काव्य शास्त्र MCQ Quiz in मराठी - Objective Question with Answer for काव्य शास्त्र - मोफत PDF डाउनलोड करा
Last updated on Apr 1, 2025
Latest काव्य शास्त्र MCQ Objective Questions
Top काव्य शास्त्र MCQ Objective Questions
काव्य शास्त्र Question 1:
"अनुप्रासः शब्दसाम्यं वैषम्येऽपि स्वरस्य यत्" इत्यस्मिन् लक्षणे 'शब्दसाम्यं' पदस्य अभिप्राय अस्ति -
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य शास्त्र Question 1 Detailed Solution
प्रश्न अनुवाद- "अनुप्रासः शब्दसाम्यं वैषम्येऽपि स्वरस्य यत्" इस लक्षण में शब्दसाम्य पद से अभिप्राय है -
स्पष्टीकरण- "अनुप्रासः शब्दसाम्यं वैषम्येऽपि स्वरस्य यत्" अर्थात स्वरों की असमानता होने पर भी व्यंजन मात्र की समानता जहाँ होती हैं, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।
अर्थात् रस के अनुसार वर्णों का प्रकर्षपूर्वक न्यास ही अनुप्रास अलंकार कहलाता है।
अतः स्पष्ट है कि शब्दसाम्य पद से अभिप्राय व्यंजन साम्य से है।
काव्य शास्त्र Question 2:
स्रग्धरा-छन्दसः लक्षणे त्रिमुनियतियुता शब्देन सूच्यते -
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य शास्त्र Question 2 Detailed Solution
प्रश्न अनुवाद - स्रग्धरा-छन्द के लक्षण में त्रिमुनियतियुता शब्द सूचित करता है -
स्पष्टीकरण - स्रग्धरा-छन्द के प्रत्येक चरण में 21 वर्ण होते हैं। ये वर्ण क्रमशः मगण, रगण, भगण, नगण, यगण,यगण के क्रम में होते हैं।
इस छंद में त्रिमुनियतियुता अर्थात 7, 7, 7 वर्णों पर तीन यतियां होती हैं।
अतः स्पष्ट है कि स्रग्धरा-छन्द के लक्षण में त्रिमुनियतियुता शब्द 7, 7, 7 को सूचित करता है।
काव्य शास्त्र Question 3:
"पृथुकार्तस्वरपात्रं भूषितनिःशेषपरिजनं देव।
विलसत्करेणुगहनं सम्प्रति सममावयोः सदनम्।।"
पद्येऽस्मिन् अलंकारः वर्तते-
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य शास्त्र Question 3 Detailed Solution
प्रश्न का हिंदी भाषांतर :
"पृथुकार्तस्वरपात्रं भूषितनिःशेषपरिजनं देव।
विलसत्करेणुगहनं सम्प्रति सममावयोः सदनम्।।"
इस पद्य में कौन सा अलंकार है?
स्पष्टीकरण :
- प्रस्तुत पद्य का अर्थ राजा और याचक इन दोनोंं के दृष्टि से हो सकता है।
शब्द | राजा के पक्ष में | याचक के पक्ष में |
पृथुकार्तस्वरपात्रं | राजा का घर सोने के बडे बडे बर्तनो से युक्त है। | याचक का घर बालकोंं के भूख से रोने का स्थान है। |
भूषितनिःशेषपरिजनं | सारे सेवक अलंकृत है। | सारे सेवक भूमि पर पडे है। |
विलसत्करेणुगहनं | झूमती हुई हथिनियोंं से युक्त महल है। | चूहोंं के खोडे हुए बिलोंं की धूल से भरा घर है। |
- अतः याचक राजा से कहता है, सांप्रत हम दोनोंं का घर समान है।
- इस श्लोक का अर्थ दो पद्धति से होता है, अतः "श्लिष्टैः पदैरनेकार्थाभिधाने श्लेष इष्यते" अर्थात् चिपके हुए पदोंं से अनेक अर्थोंं का प्रतिपादन होता है, वह श्लेष अलंकार होता है, इस अर्थ से प्रस्तुत प्रश्न का उत्तर 'श्लेषः' यह है।
Additional Information
- आचार्य विश्वनाथ श्लेष के छह भेद मानते है -
- वर्णप्रत्ययलिंगानां प्रकृत्यो: पदयोरपि। श्लेषाद् विभक्तिवचनभाषाणामष्टधा च स:।।
- अर्थ - 'वर्ण, प्रत्यय, लिंग, प्रकृति, पद, विभक्ति, वचन एवं भाषा' यह श्लेष के छह भेद है।
- वर्णप्रत्ययलिंगानां प्रकृत्यो: पदयोरपि। श्लेषाद् विभक्तिवचनभाषाणामष्टधा च स:।।
- अन्य आचार्य श्लेष के 'शब्दश्लेष' और 'अर्थश्लेष' यह दो भेद मानते है।
- कुछ आचार्य श्लेष के तीन भेद मानते है -
- सभंग श्लेष
- अभंग श्लेष
- सभंगाभंग श्लेष
काव्य शास्त्र Question 4:
"सत्सङ्गतिः हि _________ किं न करोति पुंसाम्" इत्यत्र रिक्तस्थानं पूरयित्वा सूक्तिमिमां निमार्णयत।
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य शास्त्र Question 4 Detailed Solution
प्रश्न का अनुवाद: "सत्सङ्गतिः हि _________ किं न करोति पुंसाम्"। इस रिक्तस्थान को पूर्ण कर सूक्ति निर्माण करें।
स्पष्टीकरण:
यह संस्कृत भाषा में सूक्तियाँ है जो आज अधिक प्रासंगिक होती है।
उपर्युक्त सूक्ति से सज्जनों की संगति से व्यक्ती का केवल उपकार ही होता है इस कथन को यहा बताया गया है।
भर्तृहरी का यह प्रसिद्ध श्लोक इस प्रकार है-
जाड्यं धियो हरति सिंचति वाचि सत्यं,
मानोन्नति दिशति पापमपाकरोति।
चेतः प्रसादयति दिक्षु तनोति कीर्तिं,
सत्सङ्गति कथय किं न करोति पुंसाम्।।
श्लोकार्थ - अच्छे मित्रों का साथ बुद्धि की जड़ता को हर लेता है। वाणी में सत्य का संचार करता है। मान और उन्नति को बढ़ाता है और पाप से मुक्त करता है। चित्त को प्रसन्न करता है और हमारी कीर्ति को सभी दिशाओं में फैलाता है। आप ही कहें कि सत्संगति मनुष्यों का कौन सा भला नहीं करती।
इस इस सूक्ति से हमे अच्ची सिख मिलती है क्योंकी इसमे सत्संगति का वर्णन किया गया है| से हमे अच्ची सिख मिलती है क्योंकी इसमे सत्संगति का वर्णन किया गया है| कथय का अर्थ हिंदी में ‘वर्णन’ अथवा ‘बताइये’ इस प्रकार प्रयुक्त होता है।
अतः उचित पर्याय कथय होता है।
काव्य शास्त्र Question 5:
रघुवंशस्य प्रथमपद्ये प्रयुक्तं छन्दः किम्?
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य शास्त्र Question 5 Detailed Solution
प्रश्न का अर्थ - रघुवंश के प्रथम पद्य के श्लोक में कौन सा छन्द प्रयुक्त किया है ?
स्पष्टीकरण - रघुवंश के प्रथम पद्य के श्लोक में अनुष्टुप छन्द प्रयुक्त किया है ।
Additional Information
कालिदास -
- कविकुलगुरू पदवी से विभूषित कालिदास संस्कृत भाषा के श्रेष्ठ कवि है ।
- कालिदास एक विद्वान ब्राह्मण, शिवदेवता का उपासक और काश्मीर से गोदावरी तक भारतवर्ष में प्रवास करनेवाले अनुभवी कवि है ।
- कालिदास की वैदर्भी शैली का अनुभव इस महाकाव्य में होता है ।
- भगवान् शिव-पार्वती कालिदास के आराध्य है और उनके प्रत्येक रचना के शूरवात में कालिदास उनका नमन करते है ।
- इस महाकाव्य में भी कालिदास ने भगवान् शिव-पार्वती को नमन करने वाला श्लोक प्रस्तुत किया है ।
रघुवंशम् -
- रघुवंशम् के महाकाव्य का शीर्षक उसकी कथा का बोध करवाता है - रघुकुल के २८ राजाओं का वर्णन इसमें है ।
- इस महाकाव्य में १९ सर्ग है, और यह महाकाव्य अत्यंत लोकप्रिय है क्योंकी इसपर ३३ टिका उपलब्ध है ।
रघुवंशम् का पहला श्लोक -
वागर्थाविव संपृक्तौ वागर्थप्रतिपत्तये ।
जगतः पितरौ वन्दे पार्वतीपरमेश्वरौ ॥ १॥
अनुष्टुप छंद-
- अनुष्टुप् छन्द में चार पाद होते हैं। प्रत्येक पाद में आठ वर्ण होते हैं। इस छन्द के प्रत्येक पद/चरण का छठा वर्ण गुरु होता है और पंचमाक्षर लघु होता है। प्रथम और तृतीय पाद का सातवाँ वर्ण गुरु होता है तथा दूसरे और चौथे पाद का सप्तमाक्षर लघु होता है। इस प्रकार पादों में सप्तमाक्षर क्रमश: गुरु-लघु होता रहता है । अर्थात इसमें वर्णों की संख्या समान है ।
- अनुष्टुप छन्द का उपयोग महाकाव्य के सर्ग के आरम्भ में और लंबी कथा को संक्षिप्त करने के लिये होता है - आरम्भे सर्गबन्धस्य कथा विस्तारसंग्रहे ।
इसलिये रघुवंश के प्रथम पद्य के श्लोक में अनुष्टुप् छन्द प्रयुक्त किया है ।
काव्य शास्त्र Question 6:
'नवपलाशपलाशवनम्' इत्यत्र कः अलंकारः?
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य शास्त्र Question 6 Detailed Solution
प्रश्नानुवाद - 'नवपलाशपलाशवनम्' यहाँ कौन-सा अलंकार है?
स्पष्टीकरण-
- काव्य में भाषा को शब्दार्थ से सुसज्जित तथा सुंदर बनाने वाले चमत्कारपूर्ण मनोरंजन ढंग को अलंकार कहते हैं।
- अलंकार का शाब्दिक अर्थ है, आभूषण। जिस प्रकार सुवर्ण आदि के आभूषणों से शरीर की शोभा बढती है, उसी प्रकार अलंकारों से काव्य की।
- शब्द तथा अर्थ की जिस विशेषता से काव्य का श्रृंगार होता है उसे अलंकार कहते हैं। \
अलंकार के दो भेद होते हैं- शब्दालंकार, अर्थालंकार।
- शब्दालंकार - जिस अलंकार में शब्दों के प्रयोग के कारण कोई चमत्कार उपस्थित हो जाता है और उन शब्दों के स्थान पर समानार्थी दूसरे शब्दों को रख देने से वह चमत्कार समाप्त हो जाता है, वह शब्दालंकार माना जाता है। जो अलंकार शब्दों के माध्यम से काव्यों को अलंकृत करते हैं, वे शब्दालंकार कहलाते हैं।
- अर्थालंकार - जिस अलंकार में अर्थ के माध्यम से काव्य में चमत्कार उत्पन्न होता है,वहाँ अर्थालंकार होता है। दूसरे शब्दों में जब किसी वाक्य या छंद को अर्थों के आधार पर सजाया जाये तो ऐसे अलंकार को अर्थालंकार कहते हैं।
- जब कविता में एक ही शब्द दो या दो से अधिक बार आए और उसका अर्थ हर बार भिन्न-भिन्न हो वहां पर यमक अलंकार होता है।
- इन पंक्तियों में यमक अलंकार है। यमक अलंकार एक प्रमुख शब्दालंकार है। सामान्य रूप से यमक अलंकार का लक्षण यह है कि जहां शब्दों की आवृत्ति हो और अर्थ भिन्न-भिन्न हो वहां यमक अलंकार होता है।
नवपलाशपलाशवनं पुर: स्फुटपरागपरागतपंड्कजम्।
मृदुलतान्तलतान्तमलोकयत्स सुरभिं सुरभिं सुमनोभरैः।।
- अर्थात् सबसे पहले कृष्ण ने वसंत ऋतु के प्रभाव को देखा। पलाशवन नई कौंपलों से लदकर गहगहा रहे हैं। कमल प्रफुल्लित होकर मकरंद से भर गए हैं। चारों ओर कोमल किन्तु गर्मी से किंचित् म्लान हुए फूल खिले हुए हैं और उनकी सुगंध से पूरा वातावरण सुवासित है।
यहाँ पर पलाश-पलाश, पराग-पराग, लतान्त-लतान्त तथा सुरभि- सुरभि पदों की आवृत्ति होने से यमक अलंकार है।
काव्य शास्त्र Question 7:
क्रमशः 'मगण, भगण, नगण, तगण, तगण तथा दो गुरु' किस छन्द में होते हैं?
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य शास्त्र Question 7 Detailed Solution
स्पष्टीकरण -
- 'मगण, भगण, नगण, तगण, तगण तथा दो गुरु' 'मन्दाक्रान्ता छन्द' में होते है।
- मन्दाक्रान्ता छन्द - "मन्दाक्रान्ताऽम्बुधिरसनगैर्मो भनौ तौ गयुग्मम्"
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- क्रमशः 1 मगण , 1 भगण , 1 नगण , 2 तगण, दो गुरू होते है।
- अम्बुधि (5) , रस(6), नग(7) पर यतियां होती है।
- मंदाक्रांता में प्रत्येक चरण में 17 वर्ण होते है।
काव्य शास्त्र Question 8:
निम्न में से अर्ध समवृत्तं छन्द ?
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य शास्त्र Question 8 Detailed Solution
- वियोगिनी छन्द अर्ध समवृत्तं है।
- अर्ध समवृत्तं - प्रथम - तृतीया और द्वितीया - चतुर्थ पादों की अक्षर संख्या समान होने पर अर्ध समवृत्तं होता है।
- इसके सम चरण में 11-11 और विषम चरण में 10 वर्ण होते है।
- विषम चरणों में दो सगण , एक जगण, एक सगण और एक लघु व एक गुरु होते है।
- इस छन्द में सम चरण में और विषम चरण में अक्षर संख्या समान है।
इसीलिये "वियोगिनी" अर्ध समवृत्तं छन्द है।
Key Pointsविकल्प -
1.शिखरिणी छंद -
- इसमें 17 वर्ण होते है।
- इसके हर चरण में यगण , मगण , नगण , सगण , भगण , लघु और गुरु होता है।
2.मंदाक्रांता छंद -
- इसके हर चरण में 17 वर्ण होते है।
- एक भगण , एक नगण , दो तगण , और दो गुरु होते है।
3.शालिनी छंद -
- शालिनी छन्द के प्रत्येक चरण मे 11 वर्ण होते है।
काव्य शास्त्र Question 9:
'जगण' का गण चिह्र है-
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य शास्त्र Question 9 Detailed Solution
- । जगण का गण चिह्र 'ISI' है
- सूत्र - "यमाताराज भा नस लगा"।
गण | सूत्र | चिह्र |
यगण | यमाता | ।ऽऽ |
मगण | मातारा | ऽऽऽ |
तगण | ताराज | ऽऽ। |
रगण | राजभा | ऽ।ऽ |
जगण | जभान | ।ऽ। |
भगण | भानस | ऽ।। |
नगण | नसल | ।।। |
सगण | सलगा | ।।ऽ |
Key Points
लघु - गुरू लक्षण -
सानुस्वारो विसर्गान्तो दीर्घो युक्तपरश्च यः।
वा पदान्ते गुरुर्ज्ञेयोन्यो मात्रिको लघुः।।
अनुस्वार से युक्त, विसर्गान्त, दीर्घ, जिसके पर में संयोग हो, ऐसे वर्ण गुरु है।
पदान्त में स्थित वर्ण विकल्प से गुरु माना जाता है।
इससे अन्य जो भी है, ऐसा 1 मात्रा वाला लघु माना जाता है।
गुरु = S (2 मात्रा), लघु = I (1 मात्रा)
काव्य शास्त्र Question 10:
अनुष्टुप् - छन्दसि द्वि - चतुर्थपादयोः लघु भवति -
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य शास्त्र Question 10 Detailed Solution
प्रश्नानुवाद:अनुष्टुप छंद में द्वितीय और चतुर्थ पाद लघु होता है-
स्पष्टीकरण: यथा अनुष्टुप छंद के लक्षण में प्राप्त होता है -
"श्लोके षष्ठं गुरु ज्ञेयं सर्वत्र लघु पञ्चमम्।
द्विचतुष्पादयोर्ह्रस्वं सप्तम दीर्घमन्ययोः।।"
अर्थात् - अनुष्टुप् छंद में चार पाद होते हैं। प्रत्येक पाद में आठ वर्ण होते हैं। श्लोक में छठा वर्ण गुरु होता है और पंचम सभी जगह लघु होता है! प्रथम व् तृतीय पाद का सप्तम वर्ण गुरु होता है एवं दूसरे और चौथे पाद का सप्तम अक्षर लघु होता है।
मुख्य बिन्दु:
- अनुष्टुप छंद संस्कृत काव्यों में एक सबसे प्रमुख छंद के रूप में रहा है व सर्वाधिक प्राचीनतम छंदो में से भी एक है।
- आठ - आठ वर्ण के चार पाद होते हैं।
- प्रत्येक आठ वर्ण के बाद यति आती रहती है।
- सप्तमाक्षर क्रमशः परिवर्तित होता रहता है।
- प्रथम पाद में गुरु।
- द्वितीय पाद में लघु।
- तृतीय पाद में गुरु।
- चतुर्थ पाद में लघु।
- इसमें कुल ३२ वर्ण होते हैं।
अतिरिक्त जानकारी:
अनुष्टुप छंद के उदाहरण:
"धर्मक्षत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः।
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय।।"