संस्कृत वाङ्गमय MCQ Quiz - Objective Question with Answer for संस्कृत वाङ्गमय - Download Free PDF
Last updated on Jun 27, 2025
Latest संस्कृत वाङ्गमय MCQ Objective Questions
संस्कृत वाङ्गमय Question 1:
अनुष्टुप् छन्दसि सर्वत्र लघुः कतमो वर्णः भवति?
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत वाङ्गमय Question 1 Detailed Solution
प्रश्न अनुवाद - अनुष्टुप् छन्द के सभी लघु वर्ण किसमें होते है ?
स्पष्टीकरण -
अनुष्टुप छन्द के प्रत्येक चरण में आठ अक्षर (वर्ण) होते है। अत: चारों चरणों में कुल मिलाकर (8 x 4 - 32) बत्तीस वर्ण होते है।
लक्षण -
“श्लोके षष्ठं गुरुज्ञेयं सर्वत्र लघु पञ्चमम्।
द्विचतुष्पादयोह्रस्वं सप्तमं दीर्घमन्ययोः।।"
अर्थात् जिस छन्द के चारों चरणों (पादों) में छठा अक्षर (वर्ण) ‘गुरु’ हो और पाँचवां वर्ण अक्षर चारों चरणों में ‘लघु' हो, दूसरे और चौथे चरण (पाद) में सप्तम वर्ण (अक्षर) ह्रस्व हो और पहले तथा तीसरे चरण (पाद) में सप्तम वर्ण (अक्षर) दीर्घ (गुरु) हो, यह पद्य का लक्षण है। इसी को अनुष्टुप तथा श्लोक भी कहते है। इसके प्रत्येक चरण में आठ - आठ अक्षर (वर्ण) होते है।
अत: 'पञ्चमः' उचित विकल्प है।
Important Points
अनुष्टुप छन्द में यह नियम विशेष रूप से ध्यान रखने योग्य है -
- चारों चरणों में पाँचवां वर्ण लघु (ह्रस्व) हो।
- चारों में चरणों में छठवां’ वर्ण गुरु (दीर्घ) हो।
- दूसरे और चौथे इन दो चरणों में सातवां वर्ण ह्रस्व (लघु) हो।
- पहले और तीसरे इन दो चरणों में सातवाँ वर्ण गुरु (दीर्घ) हो।
संस्कृत वाङ्गमय Question 2:
सर्वेषु पादेषु पञ्चमाक्षरं लघु कस्मिन् छन्दसि भवति?
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत वाङ्गमय Question 2 Detailed Solution
प्रश्नानुवाद - सभी पादों में पाँचवा अक्षर लघु किस छन्द में होता है?
स्पष्टीकरण - एक श्लोक में चार पाद होते हैं। अनुष्टुप् छन्द वह छन्द है, जिसका पाँचवा वर्ण/अक्षर लघु होता है।
छन्द की परिभाषा - पद्ये यत्र अक्षराणां मात्राणां वा प्रतिपादं गणना भवति तत्र छन्दः इत्युच्यते। अर्थात् जहाँ पद्य में अक्षरों और मात्राओं की प्रत्येक पाद में गणना होती है, वह छन्द होता है।
Important Pointsअनुष्टुप् छन्द -
लक्षण -
श्लोकेषष्ठं गुरुज्ञेयं, सर्वत्र लघुपञ्चमम्।
द्विचतुष्पादयोर्हस्वं सप्तमं दीर्घमन्ययोः।।
अर्थात् अनुष्टुप् छन्द में प्रत्येक चरण में 8 वर्ण होते हैं। जिनमें केवल 5, 6, 7 इन तीनों वर्गों पर ही नियम लगता है। 5वां वर्ण चारों चरणों में लघु तथा 6ठां वर्ण गुरु होता है। सातवां वर्ण द्वितीय तथा चतुर्थ चरणों में हस्व (लघु) तथा अन्य (प्रथम और तृतीय) चरणों में दीर्घ (गुरु) होता है।
अतः स्पष्ट है कि यहाँ अनुष्टुप् छन्द उचित विकल्प है।
Additional Information
अन्य विकल्प -
वंशस्थ -
- लक्षण - ‘जतौ तु वंशस्थमुदीरितं जरौ'।
- अर्थात् क्रमशः जगण, तगण, जगण और रगण इन चार गणों को वंशस्थ छन्द कहते हैं।
- इसमें 12 वर्ण पर अर्थात् चरण के अन्त में यति (विराम) होती है।
मन्दाक्रान्ता -
- लक्षण - मन्दाक्रान्ताऽम्बुधिरसनगैर्मो भनौ तौ गयुग्मम्।
- इसमें क्रमशः 1 मगण , 2 भगण , 1 नगण , 2 तगण दो गुरू होते हैं।
- मंदाक्रांता में प्रत्येक पात्र में 17 वर्ण होते हैं।
स्रग्धरा -
- ल क्षण - म्रभ्नैर्यानां त्रयेण त्रिमनियतियुता स्रग्धरा कीर्तितेयम।
- अर्थात् यहाँ क्रमशः मगण, रगण, भगण, नगण, यगण, यगण, गण इन सात गणों को स्रग्धरा छन्द कहते हैं।
- इस छन्द में त्रिमुनि (7, 7, 7) वर्णों पर तीन यतियां तथा कु ल 21 वर्ण होते हैं।
संस्कृत वाङ्गमय Question 3:
मेघदूतकाव्ये प्रयुक्तस्य छन्दसः नाम वर्तते-
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत वाङ्गमय Question 3 Detailed Solution
प्रश्न अनुवाद - मेघदूतकाव्य में प्रयुक्त छन्द का नाम है -
मेघदूतम् महाकवि कालिदास द्वारा रचित विख्यात दूतकाव्य है। मेघदूतम् काव्य दो खंडों में विभक्त है। पूर्वमेघ में यक्ष बादल को रामगिरि से अलकापुरी तक के रास्ते का विवरण देता है और उत्तरमेघ में यक्ष का यह प्रसिद्ध विरहदग्ध संदेश है जिसमें कालिदास ने प्रेमीहृदय की भावना को उड़ेल दिया है।Important Pointsस्पष्टीकरण -
महाकवि कालिदास द्वारा मेघदूत की रचना मन्दाक्रान्ता छन्द में की गयी है।
सम्पूर्ण मेघदूत मन्दाक्रान्ता छन्द में लिखा है। इसका कारण यह है कि इसका प्रारम्भ वर्षा ऋतु से होता है और उसमें विशेष रूप से प्रवास का वर्णन है।
अत: 'मन्दाक्रान्ता' उचित विकल्प है।
Additional Informationमन्दाक्रान्ता छन्द -
लक्षण - मन्दाक्रान्ताऽम्बुधिरसनगैर्मो भनौ तौ गयुग्मम्
मंदाक्रांता संस्कृत सत्रह वर्णों का एक छंद है, जिसके प्रत्येक चरण में क्रमशः मगण, भगण, नगण और तगण तथा अंत में दो गुरु होते है।
संस्कृत वाङ्गमय Question 4:
(1.25) वरुणसूक्ते छन्दः वर्तते-
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत वाङ्गमय Question 4 Detailed Solution
- ऋग्वेदके प्रथम मण्डल का पचीसवाँ सूक्त वरुणसूक्त कहलाता है। इस सूक्त में शुनःशेप के द्वारा वरुणदेवता की स्तुति की गयी है ।
- शुनःशेप की कथा वेदों, ब्राह्मणग्रन्थों तथा पुराणों में विस्तार से आयी है।
- कथासार यह है कि इक्ष्वाकुवंशी राजा हरिश्चन्द्र के कोई सन्तान नहीं थी। उनके गुरु वसिष्ठजी ने बताया कि तुम वरुणदेवता की उपासना करो; राजा ने वैसा ही किया। वरुणदेव प्रसन्न हुए और बोले - राजन् ! तुम यदि अपने पुत्र को मुझे समर्पित करने की प्रतिज्ञा करो तो तुम्हें पुत्र अवश्य होगा।
- ऋषि - शुनः शेप
- देवता - वरुण देवता
- छन्द - गायत्री
- सूक्त क्रमाङ्क - १.२५
- ऋचाओं की संख्या - २१ ऋचाएं
अतः उचित पर्याय 'गायत्री' है।
संस्कृत वाङ्गमय Question 5:
अवनिरमरसिन्धुः सार्द्धमस्मद्विधाभिः;
स च कुलपतिराद्यश्छन्दसां यः प्रयोक्ता ।
स च मुनिरनुयातारुन्धतीको वशिष्ठः;
त्वयि वितरतु भद्रं भूयसे मंगलाय।।
श्लोकेऽस्मिन् किं छन्दः
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत वाङ्गमय Question 5 Detailed Solution
प्रश्न का हिंदी भाषांतर : प्रस्तुत श्लोक में कौन सा छंद है?
संपूर्ण श्लोक :
स च कुलपतिराद्यश्छन्दसां यः प्रयोक्ता।
स च मुनिरनुयातारुन्धतीको वशिष्ठः;
त्वयि वितरतु भद्रं भूयसे मंगलाय।। (उत्तररामचरितम्, ३.४८)
स्पष्टीकरण :
- प्रस्तुत श्लोक के प्रत्येक चरण में १५ वर्ण है। यह मालिनी छंद का उदाहरण है।
- मालिनी छन्द एक सम वर्ण वृत छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में "न न म य य" अर्थात दो 'नगण' एक 'मगण' और दो 'यगण' के क्रम से 15 वर्ण होते हैं।
- आठवें और सातवें वर्णों पर यति होती है।
अतः स्पष्ट है, 'मालिनी' यह इस प्रश्न का सही उत्तर है।
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निम्नलिखित में से कौन-सा ग्रन्थ ‘चतुर्विंशतिसाहस्रीसंहिता’ के नाम से ख्यात है?
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत वाङ्गमय Question 6 Detailed Solution
Download Solution PDF‘चतुर्विंशतिसाहस्रीसंहिता’ को तोड़कर देखें तो ‘चतुर्विंशति + साहस्री + संहिता’ प्राप्त होता है। जिनके अर्थ इस प्रकार है-
- चतुर्विंशति- चौबीस
- साहस्री- हजार
- संहिता- एक साथ हो।
अर्थात् चौबीस हजार श्लोक जहाँ हो, रामायण में चौबीस हजार श्लोक है, अतःउसे ‘चतुर्विंशतिसाहस्रीसंहिता’ कहेंगे।
Key Points
- विद्वानों में एक और प्रसिद्धी है कि प्रत्येक एक हजार श्लोक के पश्चात् इसमें गायित्री मन्त्र का एक वर्ण आता है।
- रामायण का विभाजन सात काण्डों में हुआ है-
- बालकाण्ड- 77 सर्ग
- अयोद्ध्याकाण्ड- 129 सर्ग
- अरण्यकाण्ड- 75 सर्ग
- किष्किन्धाकाण्ड- 67 सर्ग
- सुन्दरकाण्ड- 68 सर्ग
- लङ्काकाण्ड (युद्धकाण्ड)- 128 सर्ग
- उत्तरकाण्ड- 111 सर्ग
Additional Information
- महाभारत में एक लाख श्लोक हैं इसलिये इसे ‘शत्साहस्रीसंहिता’ भी कहते हैं।
"काव्यादर्श" के रचयिता हैँ
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत वाङ्गमय Question 7 Detailed Solution
Download Solution PDFकाव्यादर्श
- काव्यादर्श एक रीतिसम्प्रदाय का साहित्यशास्त्र सम्बन्धी ग्रन्थ है।
- काव्यादर्श मे तीन परिच्छेद मिलते है।
- प्रथम परिच्छेद - काव्य परिभाषा, काव्यभेद, महाकाव्यादि के लक्षण आदि।
- द्वितीय परिच्छेद - 35 अर्थालङ्कारो के भेद - प्रभेद के साथ लक्षण उदाहरनादि।
- तृतीय परिच्छेद - यमक का विवेचन है।साथ ही, चित्रकाव्य, स्वरनियम, स्थाननियम, वर्णनियम तथा प्रहेलिका इत्यादि के लक्षण एवं उदाहरण भी दे दिए गए हैं।
- ग्रंथ के अन्त में काव्यदोषों का परिचय है।
दण्डी
- दंडी संस्कृत के प्रसिद्ध साहित्यकार थे।
- जो छ्ठी शताब्दी के अंत और सातवीं शताब्दी के प्रारंभ में सक्रिय थे।
- दंडी की की तीन रचनाएँ प्रसिद्ध हैं- 1. ‘काव्यादर्श’, 2. ‘दशकुमार चरित’ और 3. ‘अवंतिसुन्दरी कथा’
‘श्रीमद्भगवद्गीता’ में कुल कितने अध्याय हैं?
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत वाङ्गमय Question 8 Detailed Solution
Download Solution PDF‘श्रीमद्भगवद्गीता’ महाभारत के भीष्मपर्व में युद्ध के पूर्व कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश है। जो कुल ‘अठारह (18)’ अध्याय में वर्णित है।
Additional Information
विशेष:- महाभारत में अठारह संख्या अत्यंत महत्वपूर्ण है-
- महाभारत के अद्ध्यायों की संख्या- 18
- युद्ध के दिनों की सन्ख्या- 18
- श्रीमद्भगवद्गीता के अद्ध्यायों की संख्या- 18
- उपगीता के अद्ध्यायों की संख्या- 18
अतः स्पष्ट है कि ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ में कुल ‘अठारह (18)’ अध्याय में वर्णित है।
निम्नलिखित में से कौन सी कृति महाकवि कालिदास विरचित नहीं है?
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत वाङ्गमय Question 9 Detailed Solution
Download Solution PDFकालिदास विरचित कृतियों की तालिका:–
रचना |
विधा |
रघुवंशम्, कुमारसंभवम् |
महाकाव्य |
मेघदूतम् |
खण्डकाव्य |
ऋतुसंहारम् |
मुक्तककाव्य |
मालविकाग्निमित्रम्, विक्रमोर्वशीयम्, अभिज्ञानशाकुन्तलम् |
नाटक |
अतः स्पष्ट है, कि `उरुभङ्गम्' कालिदास विरचित नाटक नहीं है।
निम्न में से कौन-सा ग्रन्थ ‘महाभारत’ पर आश्रित नहीं है?
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत वाङ्गमय Question 10 Detailed Solution
Download Solution PDF‘महाभारत’ के कथानक के अनुसार ‘स्वप्नवासदत्तम्’ का कथानक किसी भी प्रकार महाभारत से सम्बन्धित नहीं है।
उपर्युक्त ग्रन्थों के कथानक इस प्रकार से है-
वेणीसंहारम् |
द्रोपदी के वेणी संहार से सम्बन्धित कथानक का वर्णन है। |
नैषधीयचरितम् |
‘वनपर्व’ में वर्णित ‘नल-दमयन्ती’ की कथानक का वर्णन है। |
स्वप्नवासदत्तम् |
उदयन और वासवदत्ता की प्रणयकथा है। |
शिशुपालवधम् |
इन्द्रप्रस्थ में वर्णित शिशुपाल के वध का कथानक वर्णित है। |
'स्वप्नवासवदत्तम्' का नायक है
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत वाङ्गमय Question 11 Detailed Solution
Download Solution PDFस्पष्टीकरण-
स्वप्नवासवदत्तम्
- महाकवि भास का प्रसिद्ध संस्कृत नाटक है
- यह छः अंकों का नाटक है।
- भास के नाटकों में यह सबसे उत्कृष्ट है।
- क्षेमेन्द्र के बृहत्कथामंजरी तथा सोमदेव के कथासरित्सागर पर आधारित यह नाटक समग्र संस्कृतवाङ्मय के दृश्यकाव्यों में आदर्श कृति माना जाता है।
- इस नाटक का नामकरण राजा उदयन के द्वारा स्वप्न में वासवदत्ता के दर्शन पर आधारित है।
- नाटक का प्रधान रस शृंगार है तथा हास्य की भी सुन्दर उद्भावना हुई है।
- स्वप्नवासवदत्तम् के नायक पुरुवंशीय राजा उदयन हैं।
- पुरुवंशीय उदयन वत्स राज्य के राजा थे।
- पुरुवंशीय उदयन धीरललित नायक की श्रेणी में आते है।
- राजा उदयन वीर, कला प्रेमी, व्यवहार कुशल है।
इनमें से कौन-सी कालिदास की दूसरी रचना है
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत वाङ्गमय Question 12 Detailed Solution
Download Solution PDFकालिदास संस्कृत भाषा के महान कवि और नाटककार थे। उन्होंने भारत की पौराणिक कथाओं को आधार बनाकर रचनाएं की, जिसमें भारतीय जीवन और दर्शन के विविध रूप और मूल तत्त्व निरूपित हैं। कालिदास अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण राष्ट्र की समग्र राष्ट्रीय चेतना को स्वर देने वाले कवि माने जाते हैं संस्कृत साहित्य में ही नहीं अपितु समग्र साहित्यिक संसार में उन्हें कविकुलश्रेष्ठ तथा कविशिरोमणि माना जाता है।
कालिदास की रचनायें –
- नाटक – अभिज्ञानशाकुन्तलम्, विक्रमोर्वशीयम् और मालविकाग्निमित्रम्।
- महाकाव्य - रघुवंशम् और कुमारसंभवम्।
- खण्डकाव्य - मेघदूतम् और ऋतुसंहार।
Important Points
नाटक –
- मालविकाग्निमित्रम् कालिदास की पहली रचना है, जिसमें राजा अग्निमित्र और मालविका की प्रणय कथा वर्णित है।
- अभिज्ञानशाकुन्तलम् कालिदास की दूसरी रचना है, जिसमें हास्तिनपुर के राजा दुष्यन्त और कण्व की पालिता पुत्री शकुन्तला की प्रणय कथा का वर्णन हुआ है।
- कालिदास विरचित नाटक विक्रमोर्वशीयम् अनेक रहस्यों से युक्त है, जिसमें राजा पुरूरवा तथा इंद्रलोक की अप्सरा उर्वशी की प्रेमकथा हैं।
महाकाव्य -
इन नाटकों के अलावा कालिदास ने दो महाकाव्यों और दो गीतिकाव्यों की भी रचना की। रघुवंशम् और कुमारसंभवम् उनके महाकाव्यों के नाम है।
- रघुवंशम् में सम्पूर्ण रघुवंश के राजाओं की गाथाएँ हैं।
- कुमारसंभवम् में शिव-पार्वती की प्रेमकथा और कार्तिकेय के जन्म की कहानी है।
खण्डकाव्य -
- मेघदूतम् में एक विरह-पीड़ित निर्वासित यक्ष के द्वारा अपनी यक्षिणी के लिए संदेश प्रेषित करने के लिए दूत के रूप में मेघ को भेजा जाता है।
- ऋतुसंहारम् में सभी ऋतुओं में प्रकृति के विभिन्न रूपों का विस्तार से वर्णन किया गया है।
अतः स्पष्ट है कि अभिज्ञानशाकुन्तलम् कालिदास की दूसरी रचना है।
'पदलालित्य' के लिए प्रसिद्ध है
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत वाङ्गमय Question 13 Detailed Solution
Download Solution PDFउपर्युक्त कवि एवं उनकी प्रसिद्धियां -
कवि |
प्रसिद्धि |
दण्डी |
पदलालित्य |
भारवि |
अर्थगौरव |
हर्षः |
कविपण्डित |
कालिदासः |
उपमा |
अतः, स्पष्ट है कि 'पदलालित्य' के लिए `महाकवि दण्डी' प्रसिद्ध है।
................. भवभूति की रचना का नाम है।
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत वाङ्गमय Question 14 Detailed Solution
Download Solution PDFभवभूति की रचना का नाम उत्तररामचरितम् है -
रचनाए |
रचनाकार |
उत्तररामचरितम् |
भवभूति |
उत्तररामायण |
तुलसीदास |
रामचरित |
तुलसीदास |
हर्षचरितदर्शन |
कालीदास |
Additional Information
उत्तररामचरितम् महाकवि भवभूति का प्रसिद्ध संस्कृत नाटक है, जिसके सात अंकों में राम के उत्तर जीवन की कथा है। भवभूति एक सफल नाटककार हैं। उत्तररामचरितम् में उन्होने ऐसे नायक से संबंधित इतिवृत्त का चयन किया है जो भारतीय संस्कृति की आत्मा है।
''अविमारकम्'' नाटक के प्रणेता है-
Answer (Detailed Solution Below)
संस्कृत वाङ्गमय Question 15 Detailed Solution
Download Solution PDFस्पष्टीकरण-
- संस्कृतकाव्य में सर्वश्रेष्ठ नाट्यकारों की शृंखला में भास भी अग्रगण्य कवि है। इनके द्वारा रचित तेरह नाटक हैं।
- इनके इन तेरह नाटकों में अविमारक नामक भी एक रूपक है।
- इस रूपक में छः अंक है।
- इस नाटक में राजकुमार अविमारक और राजकुमारी कुरंगी की प्रणयकथा है।
- अतः उपर्युक्त प्रश्न के अनुसार अविमारक के प्रणेता महाकवि भास है।
Important Points
भास के तेरह नाटक -
- स्वप्नवासवदत्ता
- प्रतिज्ञायौगंधरायण
- दरिद्र चारुदत्त
- अविमारकनाटक
- प्रतिमानाटक
- अभिषेकनाटक
- बालचरित
- पञ्चरात्र
- मध्यमव्यायोग
- दूतवाक्य
- दूतघटोत्कच
- कर्णभार
- उरुभङ्ग
- इन तेरह नाटकों में रामायण आधारित केवल दो नाटक हैं- प्रतिमानाटक और अभिषेकनाटक
- महाभारत आधारित केवल छः नाटक हैं - पञ्चरात्र, मध्यमव्यायोग, दूतवाक्य, दूतघटोत्कच, कर्णभार और उरुभङ्ग।