वेद MCQ Quiz - Objective Question with Answer for वेद - Download Free PDF
Last updated on Jun 12, 2025
Latest वेद MCQ Objective Questions
वेद Question 1:
अग्नेर्निर्वचनमिदम् नास्ति
Answer (Detailed Solution Below)
वेद Question 1 Detailed Solution
प्रश्न का हिंदी भाषांतर : यास्कसंमत अग्नि का निर्वचन क्या नहीं है?
अग्नि शब्द का निर्वचन:
'अग्निः कस्मात्?'
- अग्रणीर्भवति' - यह अग्रणी होता है यह मनुष्यों का इतना अधिक उपकार करता है कि सभी देवों में प्रमुख हो जाता है, अतः अग्नि कहलाता है।
- 'अग्र यज्ञेषु प्रणीयते' - यज्ञ सम्बन्धी कार्यों में यह सबसे पहले लाया जाता है। यज्ञों में सबसे आगे लाये जाने के कारण अग्रणी होता है, अतः अग्नि कहलाता है।
- अङ्गं नयति सन्नममानः - यह तृण, काष्ठ इत्यादि को आश्रय देता हुआ भी उसे अपना अङ्ग बना लेता है, अतः अग्नि कहलाता है। जिस भी किसी पदार्थ को अग्नि में रखा जाता है उसे जलाकर अथवा बिना जलाये अपने समान सन्तप्त अथवा दिप्तिमान् बना देता है। अङ्ग नयतीति अङ्गनी अग्नि ।
- 'अक्नोपनो भवतीति स्थौलाष्ठीविः' - स्थौलाष्टीवि आचार्य के अनुसार यह अक्नोपम (रूखा या शुष्क) बना देने वाला होता है, अतः अग्नि कहलाता है। इस प्रकार नञ् पूर्वक स्नेहार्धक वनुषी धातु से किन' प्रत्यय होकर अहनी - अग्नि बनता है।
- 'त्रिभ्य आख्यातेा जायत इति शाकपूणि इतात् अक्तात् दग्धाद्वा नीतात् - शाकपूणि आचार्य के अनुसार 'इण्' 'अज्जू' अथवा 'दह्' तथा 'णीञ्' इन तीनों धातुओं से अग्नि शब्द बना है, क्योंकि अग्नि गतिशील, पदार्थव्यञ्जक दाहक और गतिप्रदान करने वाला है। इण् धातु से अकार 'अञ्जू' या 'दह्' धातु से दकार और 'णीञ्' से 'नी' लेकर अग्नि शब्द निष्पन्न होता है।
अतः स्पष्ट है, 'अङ्गगयति गमयति' यह अग्नि का निर्वचन नहीं है।
वेद Question 2:
पाशं कस्य देवस्य प्रसिद्धम् अस्ति?
Answer (Detailed Solution Below)
वेद Question 2 Detailed Solution
प्रश्न का हिंदी भाषांतर : पाश यह आयुध किस देवता का प्रसिद्ध है?
वरुण देवता
- वरुण (प्रचेता) हिन्दू धर्म के एक प्रमुख देवता हैं।
- वरुण का मुख्य अस्त्र पाश है।
- वाल्मीकि रामायण उत्तरकाण्ड के अनुसार महर्षि वाल्मीकि जी वरुण प्रजापति कश्यप और उनकी पत्नी अदिति के ग्यारहवें पुत्र हैं।
- श्रीमद्भागवतपुराण के अनुसार वरुणदेव की पत्नी का नाम चर्षणी है। वरुणदेव का वाहन मगरमच्छ है और वे जललोक के अधिपति हैं।
- प्राचीन वैदिक धर्म में उनका स्थान बहुत ही महत्त्वपूर्ण था पर वेदों में उसका रूप इतना अमूर्त हैं कि उसका प्राकृतिक चित्रण मुश्किल है।
- माना जाता है कि वरुण की स्थिति अन्य वैदिक देवताओं की अपेक्षा प्राचीन है, इसीलिए वैदिक युग में वरुण किसी प्राकृतिक उपादान का वाचक नहीं है।
- अग्नि व इंद्र की अपेक्षा वरुण को संबोधित सूक्तों की मात्रा बहुत कम है फिर भी उसका महत्व कम नहीं है।
- इंद्र को महान योद्धा के रूप में जाना जाता है तो वरुण को नैतिक शक्ति का महान पोषक माना गया है, वह ऋत (सत्य) का पोषक है।
- अधिकतर सूक्तों में वस्र्ण के प्रति उदात्त भक्ति की भावना दिखाई देती है।
- ऋग्वेद के अधिकतर सूक्तों में वरुण से किए गए पापों के लिए क्षमा प्रार्थना की गई हैं।
- वरुण को अन्य देवताओं जैसे इंद्र आदि के साथ भी वर्णित किया गया है।
- वरुण से संबंधित प्रार्थनाओं में भक्ति भावना की पराकाष्ठा दिखाई देती है।
- उदाहरण के लिए ऋग्वेद के सातवें मंडल में वस्र्ण के लिए सुंदर प्रार्थना गीत मिलते हैं।
अतः स्पष्ट है, की "वरुणदेवस्य" यह इस प्रश्न का सही उत्तर है।
पाश
- पाश अस्त्र दो प्रकार के होते हैं:-
1) वरुणपाश
2)साधारणपाश
- इस्पात के महीन तारों को बटकर ये बनाये जाते हैं। एक सिर त्रिकोणवत होता है। नीचे जस्ते की गोलियाँ लगी होती हैं।
- कहीं-कहीं इसका दूसरा वर्णन भी है। वहाँ लिखा है कि वह पाँच गज का होता है और सन, रूई, घास या चमड़े के तार से बनता है।
- इन तारों को बटकर इसे बनाते हैं। ये वे शस्त्र हैं, जो यान्त्रिक उपाय से फेंके जाते थे; ये अस्त्रनलिका आदि हैं नाना प्रकार के अस्त्र इसके अन्तर्गत आते हैं।
- अग्नि, गैस, विद्युत से भी ये अस्त्र छोडे जाते हैं।
- प्रमाणों की ज़रूरत नहीं है कि प्राचीन आर्य गोला-बारूद और भारी तोपें, टैंक बनाने में भी कुशल थे।
- इन अस्त्रों के लिये देवी और देवताओं की आवश्यकता नहीं पड़ती।
- ये भयकंर अस्त्र हैं और स्वयं ही अग्नि, गैस या विद्युत आदि से चलते हैं। इनका प्राचीन संस्कृत-ग्रन्थों में उल्लेख है।
वेद Question 3:
द्वितीय मण्डलस्य द्वादश सूक्ते कस्य देवतायाः स्तुतिः कृतम्?
Answer (Detailed Solution Below)
वेद Question 3 Detailed Solution
प्रश्न का हिंदी भाषांतर : द्वितीय मण्डल के द्वादश सूक्त में किस देवता की स्तुति की गयी है?
स्पष्टीकरण :
- ऋग्वेद के द्वितीय मंडल का द्वादश सूक्त इंद्रसूक्त के नाम से जाना जाता है। उसका विवरण इस प्रकार है -
- ऋषि: - गृत्समदः शौनकः
- देवता - इन्द्र:
- छन्दः - त्रिष्टुप्
- इस सूक्त में इन्द्र के पराक्रम का वर्णन आया है, जिस में ऋषि इन्द्र का परिचय देते हुए इन्द्र का महिमागान करते हैंं।
अतः स्पष्ट है, की "इन्द्र देवतायाः" यह इस प्रश्न का सही उत्तर है।
इंद्र-देवता :
- ऋग्वेद के लगभग एक-चौथाई सूक्तभगवान इन्द्र से सम्बन्धित हैं। 250 सूक्तों के अतिरिक्त 50 से अधिक मन्त्रों में उसका स्तवन प्राप्त होता है।वह ऋग्वेद का सर्वाधिक लोकप्रिय और महत्त्वपूर्ण देवता है। उसे आर्यों का राष्ट्रीय देवता भी कह सकते हैं।
- मुख्य रूप से वह वर्षा का देवता है जो कि अनावृष्टि अथवा अन्धकार रूपी दैत्य से युद्ध करता है तथा अवरुद्ध जल को अथवा प्रकाश को विनिर्मुक्त बना देता है। वह गौण रूप से आर्यों का युद्ध-देवता भी है, जो दैत्यों के साथ युद्ध में उन आर्यों की सहायता करता है।
- भगवान इन्द्र का मानवाकृतिरूपेण चित्रण दर्शनीय है। उसके विशाल शरीर, शीर्ष भुजाओं और बड़े उदर का बहुधा उल्लेख प्राप्त होता है।[5] उसके अधरों और जबड़ों का भी वर्णन मिलता है। उसका वर्ण हरित् है। उसके केश और दाढ़ी भी हरित्वर्णा है। वह स्वेच्छा से विविध रूप धारण कर सकता है।
- ‘निष्टिग्री’ अथवा ‘शवसी’ नामक गाय को उसकी माँ बतलाया गया है। उसके पिता ‘द्यौः’ या ‘त्वष्टा’ हैं। एक स्थल पर उसे ‘सोम’ से उत्पन्न कहा गया है। उसके जन्म के समय द्यावा-पृथ्वी काँप उठी थी। भगवान इन्द्र के जन्म को विद्युत् के मेघ-विच्युत होने का प्रतीक माना जा सकता है।
- भगवान इन्द्र के सगे-सम्बन्धियों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है - अग्नि और पूषन् उसके भाई हैं। इसी प्रकार देवी इन्द्राणी उसकी पत्नी है। मरुद्गण उसके मित्र तथा सहायक हैं। उसे वरुण, वायु, सोम, बृहस्पति, पूषन् और विष्णु के साथ युग्मरूप में भी कल्पित किया गया है तीन चार सूक्तों में वह सूर्य का प्रतिरूप है।
- भगवान इन्द्र एक वृहदाकार देवता है। उसका शरीर पृथ्वी के विस्तार से कम से कम दस गुना है। वह सर्वाधिक शक्तिमान् है। इसीलिए वह सम्पूर्ण जगत् का एक मात्र शासक और नियन्ता है। उसके विविध विरुद शचीपति (=शक्ति का स्वामी), शतक्रतु (=सौ शक्तियों वाला) और शक्र (=शक्तिशाली), आदि उसकी विपुला शक्ति के ही प्रकाशक हैं।
- सोमरस भगवान इन्द्र का परम प्रिय पेय है। वह विकट रूप से सोमरस का पान करता है। उससे उसे स्फूर्ति मिलती है। वृत्र के साथ युद्धके अवसर पर पूरे तीन सरोवरों को उसने पीकर सोम-रहित कर दिया था। दशम मण्डल के 119वें सूक्त में सोम पीकर मदविह्वल बने हुए स्वगत भाषण के रूप में अपने वीर-कर्मों और शक्ति का अहम्मन्यतापूर्वक वर्णन करते हुए भगवान इन्द्र को देखा जा सकता है। सोम के प्रति विशेष आग्रह के कारण ही उसे सोम का अभिषव करने वाले अथवा उसे पकाने वाले यजमान का रक्षक बतलाया गया है।
- भगवान इन्द्र का प्रसिद्ध आयुध ‘वज्र’ है, जिसे कि विद्युत्-प्रहार से अभिन्न माना जा सकता है। भगवान इन्द्र के वज्र का निर्माण ‘त्वष्टा’ नामक देवता-विशेष द्वारा किया गया था।भगवान इन्द्र को कभी-कभी धनुष-बाण और अंकुश से युक्त भी बतलाया गया है। उसका रथ स्वर्णाभ है। दो हरित् वर्ण अश्वों द्वारा वाहित उस रथ का निर्माण देव-शिल्पी ऋभुओं द्वारा किया गया था।
वेद Question 4:
ऋग्वेदे सोमपा कं कथ्यते?
Answer (Detailed Solution Below)
वेद Question 4 Detailed Solution
प्रश्न का हिंदी भाषांतर : ऋग्वेद में 'सोमपा' किसे कहा जाता है?
इन्द्र देवता :
- सोमपा इंद्र देवता का विशेषण है। सोम यह इंद्र का पेय है।
- यः सोमपा’ कह कर ऋषि ने भगवान इन्द्र की दुर्व्यसन-परता की ओर भी इंगित किया है।
- ‘सोम’ भगवान इन्द्र का परमप्रिय पेय पदार्थ है। उसके बराबर कोई अन्य देवता सोम-पान नहीं कर सकता।
- ‘सोम’ उसे युद्धों के लिए शक्ति और स्फूर्ति प्रदान करता है। सोम-सेवी होने के कारण भगवान इन्द्र को वे लोग परमप्रिय हैं, जो सोम का अभिषव करते हैं अथवा पका कर उसे सिद्ध करते हैं। ऐसे लोगों की वह रक्षा करते है।
- सोमपान करके इन्द्र शत्रु पर विजय प्राप्त करता है।
- इंद्र विकट रूप से सोमरस का पान करता है। उससे उसे स्फूर्ति मिलती है। वृत्र के साथ युद्धके अवसर पर पूरे तीन सरोवरों को उसने पीकर सोम-रहित कर दिया था।
- दशम मण्डल के 119वें सूक्त में सोम पीकर मदविह्वल बने हुए स्वगत भाषण के रूप में अपने वीर-कर्मों और शक्ति का अहम्मन्यतापूर्वक वर्णन करते हुए भगवान इन्द्र को देखा जा सकता है। सोम के प्रति विशेष आग्रह के कारण ही उसे सोम का अभिषव करने वाले अथवा उसे पकाने वाले यजमान का रक्षक बतलाया गया है।
अतः स्पष्ट है, की "इन्द्रदेवः" यह इस प्रश्न का सही उत्तर है।
वेद Question 5:
कः देव प्रकुपितान् पर्वतान् अरम्नात् च रक्षसान् हत्वा सागरान् प्रवाहितं कृतवान्?
Answer (Detailed Solution Below)
वेद Question 5 Detailed Solution
प्रश्नानुवाद: कौन से देवता ने विक्षुब्ध पर्वतों को स्थिर किया एवं राक्षसों को मारकर सागरों को प्रवाहित किया था?
स्पष्टीकरण: इंद्र देव के द्वारा विक्षुब्ध पर्वतों को स्थिर एवं राक्षसों को मार कर सागरों को प्रवाहित किया गया था।
मुख्य बिन्दु:
- वैदिक देवताओं में इंद्रदेव को सबसे प्रमुख एवं प्रसिद्ध देवता के रूप में देखा गया है।
- ऋग्वेद के २ मंडल के १२वें सूक्त के दूसरे मन्त्र में उपरोक्त का वर्णन इस प्रकार किया गया है:
- यः पृथिवीं व्यथामानामंदृहद् यः पर्वतान् प्रकुपितां अरम्णात्। यो अन्तरिक्षं विममे वरीयो यो द्यामस्तभ्नात्स जनास इन्द्रः।।
- अर्थ: जिसने कांपती हुई पृथवी को स्थिर किया, विक्षुब्ध (इच्छानुसार इधर-उधर विचरण करते हुए पंखयुक्त) पर्वतों को संयत किया, जिसने अतिविस्तृत अंतरिक्ष लोक को बनाए तथा जिसने द्यु लोक को रोका/स्थिर किया। हे मनुष्यों। वह ही इंद्र है।
- इसी सूक्त का अगला मन्त्र इस प्रकार है:
- यो हत्वाहिमरिणात्सप्त सिंधुन् यो गा उदाजदपदधा बलस्य। यो अश्मनोरंतराग्निं जजान संवृक् समत्सु स जनास इन्द्रः।।(३)
- अर्थ: जिस इंद्र ने सर्प सदृश्य वृत्र को मारकर जल की धाराओं को बहाया है, जिसने बल नामक दैत्य की गुफा से या बाड़े से गौओं को बहार निकाला है, जिसने दो पत्थरों के बिच आग उत्पन्न की है और जिसने युद्ध में शत्रओं का विनाश किया है। हे। मनुष्यों वह ही इंद्र है।
अतिरिक्त जानकारी:
- इंद्रदेव के विशेषण:
- शचीपति
- शतक्रतु
- शक्र
- वज्रबाहु
Top वेद MCQ Objective Questions
ऋग्वेदे 'सत्यश्चित्रश्रवस्तमः' देवः कः?
Answer (Detailed Solution Below)
वेद Question 6 Detailed Solution
Download Solution PDFप्रश्न का अनुवाद- ऋग्वेद में 'सत्यश्चित्रश्रवस्तमः' देवता कौन है?
"अग्निर्होता कविक्रतुः सत्यश्चित्रश्रवस्तमः।
देवो देवेभिरा गमत्॥" (ऋग्वेद १।१।५॥)
पदपाठ- अ॒ग्निः । होता॑ । क॒विऽक्र॑तुः । स॒त्यः । चि॒त्रश्र॑वःऽतमः । दे॒वः । दे॒वेभिः॑ । आ । ग॒म॒त् ॥ 1.1.5
अर्थ-
जो (सत्यः) अविनाशी (देवः) आप से आप प्रकाशमान (कविक्रतुः) सर्वज्ञ है, जिसने परमाणु आदि पदार्थ और उनके उत्तम-उत्तम गुण रचके दिखलाये हैं, जो सब विद्यायुक्त वेद का उपदेश करता है, और जिससे परमाणु आदि पदार्थों करके सृष्टि के उत्तम पदार्थों का दर्शन होता है, वही कवि अर्थात् सर्वज्ञ ईश्वर है। तथा भौतिक अग्नि भी स्थूल और सूक्ष्म पदार्थों से कलायुक्त होकर देशदेशान्तर में गमन करानेवाला दिखलाया है। (चित्रश्रवस्तमः) जिसका अति आश्चर्यरूपी श्रवण है, वह परमेश्वर (देवेभिः) विद्वानों के साथ समागम करने से (आगमत्) प्राप्त होता है।
तथा जो (सत्यः) श्रेष्ठ विद्वानों का हित अर्थात् उनके लिये सुखरूप (देवः) उत्तम गुणों का प्रकाश करनेवाला (कविक्रतुः) सब जगत् को जानने और रचनेहारा परमात्मा और जो भौतिक अग्नि सब पृथिवी आदि पदार्थों के साथ व्यापक और शिल्पविद्या का मुख्य हेतु (चित्रश्रवस्तमः) जिसको अद्भुत अर्थात् अति आश्चर्य्यरूप सुनते हैं, वह दिव्य गुणों के साथ (आगमत्) जाना जाता है।
भावार्थ- हे अग्निदेव। आप हवि प्रदाता, ज्ञान और कर्म की संयुक्त शक्ति के प्रेरक, सत्यरूप एवं विलक्षण रूप् युक्त है। आप देवो के साथ इस यज्ञ मे पधारें ।
अत: यह स्पष्ट होता है की, ऋग्वेद में 'सत्यश्चित्रश्रवस्तमः' यह अग्निदेव है।
ईशोपनिषदानुसारेण के जनाः अन्धं तमः प्रविशन्ति?
Answer (Detailed Solution Below)
वेद Question 7 Detailed Solution
Download Solution PDFप्रश्न का हिंदी भाषांतर : ईशोपनिषद के अनुसार कौन से लोक घोर अंधःकर में प्रवेश करते है?
स्पष्टीकरण :
- प्रस्तुत प्रश्न 'ईशोपनिषद' के ९ क्रमांक के मंत्र के आधार पर पूँँछा है।
- पूर्ण मंत्र इस प्रकार है -
- 'अन्धं तमः प्रविशन्ति येऽविद्यामुपासते। ततो भूय इव ते तमो य उ विद्यायां रताः॥'
अतः स्पष्ट है, 'ये अविद्यामुपासते' यह इस प्रश्न का सही उत्तर है।
Additional Information
- मंत्र का अन्वय :
- ये अविद्याम् उपासते ते अन्धं तमः प्रविशन्ति। ये उ विद्यायां रताः ते तमः भूयः तमः इव प्रविशन्ति॥
- मंत्र का हिंदी भाषांतर :
- जो अविद्या का अनुसरण करते हैं वे घोर अन्धकार में प्रवेश करते हैं। और जो केवल विद्या में ही रत रहते हैं वे मानों उससे भी अधिक घोर अन्धकार में प्रवेश करते हैं।
इन्द्रसूक्तस्य द्रष्टा ऋषिरस्ति-
Answer (Detailed Solution Below)
वेद Question 8 Detailed Solution
Download Solution PDFप्रश्न का हिंदी भाषांतर : इन्द्रसूक्त के द्रष्टा ऋषि कौन है?
स्पष्टीकरण :
- ऋग्वेद के द्वितीय मंडल में गृत्समद ऋषि के सूक्त आते है। ऋग्वेद का द्वितीय मंडल गृत्समद ऋषि के कुल का मंडल है।
- द्वितीय मंडल में गृत्समद ऋषि ने अनेक इंद्र सूक्तोंं की रचना की है।
- गृत्समद ऋषि के मंडल का 'बृहद्वदेम विदथे सुवीराः' यह धृपद है। अतः स्पष्ट है, इन्द्रसूक्त के द्रष्टा ऋषि 'गृत्समद' है।
Additional Information
- ऋग्वेद की रचना दो प्रकार की है। अष्टक रचना और मंडल रचना।
- अष्टक रचना -
- अष्टक रचना के अनुसार ५ ऋचाओ का एक वर्ग, कुछ वर्गोंं का एक अध्याय और ८ अध्यायोंं का एक अष्टक बनता है।
- संपूर्ण ऋग्वेद संहिता ८ अष्टक अर्थात् ६४ अध्यायोंं की बनी है।
- मंडल रचना -
- ऋग्वेद में १० ऋषिकुलमंडल आते है। उनकी रचना इस प्रकार है -
मंडल संख्या | ऋषिकुल |
द्वितीय | गृत्समद |
तृतीय | विश्वामित्र |
चतुर्थ | वामदेव |
पंचम | अत्रि |
षष्ठ | भरद्वाज |
सप्तम | वसिष्ठ |
- मंडल क्रमांक १,८,९. और १० इन की रचना भिन्न तत्वो के आधार पर हुई है।
सहस्रशीर्षा ____ सहस्राक्षः सहस्रपात्।
स भूमिं विश्वतो वृत्वात्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम्।।
इत्यस्याः ऋचायाः रिक्तस्थानपूरणं कुरुत-
Answer (Detailed Solution Below)
वेद Question 9 Detailed Solution
Download Solution PDFसहस्रशीर्षा ____ सहस्राक्षः सहस्रपात्।
स भूमिं विश्वतो वृत्वात्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम्।।
इस ऋचा में रिक्तस्थान की पूर्ती कीजिए।
स्पष्टीकरण :
- प्रस्तुत ऋचा ऋग्वेद के दशम मंडल के ९० वे सूक्त की प्रथम ऋचा है। संपूर्ण ऋचा -
- सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात्। स भूमिं विश्वतो वृत्वात्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम्।।
- अर्थ - पुर में व्यापक शक्ति वाले राजा के तुल्य समस्त ब्रह्माण्ड में व्यापक परम पुरुप परमात्मा हजारों शिरों वाला है। वह सब जगत् के उत्पादक, सर्वाश्रय प्रकृति को सब ओर से, सब प्रकार से चरण कर, व्याप्त कर दश अंगुल अतिक्रमण करके विराजता है।
अतः स्पष्ट है, 'पुरुषः' यह इस प्रश्न का सही उत्तर है।
अतिथिपूजनं कस्मिन् यज्ञे क्रियते?
Answer (Detailed Solution Below)
वेद Question 10 Detailed Solution
Download Solution PDFप्रश्न का हिंदी भाषांतर : अतिथिपूजन किस यज्ञ में किया जाता है?
स्पष्टीकरण :
- अतिथि पूजन करना गृहस्थाश्रम का कर्तव्य माना गया है।
- पंचयज्ञ करना यह गृहस्थ का धर्म है। 'अतिथि पूजन' को ही नृयज्ञ यह संज्ञा है, जो पंचयज्ञोंं में एक है।
अतः स्पष्ट है, 'नृयज्ञे' यह इस प्रश्न का सही उत्तर है।
Important Points
- पंचयज्ञ इस प्रकार के है -
- अध्यापनं ब्रह्म यज्ञः पित्र यज्ञस्तु तर्पणम्।होमोदेवौ बलिर्भौतो नृयज्ञो अतिथि पूजनम्।।
- ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, पितृयज्ञ, भूतयज्ञ और अतिथीयज्ञ इनकी गणना पंचयज्ञोंं में होती है।
- अध्यापनं ब्रह्म यज्ञः पित्र यज्ञस्तु तर्पणम्।होमोदेवौ बलिर्भौतो नृयज्ञो अतिथि पूजनम्।।
'चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्योऽअजायत' मन्त्रांशः कस्मात् सूक्तात् उद्धृतोऽस्ति ?
Answer (Detailed Solution Below)
वेद Question 11 Detailed Solution
Download Solution PDFप्रश्न का हिंदी भाषांतर : 'चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्योऽअजायत' यह मंत्र किस सूक्त से उद्धृत किया है?
स्पष्टीकरण -
संपूर्ण मंत्र -
- चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षो: सूर्यो अजायत। मुखादिन्द्रश्चाग्निश्च प्राणाद्वायुरजायत॥
संदर्भ -
- ऋग्वेद 10/90/13, यजुर्वेद 31/12, अथर्ववेद 19/6/0/7
सूक्त -
- पुरुषसूक्त
अर्थ -
- (मनसः-चन्द्रमाः जातः) समष्टि पुरुष के मननसामर्थ्य से चन्द्रमा उत्पन्न हुआ (चक्षोः-सूर्यः-अजायत) उसके ज्योतिर्मयस्वरूप से सूर्य उत्पन्न हुआ (मुखात्-इन्द्रः-च अग्निः-च) उसके प्रमुख बल से विद्युत् और अग्नि उत्पन्न हुए (प्राणात्-वायुः-अजायत) प्राण शक्ति से वायु उत्पन्न हुआ।
अतः स्पष्ट है, 'पुरुषसूक्तात्' यह इस प्रश्न का सही उत्तर है।
ब्राह्मणकुमारस्य मेखला स्यात्-
Answer (Detailed Solution Below)
वेद Question 12 Detailed Solution
Download Solution PDFप्रश्न का हिंदी भाषांतर : ब्राह्मणकुमार के मेखला को क्या कहा जाता है?
मनुस्मृति के अनुसार -
मौञ्जी त्रिवृत्समा श्लक्ष्णा कार्या विप्रस्य मेखला।
क्षत्रियस्य तु मौर्वी ज्या वैश्यस्य शणतान्तवी॥ (मनुस्मृति २.४२)
- ब्राह्मण की मुंज (‘मूंज’ नामक घास की बनी) वा दर्भ की, क्षत्रिय की धनुष संज्ञक (धनुष की डोरी जिससे बनती है उस ‘मुरा’ नामक घास की) तृण या वल्कल की और वैश्य की ऊन वा शण की (शणतान्तवी के सूत की बनी, तीन लड़ों को तिगुनी करके बनी हो) मेखला होनी चाहिए।’’
अतः स्पष्ट है, 'मौञ्जी' यह इस प्रश्न का सही उत्तर है।
'स्वाध्यायान्मा प्रमदः' कस्मात् ग्रन्थात् उद्धृतोऽस्ति-
Answer (Detailed Solution Below)
वेद Question 13 Detailed Solution
Download Solution PDFप्रश्न अनुवाद - 'स्वाध्यायान्मा प्रमदः' किस ग्रन्थ से उद्धृत है -
सम्पूर्ण श्लोक -
सत्यं वद धर्मं चर स्वाध्यायान्मा प्रमदः ।
आचारस्य प्रियं धनमाहृत्य प्रजातन्तुं मा व्यवच्छेत्सीः ॥
श्लोकार्थ -
- सत्य बोलो, धर्म का आचरण करो, स्वाध्याय में आलस्य मत करो। अपने श्रेष्ठ कर्मों से साधक को कभी मन नहीं चुराना चाहिए।
Important Pointsस्पष्टीकरण -
प्रस्तुत श्लोक 'तैत्तिरीयोपनिषद्' से लिया गया है। तैत्तिरीयोपनिषद् कृष्ण यजुर्वेद की तैत्तिरीय शाखा के अन्तर्गत प्राप्त तैत्तिरीय आरण्यक का सातवां, आठवां और नवां अध्याय है।
अत: 'तैत्तिरीयोपनिषद्' उचित विकल्प है।
Additional Informationतैत्तिरीय उपनिषद् में ओर भी सुन्दर शिक्षाएं है। जैसे - शिक्षावल्ली के एकादश अनुवाक में आचार्य गुरुकुल से स्नातक हो, उसे छोड़ते हुए अन्तेवासी को अन्तिम शिक्षा देते है कि सांसारिक जीवन-निर्वाह कैसे करना चाहिए - "वेदमनूच्याचार्योऽन्तेवासिनमनुशास्ति । सत्यं वद । धर्मं चर । स्वाध्यायान्मा प्रमदः ।" अर्थात् वेदों को भली-भांति पढ़ाकर, आचार्य अन्तेवासी को शिक्षा देते है - सत्य बोलना, धर्म करना, (गृहस्थ-जीवन प्रारम्भ करने पर भी) स्वाध्याय बिना प्रमाद के करते रहना।
प्राचीन समये वर्ण व्यवस्थायाः आधार आसीत्
Answer (Detailed Solution Below)
वेद Question 14 Detailed Solution
Download Solution PDFप्रश्न का अनुवाद- प्राचीन समय में वर्ण व्यवस्था का आधार था-
गुण व कर्म के आधार पर वर्ण-व्यवस्था :
- वस्तुत: ऋग्वैदिक समाज अर्थात प्राचीन भारत की वर्ण व्यवस्था उन्मुक्त थी। यह जन्म या वंश आधारित नहीं बल्कि गुण व कर्म आधारित थी ‘शूद्र’ तथा ‘वैश्य’ शब्दों का सर्वप्रथम प्रयोग ऋग्वेद के ‘पुरुष सूक्त’ में मिलता है।
- भगवद्गीता में कृष्ण नें बताया है कि “चारों वर्णों की उत्पत्ति गुण व कर्म के आधार पर की गई है। ” वायु पुराण में भी पूर्व जन्मों के कर्म को विभिन्न वर्णों की उत्पति का कारण बताया गया है। चातुर्वर्ण की उत्पति विषयक कर्म का सिद्धान्त सबसे महत्वपूर्ण है जब आर्य भारत में बस गये तो उन्होने भिन्न भिन्न कर्मों के आधार पर विभिन्न वर्गों का विभाजन किया।
जो व्यक्ति यज्ञादि कर्म करते थे उन्हें ‘ब्रह्म’ (ब्राह्मण)
जो युद्ध में निपुण थे उन्हें ‘क्षत्र’ (क्षत्रिय)
शेष जनता को ‘विश’ (वैश्य) कहा गया।
- वर्ण-व्यवस्था का यह प्रारम्भिक स्वरूप था। ऋग्वेद के दशम मण्डल के पुरुष सुक्त में सर्वप्रथम ‘शुद्र’ वर्ण का उल्लेख मिला है। रामशरण शर्मा के अनुसार, ”शूद्र वर्ण में आर्य तथा अनार्य दोनों ही वर्गों के व्यक्ति सम्मिलित थे।
- आर्थिक सामाजिक विषमताओं ने दोनों ही वर्ग में श्रमिक वर्ग को जन्म दिया। कालान्तर में सभी श्रमिकों को ‘शूद्र’ कहा जाने लगा।” अथर्ववैदिक काल के अन्त में शूद्रों को समाज में एक वर्ग के रूप में मान्यता मिला गई।
इसप्रकार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र यह प्राचीन समय की वर्ण व्यवस्था का आधार गुणकर्म विभाग था।
.......... वेदाः सन्ति ।
Answer (Detailed Solution Below)
वेद Question 15 Detailed Solution
Download Solution PDFप्रश्न का हिन्दी अनुवाद - वेद हैं -
स्पष्टीकरण -
वेद, प्राचीन भारत के पवित्र साहित्य हैं जो हिन्दुओं के प्राचीनतम और आधारभूत धर्मग्रन्थ भी हैं। भारतीय संस्कृति में वेद सनातन वर्णाश्रम धर्म के, मूल और सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं। 'वेद' शब्द संस्कृत भाषा के विद् ज्ञाने धातु से बना है। इस तरह वेद का शाब्दिक अर्थ 'ज्ञान' है। वेद मंत्रों की व्याख्या करने के लिए अनेक ग्रंथों जैसे ब्राह्मण-ग्रन्थ, आरण्यक और उपनिषद की रचना की गई। इनमे प्रयुक्त भाषा वैदिक संस्कृत कहलाती है।
Important Points
वेदों की संख्या चार हैं -
- ऋग्वेद,
- सामवेद,
- यजुर्वेद,
- अथर्ववेद।
Additional Information
- ऋग्वेद - सबसे प्राचीन तथा प्रथम वेद जिसमें मन्त्रों की संख्या 10627 है। ऐसा भी माना जाता है कि इस वेद में सभी मंत्रों के अक्षरों की संख्या 432000 है। इसका मूल विषय ज्ञान है।
- सामवेद - इसमें कार्य (क्रिया) व यज्ञ (समर्पण) की प्रक्रिया के लिये 1975 गद्यात्मक मन्त्र हैं।
- यजुर्वेद - इस वेद का प्रमुख विषय उपासना है। संगीत में गाने के लिये 1875 संगीतमय मंत्र।
- अथर्ववेद - इसमें गुण, धर्म, आरोग्य, एवं यज्ञ के लिये 5977 कवितामयी मन्त्र हैं।
अतः स्पष्ट है कि वेदों की संख्या चार होती है।