भाषा अधिगम और भाषा अर्जन MCQ Quiz - Objective Question with Answer for भाषा अधिगम और भाषा अर्जन - Download Free PDF

Last updated on Apr 9, 2025

Latest भाषा अधिगम और भाषा अर्जन MCQ Objective Questions

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 1:

कक्षायां बालशिक्षार्थिभ्यः मुद्रितपुस्तकैः सह श्रव्यपुस्तकानि तथा च स्पर्शग्राहीज्ञानजनकानि पुस्तकानि स्युः । यतोहि -

  1. विविधतायुतेभ्यश्छात्रेभ्यः तादृशाणि पुस्तकानि सुलभानि भवति।
  2. तादृशाणि पुस्तकानि अध्यापकेषु भाराधिक्यं न भवन्ति ।
  3. अनेन कक्षायां विविधता जायते बालाः च विविधतायै स्पृहयन्ति ।
  4. अनेन आकलनाय अध्यापकानां विविधानां पुस्तकानां प्रयोगाय स्वायत्तता भवति ।

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : विविधतायुतेभ्यश्छात्रेभ्यः तादृशाणि पुस्तकानि सुलभानि भवति।

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 1 Detailed Solution

प्रश्नार्थ- कक्षा में बच्चों के शिक्षार्थियों के लिए मुद्रित पुस्तकों के साथ-साथ ऑडियो पुस्तकें और स्पर्श ज्ञान उत्पन्न करने वाली पुस्तकें भी होंगी। क्योंकि -

उत्तर- विविधतायुतेभ्यश्छात्रेभ्यः तादृशाणि पुस्तकानि सुलभानि भवति।

Important Points

  • कक्षा में विविध प्रकार की पुस्तकों का उपयोग भिन्न-भिन्न शैक्षिक आवश्यकताओं और शैलियों के विद्यार्थियों की सहायता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
  • मुद्रित पुस्तकों के साथ-साथ ऑडियो पुस्तकें और स्पर्श ज्ञान उत्पन्न करने वाली पुस्तकों का समावेश सुनिश्चित करता है कि सभी छात्रों की विविध शिक्षण स्टाइल्स और ज़रूरतों को पूरा किया जा सके।
  • इस बात को स्वीकार करते हुए कि विद्यार्थियों में शिक्षण की विभिन्न प्रकारीयताएँ होती हैं, विविध प्रकार की पुस्तकों का समावेश एक अधिक समावेशी शिक्षण पर्यावरण सृजित करता है।
  • ऑडियो पुस्तकें उन छात्रों को लाभान्वित करती हैं जिन्हें श्रवण शैली से सीखने में अधिक सक्रियता होती है या जिन्हें पढ़ने में कठिनाई होती है।
  • स्पर्श पुस्तकें विशेष रूप से वे विद्यार्थी जो बहुत छोटे हैं या जिन्हें विशिष्ट शैक्षिक ज़रूरतें हैं, के लिए अत्यंत उपयोगी होती हैं।
  • इन पुस्तकों के माध्यम से, वे स्पर्श की भावना के माध्यम से ज्ञान और समझ को गहराई से अनुभव कर सकते हैं।
  • मुद्रित पुस्तकें पारंपरिक रूप से विद्यार्थियों के लिए ज्ञान का एक मूल श्रोत रही हैं, जिन्हें बच्चे किताबों के स्पष्ट रूप से पढ़ने में सक्षम होते हैं।
  • इन समस्त प्रकार की पुस्तकों का समावेश यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक विद्यार्थी, उनकी व्यक्तिगत शैक्षिक ज़रूरतों और प्राथमिकताओं के आधार पर, सहजता से सीखने में सक्षम हो।
  • यह समग्र रूप से शिक्षण प्रक्रिया को सुगम बनाता है और छात्रों के बीच पढ़ाई के प्रति अधिक रुचि और उत्साह को जाग्रत करता है।
  • इस प्रकार, ऐसी पुस्तकें न केवल विविध छात्रों के लिए सुलभ हैं, बल्कि वे एक ऐसा शैक्षिक पर्यावरण सृजित करती हैं जहाँ सभी विद्यार्थियों को उनकी शिक्षण शैली और गतिविधियों के अनुसार बेहतर तरीके से सीखने का अवसर मिलता है।

Additional Informationपर्यायों का हिन्दी अनुवाद-

  • विविधतायुतेभ्यश्छात्रेभ्यः तादृशाणि पुस्तकानि सुलभानि भवति।- ऐसी पुस्तकें विविध छात्रों के लिए सुलभ हैं।
  • तादृशाणि पुस्तकानि अध्यापकेषु भाराधिक्यं न भवन्ति ।- ऐसी किताबें शिक्षकों पर बोझ नहीं होतीं।
  • अनेन कक्षायां विविधता जायते बालाः च विविधतायै स्पृहयन्ति ।- इससे कक्षा में विविधता पैदा होती है और बच्चे विविधता चाहते हैं।
  • अनेन आकलनाय अध्यापकानां विविधानां पुस्तकानां प्रयोगाय स्वायत्तता भवति ।- यह शिक्षकों को मूल्यांकन के लिए विभिन्न प्रकार की पुस्तकों का उपयोग करने की स्वायत्तता देता है।

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 2:

भाषायाः अधिगमप्रक्रिया अतिगहना या आजन्मादामृत्योः चलति।

अनेन कथनेन भवान् सहमतो न वा ?

  1. अहमनेन कथनेन आंशिकरूपेण सहमतोऽस्मि ।
  2. अहमनेन कथनेन आंशिकरूपेण असहमतोऽस्मि ।
  3. अहमनेन कथनेन सहमतोऽस्मि ।
  4. अहमनेन कथनेन असहमतोऽस्मि ।

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : अहमनेन कथनेन असहमतोऽस्मि ।

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 2 Detailed Solution

प्रश्नार्थ- भाषा अर्जन की प्रक्रिया बहुत गहरी होती है जो जन्म से मृत्यु तक चलती है।

क्या आप इस कथन से सहमत हैं या नहीं?

उत्तर- अहमनेन कथनेन असहमतोऽस्मि ।

Important Pointsभाषा अर्जन की प्रक्रिया जन्म से मृत्यु तक नहीं चलती है या इसकी गहराई को लेकर कुछ सीमाएँ होती हैं। इस परिप्रेक्ष्य को समझने के लिए निम्नलिखित विश्लेषण का सहारा लें।

विश्लेषण:
शैक्षणिक और अनुभवात्मक सीमाएं: व्यक्ति के शिक्षा और अनुभव के आधार पर, भाषा अर्जन की प्रक्रिया में विविधता और गहराई अलग-अलग हो सकती है। सभी व्यक्तियों के लिए यह प्रक्रिया उतनी ही समृद्ध और गहरी नहीं होती।

शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य: शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की विविध स्थितियाँ, जैसे कि मस्तिष्क से संबंधित रोग, जीवन के बाद के चरणों में भाषा अर्जन की क्षमता को प्रभावित या सीमित कर सकती हैं।

प्रेरणा और अवसर: भाषा सीखने की प्रेरणा और अवसरों में भिन्नता भाषा अर्जन की गहराई और व्यापकता को प्रभावित करती है। यदि व्यक्ति को नई भाषाएँ सीखने की ओर रुचि नहीं है या वे संबंधित परिस्थितियों या संसाधनों तक पहुँच नहीं रखते, तो उनकी भाषा अर्जन की प्रक्रिया सीमित रह सकती है।

आयु और सीखने की क्षमता: उम्र के साथ, नई भाषाएँ सीखने की क्षमता में परिवर्तन हो सकता है। युवा व्यक्तियों की तुलना में वृद्ध व्यक्तियों में नई भाषा सीखने की क्षमता में कठिनाइयों का सामना किया जा सकता है।

इस परिप्रेक्ष्य से देखते हुए, भाषा अर्जन के "जन्म से मृत्यु तक" और इसकी "गहराई" के बारे में कथन के सापेक्ष असहमत होना समझ में आता है। यह मानना कि भाषा अर्जन की प्रक्रिया में विविधता, सीमाएँ, और परिवर्तनशीलता होती है, एक वास्तविक और सामाजिक-शैक्षणिक परिप्रेक्ष्य प्रदान करता है।

Additional Informationपर्यायों का हिन्दी अनुवाद-

  • मैं इस कथन से आंशिक रूप से सहमत हूँ।
  • मैं इस कथन से आंशिक रूप से असहमत हूं।
  • मैं इस कथन से सहमत हूं
  • मैं इस कथन से असहमत हूं

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 3:

अधिगम-परिणामाः छात्रं समर्थीकर्तुं प्रयतन्ते ? 

  1. मापनयोग्यनियमसहितं व्याकरणात्मकज्ञानं अधिग्रहीतुं
  2. माप्यनियमसहितं योग्यत्वं ग्रहीतुं
  3. सर्वकौशलविषयकान् न्यूनतमस्तरान् अधिग्रहीतुम्
  4. माप्यनियमसहितं भाषारचकान् (Language Components) अधिग्रहीतुम्

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : माप्यनियमसहितं योग्यत्वं ग्रहीतुं

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 3 Detailed Solution

प्रश्नार्थ- सीखने के परिणाम छात्र का समर्थन करना चाहते हैं?

उत्तर- माप्यनियमसहितं योग्यत्वं ग्रहीतुं

Important Pointsजब हम "सीखने के परिणामों का समर्थन करने" की बात करते हैं, तो हम उस प्रक्रिया की बात कर रहे हैं जिसके द्वारा छात्रों को उनकी शिक्षा में ठोस, मापने योग्य और प्रासंगिक परिणामों की प्राप्ति होती है।

"मापने योग्य नियमों के साथ योग्यत्व हासिल करना" सीखने के परिणामों को समर्थन देने का एक महत्वपूर्ण पहलू है। इसे विस्तार से समझते हैं:

मापने योग्य नियमों का महत्व: मापने योग्य नियम वे होते हैं जो स्पष्ट, संख्यात्मक या गुणात्मक मानकों के माध्यम से दर्शाए जा सकते हैं। ये नियम शिक्षकों को उन स्पष्ट लक्ष्यों को परिभाषित करने में मदद करते हैं जिनकी दिशा में छात्रों को अग्रसर होना चाहिए और एक निश्चित योग्यत्व के स्तर तक पहुंचने के लिए आवश्यक प्रगति को मापते हैं।

योग्यत्व की प्राप्ति: यहां योग्यत्व को उन विशेषग्य ज्ञान, कौशल और व्यवहार के रूप में देखा जाता है जो छात्रों को उनकी अध्ययन की विषयवस्तु में प्रावीण्य प्राप्त करने के लिए आवश्यक होती हैं। जब छात्र इन योग्यताओं को मापने योग्य नियमों के माध्यम से हासिल करते हैं, तो उनकी शिक्षा का परिणाम स्पष्ट और मापने योग्य होता है।

मापने योग्य नियमों के साथ शिक्षार्थियों की सहायता: शिक्षार्थियों को मापने योग्य नियमों के माध्यम से सहायता प्रदान करने से, उन्हें उनकी प्रगति का आकलन करने, स्वयं को चुनौती देने और आत्मनिर्भरता की भावना को विकसित करने में मदद मिलती है। यह उन्हें अपने लक्ष्यों के प्रति अधिक संगठित और उत्साही बनाने में मदद करता है।

निरंतर मूल्यांकन और पुनरावलोकन: मापने योग्य नियमों के माध्यम से हासिल की गई योग्यता की प्रक्रिया में निरंतर मूल्यांकन और समीक्षा आवश्यक होती है। इससे शिक्षकों और छात्रों दोनों को ज्ञात होता है कि वे सही दिशा में प्रगति कर रहे हैं या नहीं और कहां सुधार की आवश्यकता है।

इस प्रकार, "मापने योग्य नियमों के साथ योग्यत्व हासिल करना" शिक्षा में एक केंद्रीय तत्व है जो सीखने के परिणामों को सार्थक, ठोस, और मापने योग्य बनाता है, और छात्रों को उनकी शिक्षा से अधिकतम लाभ उठाने में समर्थन प्रदान करता है।

Additional Informationपर्यायों का हिन्दी अनुवाद-

  • मापनयोग्यनियमसहितं व्याकरणात्मकज्ञानं अधिग्रहीतुं- मापने योग्य नियमों के साथ व्याकरणिक ज्ञान प्राप्त करना
  • माप्यनियमसहितं योग्यत्वं ग्रहीतुं- मापने योग्य नियमों के साथ योग्यत्व हासिल करना
  • सर्वकौशलविषयकान् न्यूनतमस्तरान् अधिग्रहीतुम्- सभी कौशलों से संबंधित न्यूनतम स्तर हासिल करना
  • माप्यनियमसहितं भाषारचकान् (Language Components) अधिग्रहीतुम्- मापन नियमों के साथ भाषा घटकों को प्राप्त करना

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 4:

अनेन शैक्षणिकभाषायां अथवा विविधपाठ्यविषयकभाषायां प्रावीण्यं (Proficiency) प्रति सङ्केतः क्रियते । 

  1. अन्तर्भाषाप्रावीण्यम्
  2. मूल - अन्तर्वैयक्तिक सम्प्रेषण - प्रावीण्यम् (BICS)
  3. सम्प्रेषणात्मकभाषाप्रावीण्यम्
  4. संज्ञानात्मकशैक्षणिकं भाषाप्रावीण्यम् (CALP)

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : संज्ञानात्मकशैक्षणिकं भाषाप्रावीण्यम् (CALP)

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 4 Detailed Solution

प्रश्नार्थ- इसका तात्पर्य शैक्षणिक भाषा या विभिन्न विषयों की भाषा में दक्षता से है।

उत्तर- संज्ञानात्मकशैक्षणिकं भाषाप्रावीण्यम् (CALP)

Important Points

  • संज्ञानात्मक शैक्षणिक भाषा प्रवीणता (CALP) की अवधारणा शैक्षिक मनोविज्ञानी Jim Cummins द्वारा 1980 के दशक में परिचयात् की गई थी। CALP विशेष रूप से उन भाषाई कौशलों से संबंधित है जो शिक्षा और अध्ययन के लिए आवश्यक होते हैं।
  • यह उन विशिष्ट क्षेत्रों में भाषा प्रवीणता का संकेत देता है जो जटिल और संज्ञानात्मक रूप से मांग वाले होते हैं और आलोचनात्मक सोच, विश्लेषण, सारांशित करने, निष्कर्ष निकालने जैसे कार्यों के लिए आवश्यक होते हैं।
  • संज्ञानात्मक शैक्षणिक भाषा प्रवीणता (CALP) और बुनियादी - पारस्परिक संचार कौशल (BICS) में मुख्य अंतर है। BICS उन सामान्य संचार कौशलों से संबंधित है जो दैनिक जीवन में बातचीत और सामाजिक संवाद के लिए आवश्यक होते हैं।
  • इसके विपरीत, CALP अधिक विशेषीकृत और शैक्षणिक वातावरण में उपयोगी होता है, जहां गहरे स्तर के संज्ञान और विश्लेषणात्मक कौशल की आवश्यकता होती है।

CALP में दक्षता के महत्वपूर्ण पहलू हैं:

  • वैचारिक समझ: जटिल विचारों और अवधारणाओं को समझना और उनकी व्याख्या करना।
  • अकादमिक भाषा: विषय-विशेष की भाषा, शब्दावली, और अवधारणाओं को जानना और उनका उपयोग करना।
  • विश्लेषणात्मक कौशल: जानकारी का विश्लेषण करने और महत्वपूर्ण सोच के द्वारा उसकी व्याख्या करने की क्षमता।
  • संज्ञानात्मक कौशल: नई जानकारी को एकीकृत करने,समस्याओं को हल करने, और ज्ञान का निर्माण करने की योग्यता।
  • CALP को सभी शैक्षणिक विषयों में छात्रों की सफलता के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है, खासकर जब वे एक दूसरी भाषा में अध्ययन कर रहे होते हैं। इसलिए, शैक्षणिक और विभिन्न विषयों की भाषा में दक्षता का विकास करना न केवल व्यक्तिगत शैक्षिक सफलता के लिए बल्कि लंबे समय में करियर और समाज में योगदान के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 5:

अधोलिखितासु प्रक्रियासु कस्याः प्रयोगः एकस्यां भाषायां सम्यक्लेखनशिक्षणाय क्रियते ? 

  1. विचारोद्दोलनम् - रूपरेखानिर्माणम् - प्रारूपलेखनम् - बिन्दुनिर्धारणम् - सम्पादनम् - समापनम्
  2. विचारोद्दोलनम् - बिन्दुनिर्धारणम् - प्रारूपलेखनम् - रूपरेखानिर्माणम् - सम्पादनम् - समापनम्
  3. विचारोद्दोलनम् - बिन्दुनिर्धारणम् - प्रारूपलेखनम् - सम्पादनम् - रूपरेखानिर्माणम् -समापनम्
  4. विचारोद्दोलनम् - बिन्दुनिर्धारणम् - रूपरेखानिर्माणम् - प्रारूपलेखनम् - सम्पादनम् - समापनम्

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : विचारोद्दोलनम् - बिन्दुनिर्धारणम् - रूपरेखानिर्माणम् - प्रारूपलेखनम् - सम्पादनम् - समापनम्

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 5 Detailed Solution

प्रश्नार्थ- किसी भाषा में सही लेखन सिखाने के लिए निम्नलिखित में से किस प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है?

उत्तर- विचारोद्दोलनम् - बिन्दुनिर्धारणम् - रूपरेखानिर्माणम् - प्रारूपलेखनम् - सम्पादनम् - समापनम्

Important Points"विचारोद्दोलनम् - बिन्दुनिर्धारणम् - रूपरेखानिर्माणम् - प्रारूपलेखनम् - सम्पादनम् - समापनम्" किसी भाषा में सही लेखन को सिखाने के लिए उपयोग की जाने वाली एक क्रमिक प्रक्रिया का विवरण है। इस प्रक्रिया का प्रत्येक चरण लेखन कौशल को सुनियोजित और विकसित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। आइए इन चरणों का विस्तार से विवरण करें:

विचारोद्दोलनम् (Brainstorming): इस चरण में, लेखक विभिन्न विचारों और संकेतों पर चिंतन करता है। यह एक रचनात्मक प्रक्रिया है जहाँ अवधारणाओं, विचारों, और विषयों पर खुले मन से सोचा जाता है, जिससे लेखक को अपने लेखन के लिए एक दिशा मिलती है।

बिन्दुनिर्धारणम् (Point Determination): विचारोद्दोलन के बाद, लेखक उन विचारों को चुनता है जो उसे सबसे उपयुक्त और महत्वपूर्ण लगते हैं। इस चरण में, मुख्य विचारों और बिंदुओं की पहचान की जाती है जिन पर लेखन में ध्यान केंद्रित किया जाएगा।

रूपरेखानिर्माणम् (Outline Formation): बिन्दुनिर्धारण के बाद लेखक एक संरचित रूपरेखा निर्माण करता है। इसमें विचारों को एक क्रम में व्यवस्थित करना शामिल है, जिससे लेखन की दिशा और संरचना स्पष्ट हो।

प्रारूपलेखनम् (Draft Writing): रूपरेखा के आधार पर लेखक पहला मसौदा (ड्राफ्ट) लिखना शुरू करता है। इस चरण में, वह अपने विचारों को अधिक विस्तार से विकसित करता है, और अपने लेखन को ठोस रूप देना शुरू करता है।

सम्पादनम् (Editing): मसौदे के निर्माण के बाद, लेखक वर्तनी, व्याकरण, शैली और संरचना के लिहाज से अपने लेखन का संपादन करता है। इसे पढ़ने और आवश्यक सुधार करने की प्रक्रिया में, लेखन को और अधिक परिष्कृत और सुधारित किया जाता है।

समापनम् (Conclusion): अंतिम चरण में, लेखक अपने लेखन का समापन करता है, जिसमें अंतिम संस्करण को तैयार करना और उसे प्रस्तुत करना शामिल है। इस स्तर पर, लेख को पूरी तरह से पोलिश किया जाता है और प्रकाशन या वितरण के लिए तैयार किया जाता है।

यह प्रक्रिया लेखन के कौशल को सिखाने और विकसित करने में बेहद प्रभावी होती है क्योंकि यह कदम-दर-कदम मार्गदर्शन प्रदान करती है और लेखक को अपने विचारों को संगठित और व्यवस्थित तरीके से प्रस्तुत करने में मदद करती है।

Top भाषा अधिगम और भाषा अर्जन MCQ Objective Questions

अनौपचारिक-माध्यमेन कस्याश्चिद् भाषायाः अधिगमार्थम् अधोलिखितेषु कस्य समावेशः अस्ति?

  1. भाषाप्रयोगशालायाः
  2. गृहपरिवेशस्य
  3. भाषाप्रशिक्षणकेन्द्रस्य
  4. विद्यालयस्य

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : गृहपरिवेशस्य

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 6 Detailed Solution

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प्रश्न का हिन्दी अनुवाद:- अनौपचारिक माध्यम से किसी भाषा के अधिगम के लिये निम्न में से किसका समावेश होता है?

स्पष्टीकरण:- भाषा अधिगम से तात्पर्य मातृ भाषा के अतिरिक्त किसी अन्य भाषा को सीखने से है। यह एक ऐसी प्रक्रिया को संदर्भित करता है जो बच्चों को अन्य भाषा प्रयोग में भी दक्ष बनाती है। प्रारंभ में सामाजिक अन्तःक्रिया के फलस्वरूप ही बालक सामाजिक भाषा को सीख के अपने भावों और विचारों को आसानी से सही रूप में प्रस्तुत कर पाने में सक्षम होता है।

किसी भी भाषा के अधिगम का दो प्रकार होता है-

अनौपचारिक माध्यम:-

  • विद्यार्थी अपने तात्कालिक परिवेश में बोले जाने वाली ध्वनियों, शब्दों एवं वाक्यों को ग्रहण करता है, और बोलने का प्रयत्न करता है।
  • उत्तरोत्तर, वह कुछ ध्वनियों, शब्दों, एकाक्षर शब्दों आदि के साथ अभिव्यक्ति तथा संप्रेषण का प्रयोग करता है और धीरे-धीरे छोटे सरल वाक्य बनाना सीखता है।

औपचारिक माध्यम:-

  • आगे चलकर विधिवत औपचारिक भाषा-शिक्षण द्वारा भाषा-अधिगम होता है जो पूर्णतः पूर्व निर्धारित उद्देश्यों पर आधारित होता है।
  • यह विद्यालय में विधिवत् नियमों और सिद्धान्तों के साथ पाठ्यपुस्तक आदि की सहायता से सिखाया जाता है। जिसमें भाषाप्रयोगशाला और भाषाप्रशिक्षणकेन्द्र भी सहायक होते हैं।

अतः स्पष्ट है की भाषा अधिगम में ‘गृहपरिवेश’ का समावेश होता है। क्योंकि बालक अपने परिवेश में बोले जाने वाली ध्वनियों, शब्दों एवं वाक्यों को ग्रहण करता है, और बोलने का प्रयत्न करता है।

Additional Information

एक विद्यार्थी द्वारा दो तरह से भाषा सीखी जा सकती है-

  • भाषा अर्जन,
  • भाषा अधिगम

भाषा अर्जन:- इस प्रक्रिया में बालक सुनकर, बोलकर, भाषा ग्रहण करता है तथा निरंतर परिमार्जन करता रहता है।भाषा सीखने की प्रक्रिया में भाषा अर्जन की प्रक्रिया महत्त्वपूर्ण होती है। अर्जन में सामान्यतः अनुकरण की प्रवत्ति दिखाई देती है।

भाषा अधिगम:- अधिगम शब्द दो शब्द के मेल से बना है 'अधि' तथा 'गम'। यहाँ 'अधि' का अर्थ है 'भली प्रकार' तथा 'गम' का अर्थ है 'जानना'। अर्थात किसी बात या विषय के समीप अच्छी तरह जाना और उसकी भली भांति जानकारी प्राप्त करना।

बालः स्वाभाविकतया तस्य प्रथमां भाषाम् _______

  1. अधिगच्छति(learns)
  2. अनुकरोति (imitates)
  3. अधिग्रहणं करोति (acquires)
  4. पुनर्बलनं करोति (reinforces)

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : अधिग्रहणं करोति (acquires)

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 7 Detailed Solution

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प्रश्न का हिन्दी अनुवाद:-बालक स्वाभाविक रूप से उसके प्रथम भाषा अथवा मातृभाषा को ______

स्पष्टीकरण:- विद्यार्थी द्वारा दो तरह से भाषा सीखी जा सकती है-

  • भाषा अर्जन,
  • भाषा अधिगम।

भाषा अर्जन- इस प्रक्रिया में बालक सुनकर, बोलकर,स्वाभाविक रूप से​ भाषा ग्रहण करता है तथा निरंतर परिमार्जन करता रहता है।भाषा सीखने की प्रक्रिया में भाषा अर्जन की प्रक्रिया महत्त्वपूर्ण होती है। अर्जन में सामान्यतः अनुकरण की प्रवत्ति दिखाई देती है। भाषा अर्जन की यह प्रक्रिया दो साल की अवस्था तक चलती है जो मुख्यतः श्रवण और अनुकरण की प्रक्रति-प्रदत्त स्वाभाविक शक्ति पर निर्भर करती है।

अतः स्पष्ट है कि बालक स्वाभाविक रूप से का प्रथम भाषा अथवा मातृभाषा अधिग्रहण अर्थात् अर्जन करते हैं।

भाषाया∶ अधिगमस्‍य कृते किं न महत्‍वपूर्णम्?

  1. अनुवाद∶
  2. प्रोत्‍साहनम्
  3. आत्‍मविश्‍वास∶
  4. अधिगमं प्रति प्रवृत्ति∶

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : अनुवाद∶

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 8 Detailed Solution

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प्रश्न अनुवाद - भाषा के अधिगमन के लिये क्या महत्त्वपूर्ण नहीं होता है?

स्पष्टीकरण -

भाषा अधिगमन की परिभाषा - अधिगम अर्थात् सीखना। भाषा के अधिगम के द्वारा हम पढना - लिखना सीखते है। भाषा अधिगम यह एक चेतन प्रक्रिया होती है। इस प्रक्रिया में भाषा को व्याकरणों के नियमों द्वारा सीखा जाता है। भाषा सीखने के लिये भिन्न-भिन्न विधियों का प्रयोग करते है। भाषा की लेखनप्रक्रिया कैसे होती है, उसकी संरचना तथा शब्दविज्ञान इत्यादि सारे नियमों को बच्चों को स्मरण करवाया जाता है। भाषा अधिगम से हम जो भाषा सीखते है उसे द्वितीय भाषा कहते हैं।

Important Points

भाषा अधिगम की प्रक्रिया को बोधगम्य सामग्री के अलावा अन्य कारक भी प्रभावित करते है। यथा - विद्यार्थी को मिलनेवाला प्रोत्साहन​, उसका आत्मविश्वास​, भाषा अधिगम के प्रति प्रवृत्ति अर्थात् भाषा सीखने के लिये उसका रवैया इत्यादि। भाषा अधिगम प्रक्रिया में बोधगम्य सामग्री के साथ साथ यह कारक भी बहुत ही महत्त्वपूर्ण और प्रभावशाली है, क्योंकि अगर इनका इस प्रक्रिया में अभाव रहता है तो विद्यार्थी भाषा सीखने में असफल रहते हैं। 

Additional Information

भाषा अधिगम में अनुवाद की आवश्यकता नही होती, क्योंकि अनुवाद करना एक जटिल कार्य है। यदि हमें एक भाषा से दुसरे भाषा में अनुवाद करना है तो हमें उन दोनों भाषाओं का ज्ञान होना आवश्यक है। अतः एक भाषा के गठन को दूसरी भाषा की गठन में परिवर्तित करने का दुष्कर कार्य द्वितीय भाषा सीखनेवाला विद्यार्थी पूरा नहीं कर सकता।

अतः स्पष्ट है कि भाषा अधिगम के लिए अनुवाद की आवश्यकता नहीं होती है।

विद्यार्थिन∶ भाषाया∶ अधिग्रहणं कुर्वन्ति _____

  1. तस्‍या∶ भाषाया∶ प्रयोक्‍तृणां संस्‍कृतिविषये ज्ञात्‍वा। 
  2. सामाजिकविनिमयात्‍मकवातावरणे भाषाया∶ व्‍यवहारं कृत्‍वा।
  3. भाषाया∶ संरचनाया∶ विश्‍लेषणं कृत्‍वा।
  4. तस्‍या∶ भाषाया∶ साहित्‍यस्‍य अध्‍ययनं कृत्‍वा।

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : सामाजिकविनिमयात्‍मकवातावरणे भाषाया∶ व्‍यवहारं कृत्‍वा।

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 9 Detailed Solution

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प्रश्न अनुवाद - विद्यार्थी भाषा का अधिग्रहण करते हैं _________।

स्पष्टीकरण भाषा अधिग्रहण एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिससे मनुष्य भाषा को ग्रहण कर उसे स्वाभाविक रूप से समझने की क्षमता को अर्जित करता है और फिर संवाद में उस भाषा का प्रयोग करता है। भाषा का अधिग्रहण करने के लिये पुस्तक और व्याकरण की आवश्यकता नहीं होती है। इसमें आस-पास के वातावरण और लोगों के माध्यम से स्वाभाविक रूप से भाषा अर्जित की जाती है। इसे भाषा अर्जन भी कहते हैं।

चॉम्स्की के अनुसार – "भाषा अर्जन की क्षमता बालकों में जन्मजात होती है और वह भाषा की व्यवस्था को पहचानने की शक्ति के साथ पैदा होता है।"

भाषा के अधिग्रहण में संवाद की बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। बालक जिस प्रकार संवाद करते हुये देखता है, वैसे ही दूसरो से संवाद करता है। जैसे कि बालक बाल्यावस्था में अपने परिवार के साथ अधिक समय व्यतीत करता है। वह अपने परिवार में अपने माता-पिता तथा बडे़ बुजुर्गों को आपस में जिस प्रकार भाषा का व्यवहार करते हुये देखता है, वैसे ही भाषा अर्जित करता है। आस-पास के लोग जो भी बात करते हैं, उनके वाक्यों को बालक बिना अर्थ जाने दोहराता है। वह भाषा के जिस रूप को बार बार सुनता है, वही उसे याद हो जाते हैं और उसी रूप को वह अपने व्यवहार में प्रयोग करने लगता है। इसमें बालक ने सामाजिक रूप से भाषा को समझा और वैसे ही व्यवहार करने लगा। अतः सामाजिक विनिमयात्मक वातावरण में भाषा का व्यवहार करके ही बालक भाषा का अधिग्रहण करते हैं, यह स्पष्ट होता है।

Additional Information

अन्य विकल्पों का विश्लेषण -

  • तस्‍या∶ भाषाया∶ प्रयोक्‍तृणां संस्‍कृतिविषये ज्ञात्‍वा। - उस भाषा के प्रयोगकर्ता की संस्कृति विषय में जानकर​।
  • भाषाया∶ संरचनाया∶ विश्‍लेषणं कृत्‍वा। - भाषा का संरचना का विश्लेषण करके।​
  • तस्‍या∶ भाषाया∶ साहित्‍यस्‍य अध्‍ययनं कृत्‍वा। - उस भाषा के साहित्य का अध्ययन कर​के।

उपरोक्त तीनों विकल्प असंगत होंगे क्योंकि इसमें भाषा को प्राकृतिक रूप से, सहजता से अर्जित नहीं किया है। भाषा के नियमबद्ध अभ्यास के लिये यह विकल्प होने के कारण भाषा अधिग्रहण में इनका अंतर्भाव नहीं होता है। अपितु भाषा अधिगम में इसका अन्तर्भाव होता है। जो एक औपचारिक प्रक्रिया होती है।

कदाचित् काचित् बालिका हिन्दीभाषाप्रयुक्त-राज्यात् भवतः प्रान्तम् आगच्छति, तथा भवतः सम्बन्धि भाषाप्रयोगे प्रमादान् करोति। तदा एकः अध्यापकः भूत्वा अधस्तनेषु कथनेषु किं युक्तमिति भवान्/भवती चिन्तयति?

  1. तस्याः भाषाप्रयोगप्रमादानां विषये वारं वारं स्मारणीयम्।
  2. तस्यैः समीचीनभाषाप्रयोगार्थम् इतोपि अवकाशाः देयाः।
  3. प्रतिदिनं अर्धघण्टां यावत् नूतनभाषाभ्यासः करणीयः।
  4. तस्याः मातृभाषाप्रभावः अधीयमाननूतनभाषायाः उपरि न स्यात्।

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : तस्यैः समीचीनभाषाप्रयोगार्थम् इतोपि अवकाशाः देयाः।

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 10 Detailed Solution

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प्रश्न का हिन्दी अनुवाद - कोई बालिका हिन्दी-भाषा युक्त राज्य से आपके राज्य में आती है, और आपके संबंधी भाषा प्रयोग में प्रमाद करती है। तब एक अध्यापक होने के कारण आप इनमेसे कौनसी युक्ति करेंगे?

स्पष्टीकरण - बालिका हिन्दी भाषा युक्त राज्य से आयी है, इससे सूचित होता है उसकी मातृभाषा हिन्दी होनी चाहिए। उसे संस्कृत भाषा सीखनेमें प्रमाद हो रहा है, अतः बालिका का हिन्दी भाषा से संस्कृत भाषा का शिक्षण होगा। नयी भाषा सिखने के लिए उसे द्विभाषी विधि का प्रयोग हो सकता है।

द्विभाषी विधि: इस विधि में दो भाषाओं, मातृभाषा और लक्ष्य भाषा का उपयोग किया जाता है। इसे प्रत्यक्ष विधि (अंग्रेजी, अंग्रेजी के माध्यम से पढ़ाया जाता है) और व्याकरण अनुवाद विधि (अंग्रेजी में प्रत्येक शब्द, वाक्यांश, या वाक्य शिक्षार्थियों में अनुवादित किया जाता है) का संयोजन माना जा सकता है। इसका उद्देश्य शिक्षार्थी की द्विभाषी बनाना होता है- दो भाषाओं का समान रूप से उपयोग करने की क्षमता है। 

द्विभाषी विधि के सिद्धांत:

  • यह विधि छात्रों के भाषा आदतों का उपयोग करती है। 
  • लक्ष्य भाषा में शब्दों और वाक्यों को मातृ भाषा में समकक्षों एक साथ प्रस्तुत किया जाता है। 
  • लक्ष्य भाषा में स्वरुप अभ्यास को तत्काल सख्ती के साथ लिया जाता है। 
  • वाक्य शब्द नहीं है, यह शिक्षण की इकाई है। 
  • समय की बचत का उपयोग अभ्यास के लिए किया जा सकता है।
  • लक्ष्य भाषा के व्याकरण को भाषा 1 के माध्यम से अच्छी तरह से वर्णित किया जाता है। 
  • भाषा 1 का उपयोग केवल शिक्षकों तक सीमित है। 
  • छात्र कभी भी उनके भाषा 1 में कुछ नहीं कहते हैं। 
  • मातृ भाषा का उपयोग धीरे-धीरे कम हो जाता है।

इससे स्पष्ट होता है नयी भाषा सीखने के इन प्रक्रियाओ को समय देना ज़रूरी है अतः 'तस्यैः समीचीनभाषाप्रयोगार्थम् इतोपि अवकाशाः देयाः।' अर्थात् 'उसे योग्य भाषा के प्रयोग के लिए समय देना चाहिए' 

Additional Information

'तस्याः भाषाप्रयोगप्रमादानां विषये वारं वारं स्मारणीयम्।' अर्थात् 'उसे भाषा प्रयोग के गलतियों के बारे में बार बार याद दिलाना'

'प्रतिदिनं अर्धघण्टां यावत् नूतनभाषाभ्यासः करणीयः।' अर्थात् 'हर रोज आधा घंटा नए भाषा का अभ्यास करना चाहिए'

'तस्याः मातृभाषाप्रभावः अधीयमाननूतनभाषायाः उपरि न स्यात्।' अर्थात् 'उस पर मातृभाषा का प्रभाव लक्ष्य भाषा के ऊपर नहीं होना चाहिए'

संशोधनात्मकस्‍य (Remedial) अध्यापनस्य प्रयोजनम् अस्ति-

  1. छात्रस्य अधिगमे संशोधनम्।
  2. छात्रस्य अधिगमे, अध्यापकस्य च अधिगमे संशोधनम्।
  3. परीक्षायां छात्रस्य निष्पादने संशोधनम्।
  4. कक्षानिष्पादने संशोधनम्।

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : छात्रस्य अधिगमे, अध्यापकस्य च अधिगमे संशोधनम्।

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 11 Detailed Solution

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प्रश्न की हिन्दी - संशोधनात्मक (Remedial) अध्यापन का प्रयोजन है-

स्पष्टीकरण -

छात्र के अधिगम में संशोधनात्मक अध्यापन का प्रयोजन-

  • संशोधनात्मक अध्यापन एक तरह से उपचारात्मक शिक्षण ही है। जिसमें छात्रों की अधिगम सम्बन्धी गतिविधियों में सुधार करने का प्रयास किया जाता है। 
  • संशोधनात्मक या उपचारात्मक शिक्षण अधिगम कार्यक्रम प्रतिपूरक या सुधारात्मक शिक्षण के रूप में भी जाना जाता है। 
  • इसका मुख्य उद्देश्य उन शिक्षार्थियों को अतिरिक्त सहायता देना है, जो विषय में शेष कक्षा से पिछड़ गए हैं तथा यह धीमी शिक्षार्थियों की पहचान करने और उन्हें उनकी अधिगम सम्बन्धी समस्याओं को दूर करने के लिए आवश्यक सहायता और मार्गदर्शन प्रदान करने की प्रक्रिया है।
  • उपचारात्मक शिक्षण का मूल उद्देश्य विद्यार्थियों की अशुद्धियों का निवारण करना है। उपचार करते समय अध्यापक को विद्यार्थियों के प्रति प्रेम तथा सहानुभूति का व्यवहार करना चाहिए।
  • शिक्षक द्वारा किये गये स्नेहपूर्ण व्यवहार से छात्रों के विश्वास में वृद्धि होगी और वे सीखने हेतु अधिक प्रयास करेंगे, जो उनके अधिगम में सहायक होगा।
  • शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में एक वातावरण विशेष में प्रदान की जाती है। जहाँ अध्यापक पाठ्यवस्तु के द्वारा छात्रों को उस विषय का ज्ञान देने का प्रयास करता है। यह सब एक कक्षा-कक्ष में सम्पन्न होता है।
  • प्रत्येक कक्षा में भिन्न-भिन्न व्यक्तित्व के छात्र उपस्थित होते हैं, जिसमें बुद्धिमान, औसत और निम्न बुद्धि वाले छात्र होते हैं। शिक्षक को पाठ्यवस्तु को इस प्रकार प्रस्तुत करना चाहिए कि सभी बच्चे उसे समझ सकें।​

अध्यापक के अधिगम में संशोधनात्मक अध्यापन का प्रयोजन-

  • अंकगणित तथा बीजगणित के आधारभूत उप-विषयों को पढ़ाते समय सावधानी वरती जाए। दशमलव, प्रतिशत, अनुपात, एकिक नियम, समीकरण, लेखाचित्र आदि गणित के आधारभूत उप-विषय हैं जिनका व्यापक प्रयोग समस्याओं को हल करने में किया जाता है। इन उप-विषयों को अत्यन्त सावधानी से पढ़ाया जाए।
  • श्यामपट्ट पर लिखी हुई सामग्री व्यवस्थित, स्पष्ट एवं उपयोगी होनी चाहिए।
  • श्यामपट कार्य का विकास छात्रों के सक्रिय सहयोग से किया जाए।
  • कक्षा में छात्रों को जागरूक रखने के लिए प्रभावी प्रश्नोत्तर प्रविधि का प्रयोग किया जाए।

Confusion Pointsछात्रस्य अधिगमे संशोधनम्। अर्थात छात्र के अधिगम में संशोधन एवं छात्रस्य अधिगमे, अध्यापकस्य च अधिगमे संशोधनम्। अर्थात छात्र के अधिगम और अध्यापक के अधिगम में संशोधन इन दो पर्यायों में गड़बड़ाने की सम्भावना है परंतु यहा एक बात ध्यान में रखनी चाहिए की, जिस प्रकार बालकों के लिए उपचारात्मक शिक्षण का प्रयोग किया जाता है उसी प्रकार शिक्षक अथवा अध्यापक के अधिगम में संशोधन किया जाता है, यदि बालकों को अधिगम में कोई कठिनाई प्राप्त होती है तो सर्वप्रथम एक शिक्षक होने के नाते शिक्षक ने स्वयंपरिक्षण करना होगा की बच्चों को कहा और क्यों कठिनाई प्राप्त हो रही है

अतः कहा जा सकता है कि संशोधनात्मक अध्यापन का प्रयोजन छात्रों के अधिगम में संशोधन और अध्यापक के अधिगम में संशोधन करना है।

Important Points

उपचारात्मक शिक्षण के उद्देश्य:-

  • विद्यार्थियों की भाषा सम्बंधित अशुद्धियों तथा त्रुटियों को दूर करना।
  • विद्यार्थियों के ज्ञान प्राप्ति में आने वाली त्रुटियों को दूर करना।
  • विद्यार्थियों की संवेगात्मक समस्याओं का समाधान करके उनको असमायोजन से बचाना।
  • विद्यार्थियों को मानसिक रूप से स्वस्थ बनाना, उनका आत्मविश्वास बढ़ाना तथा शिक्षण ग्रहण करने के योग्य बनाना।
  • समाज में स्वीकृत आदतों का परिमार्जन करना।
  • विषय विशेष को सीखने में अक्षमताओं को दूर करना।

Additional Information

अन्य विकल्पों का स्पष्टीकरण -

  • छात्रस्य अधिगमे संशोधनम्। (छात्र के अधिगम में संशोधन।)
  • परीक्षायां छात्रस्य निष्पादने संशोधनम्। (परीक्षा में छात्र के निष्पादन में संशोधन करना।)
  • कक्षानिष्पादने संशोधनम्। (कक्षा निष्पादन में संशोधन।) (ये तीनों ही विकल्प यहाँ असंगत है।)

‘पृच्छा-आश्रित-अधिगमनम्’ (Enquiry based learning) इत्यस्य लक्षणं कुत्र?

  1. शिक्षकः कार्यं स्पष्टीकृत्य अधिगमनार्थं साहाय्यं करोति।
  2. छात्राः स्वजिज्ञासां प्रकटीकुर्वन्ति।
  3. उपरिलिखितयोः प्रथमं द्वितीयञ्च/उपरिलिखितं (1) (2) च
  4. केवलं द्वितीयम् (2)

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : उपरिलिखितयोः प्रथमं द्वितीयञ्च/उपरिलिखितं (1) (2) च

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 12 Detailed Solution

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प्रश्न का अनुवाद - 'पृच्छा-आश्रित-अधिगम' इसका लक्षण कहाँ है?

स्पष्टीकरण -

पृच्छा-आश्रित-अधिगम - यह प्रश्नों को प्रस्तुत करने और नई समझ की खोज में निर्णय लेने के लिए बच्चे को अपने स्वयं के अनुभवों से संबद्ध करने पर जोर देता है।

Important Points

पृच्छा-आश्रित-अधिगम की उपयोगिता -

  • यह छात्र की खोज और अन्वेषण करने की क्षमता विकसित करता है, अर्थात् छात्र अपनी जिज्ञासा को प्रकट करते हैं।
  • शिक्षक छात्रों की जिज्ञासा को शान्त कर अधिगम के लिए सहायता करता है।
  • यह अधिगम में छात्र के पांच इंद्रिय अंगों के उपयोग पर जोर देता है।
  • इसमें मानसिक, शारीरिक और बौद्धिक रूप से छात्र की भागीदारी की आवश्यकता होती है।
  • इसमें अनुमान लगाना, अवलोकन करना, पूर्वानुमान करना, वर्गीकरण करना, सवाल करना, मापन करना, विश्लेषण करना और व्याख्या करना शामिल है।

अतः यह निष्कर्ष निकलता है कि पृच्छा-आश्रित-अधिगम में ‘छात्राः स्वजिज्ञासां प्रकटीकुर्वन्ति’ अर्थात् छात्र अपनी जिज्ञासा को प्रकट करते हैं और ‘शिक्षकः कार्यं स्पष्टीकृत्य अधिगमनार्थं साहाय्यं करोति’ अर्थात् शिक्षक छात्रों की जिज्ञासा को शान्त कर अधिगम के लिए सहायता करता है। 

भाषाधिगमार्थं किं सर्वाधिकं महत्त्वपूर्णम्?

  1. पाठ्यपुस्तकम्
  2. अतिरिक्तपठनसामग्री
  3. बालसाहित्यम्
  4. अभ्यास-प्रपत्रम्

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : बालसाहित्यम्

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 13 Detailed Solution

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प्रश्न का अनुवाद - भाषा अधिगम के लिए सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण क्या है?

स्पष्टीकरण - अधिगम शब्द दो शब्दों के मेल से बना है 'अधि' तथा 'गम'। यहाँ 'अधि' का अर्थ है 'भली प्रकार' तथा 'गम' का अर्थ है 'जाना'। अर्थात किसी बात या विषय के समीप अच्छी तरह जाना और उसकी भली भांति जानकारी प्राप्त करना।

भाषा अधिगम से तात्पर्य मातृभाषा के अतिरिक्त किसी अन्य भाषा को सीखने से है। यह एक ऐसी प्रक्रिया को प्रस्तुत करता है जो बच्चों को अन्य भाषा प्रयोग में भी दक्ष बनाती है। प्रारंभ में सामाजिक अन्तःक्रिया के फलस्वरूप ही बालक सामाजिक भाषा को सीख के अपने भावों और विचारों को आसानी से सही रूप में प्रस्तुत कर पाने में सक्षम होता है। कोई भी भाषा सीखने का एक क्रम होता है-

  • विद्यार्थी अपने तात्कालिक परिवेश में बोले जाने वाली ध्वनियों, शब्दों एवं वाक्यों को ग्रहण करता है, और बोलने का प्रयत्न करता है।
  • उत्तरोत्तर, वह कुछ ध्वनियों, शब्दों, एकाक्षर शब्दों आदि के साथ अभिव्यक्ति तथा संप्रेषण का प्रयोग करता है और धीरे-धीरे छोटे सरल वाक्य बनाना सीखता है।
  • इसी क्रम में आगे चलकर विधिवत औपचारिक भाषा-शिक्षण द्वारा भाषा-अधिगम होता है जो पूर्णतः पूर्व निर्धारित उद्देश्यों पर आधारित होता है।

भाषा अधिगम में बालसाहित्य, पाठ्यपुस्तक, अतिरिक्तपठनसामग्री, अभ्यास-प्रपत्र सभी सहायक होते हैं तथापि बालसाहित्य भाषाधिगम में अत्यन्त महत्वपूर्ण है जिससे बालक में तत् संबन्धी भाषा में रुचि और प्रारम्भिक ज्ञान की प्राप्ती होती है।

Additional Information

एक विद्यार्थी द्वारा दो तरह से भाषा सीखी जा सकती है- 'भाषा अधिगम' तथा 'भाषा अर्जन'

  • भाषा अर्जन - इस प्रक्रिया में बालक सुनकर, बोलकर, भाषा ग्रहण करता है तथा निरंतर परिमार्जन करता रहता है। भाषा सीखने की प्रक्रिया में भाषा अर्जन की प्रक्रिया महत्त्वपूर्ण होती है। अर्जन में सामान्यतः अनुकरण की प्रवृत्ति दिखाई देती है।

प्राथमिकस्तरे बालस्य भाषाविकासार्थं सर्वतो महत्वपूर्णम् अस्ति _______

  1. व्याकरणम् ज्ञानम् 
  2. भाषासमृद्धं वातावरणम्
  3. भाषायाः पाठ्यपुस्तकम्
  4. बालस्य आकलनम्

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : भाषासमृद्धं वातावरणम्

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 14 Detailed Solution

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प्रश्न का हिन्दी अनुवाद:-प्राथमिक स्तर पर बालक के भाषा विकास के लिए सबसे महत्वपूर्ण है_____

स्पष्टीकरण:-प्राथमिक स्तर पर बालकों में भाषा का अर्जन होता है। भाषा अर्जन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य ज्ञान को बूझने और समझने के साथ-साथ शब्दों और वाक्यों को संप्रेषित करने और उपयोग करने की क्षमता प्राप्त करता है।

भाषा अर्जन: इस प्रक्रिया में बालक सुनकर, बोलकर भाषा ग्रहण करता है तथा निरंतर परिमार्जन करता रहता है। भाषा सीखने की प्रक्रिया में भाषा अर्जन की प्रक्रिया महत्त्वपूर्ण होती है। सीखी हुई भाषा को समझने की क्षमता अर्पित करना तथा उसे दैनिक जीवन में प्रयोग में लाने को भाषा अर्जन कहते हैं। अर्जन में सामान्यतः अनुकरण की प्रवृत्ति दिखाई देती है। 

  • भाषा अर्जन एक सहज एवं स्वाभाविक प्रक्रिया है जिसमें बच्चें घरेलू परिवेश में भाषा के नियमों को आसानी से आत्मसात् करते हैं, और बच्चे ;भाषा को सहज और स्वाभाविक रूप से सीखते हैं।
  • भाषा अर्जन के माध्यम से  बालक अनुकरण द्वारा प्रथम भाषा सीख कर अपनी बातों को बोलचाल अर्थात घर की भाषा में आसानी से अभिव्यक्त कर पाता है।
  • भाषा अर्जन प्रक्रिया के माध्यम से बच्चे अनुकरण द्वारा ;भाषा सीख कर अपनी बातों को अभिव्यक्त कर पाने में सक्षम हो पाता है।
  • भाषा अर्जन की प्रक्रिया एक स्वाभाविक, और अनौपचारिक प्रक्रिया है जो कक्षा में भाषा के अधिगम से भिन्न होती है।

अतः उपर्युक्त पंक्तियों से स्पष्ट है कि प्राथमिक स्थर में बालक के भाषा-विकास के लिए भाषा समृद्ध वातावरण सबसे महत्वपूर्ण होता है। इसलिए 'भाषासमृद्धं वातावरणम्' यह उचित पर्याय है। 

अधस्तनेषु किं भाषाधिग्रहणाधिगमयोः मूलभूतं पार्थक्यं वर्तते?

  1. प्रवाहः शुद्धता च (Fluency and Accuracy)
  2. भाषायाः साम्मुख्यम् (Exposure to Language)
  3. शुद्धता वेगः च (Accuracy and pace)
  4. वेगः उच्चारणम् च (Pace and Pronunciation)

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : भाषायाः साम्मुख्यम् (Exposure to Language)

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन Question 15 Detailed Solution

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प्रश्न का अनुवाद - निम्नलिखित में से क्या भाषार्जन और अधिगम में मूलभूत अन्तर है?

स्पष्टीकरण - विद्यार्थी द्वारा दो तरह से भाषा सीखी जा सकती है -

  1. भाषा अर्जन - इस प्रक्रिया में बालक सुनकर, बोलकर, भाषा ग्रहण करता है तथा निरंतर परिमार्जन करता रहता है।भाषा सीखने की प्रक्रिया में भाषा अर्जन की प्रक्रिया महत्त्वपूर्ण होती है। अर्जन में सामान्यतः अनुकरण की प्रवृत्ति दिखाई देती है।
  2. भाषा अधिगम - अधिगम शब्द दो शब्द के मेल से बना है 'अधि' तथा 'गम'। यहाँ 'अधि' का अर्थ है 'भली प्रकार' तथा 'गम' का अर्थ है 'जानना'। अर्थात किसी बात या विषय के समीप अच्छी तरह जाना और उसकी भली भांति जानकारी प्राप्त करना।

Important Pointsभाषा अर्जन एवं भाषा अधिगम में स्थित मुलभूत अन्तर-

विद्यार्थी भाषा अधिगम और भाषार्जन इन दोनों ही प्रकार से भाषा अधिग्रहण करते है परन्तु इन दोनों में मुख्यत: जो अन्तर है वह बच्चा किस स्थिति में किससे सम्पर्क में आता है और किस परिस्थिति में अथवा किस साधन के माध्यम से भाषा ग्रहण करता है यही इसका मुलभुत उद्देश होता है। इसलिए

भाषा अर्जन एक ऐसी प्रक्रिया है। जिसके अंतर्गत हम अपने आस पास के वातावरण, माता पिता और अपने से बड़ो व्यक्तियों के सम्पर्क में रहकर भाषा को सीखते है। यह एक प्राकृतिक प्रकिया है। इसके लिए कोई औपचारिक साधन की आवश्यकता नही पड़ती है। यह एक प्रकार से मातृ भाषा या क्षेत्रीय भाषा होती है। इसे भाषा प्रथम के नाम से भी जानते है।

भाषा अधिगम  जिन भाषाओ को सीखने के लिए हम औपचारिक साधनों का प्रयोग करते है। साथ ही साथ जिसे सीखने के लिए नियम और ग्रामर होती है। उसे भाषा अधिगम कहते है।इसे भाषा द्वितीय के नाम से जानते है। इसके अंतर्गत क्षेत्रीय भाषा के अलावा अन्य भाषाएँ आदि जाती है। इसमे अंग्रेजी भाषा भी आ जाती है।

इस प्रकार स्पष्टीकरण से हमें ज्ञात होता है की, भाषार्जन और भाषा अधिगम में भाषा ग्रहण करने के जो विभिन्न तरीके होते है वही भाषार्जन और अधिगम में मूलभूत अन्तर है और इसी प्रक्रिया को भाषा का साम्मुख्यम् भी कहते है। भाषा का सम्पर्क- यह भाषा सीखने के महत्वपूर्ण प्रारंभिक वर्षों के दौरान बच्चों को आसानी से भाषा उपलब्ध कराने की प्रकिया है।

अत: भाषायाः साम्मुख्यम् (Exposure to Language) यह पर्याय उचित है।
Key Points

भाषा अर्जन एवं भाषा अधिगम दोनों में संवाद (अनुवाद) सबसे पहले तथा अनिवार्य होता है। अतः यह कथन पूर्णतः गलत है कि भाषा अर्जन एवं भाषा अधिगम में अनुवाद का उपयोग नहीं किया जाता है। 

भाषा अर्जन परिभाषा - चॉम्स्की के अनुसार –‘भाषा अर्जन की क्षमता बालकों में जन्मजात होती है तथा वह भाषा को पहचानने की शक्ति के साथ ही पैदा हो में हैं। 

  • यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। 
  • इसे हम अपने आ पास के वातावरण द्वारा सीख लेते हैं 
  • यह अनौपचारिक शिक्षण कहलाता है 

भाषा अधिगम परिभाषा - चॉम्स्की के अनुसार- 'बालकों में भाषा सीखने की क्षमता जन्मजात होती है तथा भाषा मानव मस्तिष्क में पहले से ही सम्मिलित होती है 

  • यह एक कृत्रिम प्रक्रिया है। 
  •  इसे सीखने के लिए विशेष स्थान (विद्यालय) की आवश्यकता होती है 
  • यह मुख्य रूप से औपचारिक शिक्षण होता है

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