द्वयो:।
    • अर्थ - स्पष्ट एवं सुंदर समानता, जहाँँ दो वस्तुओं के परस्पर विधर्मी लक्षणों को छोडकर, एक ही वाक्य में उनकी समानता दिखाई जाती है, तो वह उपमा अलंकार होता है
  • अतः स्पष्ट है, उपमा यह इस प्रश्न का सही उत्तर है।

"सामान्यं वा विशेषो वा तदन्येन समर्थ्यते" इति लक्षणं कस्य अलंकारस्य?

  1. स्वभावोक्तिः
  2. अर्थान्तरन्यासस्यः
  3. दीपकम्
  4. तुल्ययोगिता

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : अर्थान्तरन्यासस्यः

काव्य शास्त्र Question 12 Detailed Solution

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प्रश्न का हिंदी भाषांतर : "सामान्यं वा विशेषो वा तदन्येन समर्थ्यते" यह किस अलंकार का लक्षण है?

स्पष्टीकरण : 

प्रश्न में पूँँछी गई पूरी पंक्ति इस प्रकार है -

  • सामान्यं वा विशेषो वा तदन्येन समर्थ्यते। यत्र सोSर्थान्तरन्यासः साधर्म्येणेेतरेण वा।।
    • अर्थ - जहाँँ सामान्य कथन का विशेष से या विशेष कथन का सामान्य से समर्थन किया जाए, वहांँ अर्थान्तरन्यास अलंकार होता है। 
      • सामान्य कथन- अधिकव्यापी, जो बहुतों पर लागू होता है।
      • विशेष कथन - अल्पव्यापी, जो थोड़े पर ही लागू होता है।
  • अतः स्पष्ट है, 'अर्थान्तरन्यासस्यः' यह इस प्रश्न का सही उत्तर है।

'वागर्थाविव संपृक्तौ वागर्थप्रतिपत्तये। जगतः पितरौ वन्दे पार्वतीपरमेश्वरौ॥' श्लोक में प्रयुक्त अलंकार है 

  1. उपमा 
  2. अनुप्रास 
  3. श्लेष 
  4. यमक

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : उपमा 

काव्य शास्त्र Question 13 Detailed Solution

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श्लोक का अर्थ- मैं वाणी और अर्थ की सिद्धि के निमित्त वाणी और अर्थ के समान एकरूप जगत् के माता पिता पार्वती और शिव को प्रणाम करता हूँ।

स्पष्टीकरण- प्रस्तुत श्लोक में वाणी और अर्थ इनके एकरूपता की तुलना पार्वती और शिव की एकरूपता से की हैं।

जब किसी वस्तु या व्यक्ति की तुलना दुसरे किसी वस्तु या व्यक्ति से की जाती है तब उपमा अलंकार होता है। अतः  इस श्लोक में उपमा अलंकार होता है।

Additional Information

  1. अनुप्रास अलंकार - अनु का अर्थ है 'बार बार' और प्रास का अर्थ है 'वर्ण'। जब किसी वर्ण या वर्णसमूह की बार बार आवर्ती होती है तब वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है। उदा. 'वहन्ति वर्षन्ति नदन्ति भान्ति, ध्यायन्ति नृत्यन्ति समाश्वसन्ति।' इस श्लोक में 'अन्ति' इस शब्द समुह की बार बार आवर्ती हुइ है। अतः यह अनुप्रास अलङ्कार का उदाहरण है।
  2. श्लेष अलंकार - जब एक ही शब्द से अनेक अर्थ निकल रहे हो तब वह श्लेष अलंकार होता है। उदा. 'पृथुकार्तस्‍वरपात्रं भूषितनिःशेषपरिजनं देव। विल्‍सत्‍करेणुगहनं सम्‍प्रति सममावयो: सदनम्।।' इस एक श्लोक मे राज के पक्ष मे और याचक के पक्ष मे अलग अलग अर्थ दिखते है। अतः यहाँ श्लेष अलंकार होता है।
  3. यमक अलंकार - यमक शब्द का अर्थ होता है 'जोड़ी', जब एक ही शब्द बार बार आता है पर अलग अर्थ से तब वहाँ यमक अलंकार होता है। उदा. 'अस्ति यद्यपि सर्वत्र नीरं नीरजराजितम्। रमते न मरालस्य मानसं मानसं विना।' यहाँ 'नीर' तथा 'मानस' इन शब्दोंकी पुनरावृत्ति हुई है अतः यहाँ यमक अलंकार होता है

दृष्टान्त-अलङ्कारे भवति -

  1. उपमानोपमेययोः न्यूनाधिक्यम् 
  2. सादृश्य परिकल्पनम् 
  3. बिम्बप्रतिबिम्बभावम् 
  4. साक्षात् सादृश्यम् 

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : बिम्बप्रतिबिम्बभावम् 

काव्य शास्त्र Question 14 Detailed Solution

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प्रश्न अनुवाद- दृष्टान्त अलंकार है -

स्पष्टीकरण- जहाँ उपमेय और उपमान तथा उनके साधारण धर्मों में बिम्ब प्रतिबिम्ब भाव होता है, वहाँ दृष्टान्त अलंकार होता है। यह एक अर्थालंकार है। जैसे- 

तवाहवे साहसकर्मशर्मण: कर कृपाणान्तिकमानिनीषतः।

मटाः परेपरेषा विशरारुतामग: दधत्यवातेस्थिरतां हि पासवः।।

अर्थात- यहाँ धूल तथा शत्र सैनिकों का और पलायन एवं अस्थिरत्व का प्रतिबिम्ब है। 

अतः स्पष्ट है कि दृष्टान्त अलंकार में बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव होता है। 

"अनुप्रासः शब्दसाम्यं वैषम्येऽपि स्वरस्य यत्" इत्यस्मिन् लक्षणे 'शब्दसाम्यं' पदस्य अभिप्राय अस्ति -

  1. स्वरसाम्यम् 
  2. पदसाम्यम् 
  3. व्यञ्जनसाम्यम् 
  4. स्वरव्यञ्जनसाम्यम् 

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : व्यञ्जनसाम्यम् 

काव्य शास्त्र Question 15 Detailed Solution

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प्रश्न अनुवाद- "अनुप्रासः शब्दसाम्यं वैषम्ये​ऽपि स्वरस्य यत्" इस लक्षण में शब्दसाम्य पद से अभिप्राय है -

स्पष्टीकरण- "अनुप्रासः शब्दसाम्यं वैषम्ये​ऽपि स्वरस्य यत्" अर्थात स्वरों की असमानता होने पर भी व्यंजन मात्र की समानता जहाँ होती हैं, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।

अर्थात् रस के अनुसार वर्णों का प्रकर्षपूर्वक न्यास ही अनुप्रास अलंकार कहलाता है। 

अतः स्पष्ट है कि शब्दसाम्य पद से अभिप्राय व्यंजन साम्य से है।

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