रचनावाद (Constructivism) शिक्षण सिद्धान्तरूपेण मन्यते-

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CTET Paper 2 Maths & Science 17th Jan 2022 (English-Hindi-Sanskrit)
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  1. बालाः नवज्ञानं अर्जनं कुर्वन्ति कक्षाशिक्षणमाध्यमेन
  2. संरचितप्रविधिमाध्यमेन भाषा शिक्ष्यते-
  3. एकेन एव विधिना सर्वे छात्राः शिक्ष्यन्ते
  4. बालाः पूर्वज्ञानसंयोगेन शिक्षयन्ति

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Option 4 : बालाः पूर्वज्ञानसंयोगेन शिक्षयन्ति
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प्रश्नानुवाद - रचनावाद (Constructivism) शिक्षण सिद्धान्त के रूप में मानते हैं -

स्पष्टीकरण - रचनावाद से अभिप्राय है कि छात्र अपने अनुभवों के आधार पर तथ्यों और तत्वों को जाने और ज्ञान निर्माण में संलग्न हो।

  • सीखना एक सतत, सहज, निरंतर चलने वाली एक सामाजिक प्रक्रिया है, जिसमें सीखने वाला अपने वातावरण से परस्पर अंत:क्रिया करते हुए अपने अनुभवों से स्वयं सीखता है।
  • बच्चे अपने आस-पास की चीजों से जुड़े रहते हैं। खोजबीन करना, सवाल पूछना, करके देखना, अपने अर्थ बनाना बच्चों की स्वाभाविक प्रकृति होती है। 
  • शिक्षण सिद्धान्त के रूप में निर्भीयता (रचनावाद) शिक्षण की पूर्ण मनोवैज्ञानिक क्रिया है।

Important Points

रचनात्मकतावाद/रचनावाद-

  • रचनावाद या रचनात्मकवाद सीखने सिखाने के सिद्धांत को कहते हैं, जिसमें 'विद्यार्थी अपने ज्ञान की रचना अथवा निर्माण वातावरण से अंत:क्रिया करते हुए अपने अनुभवों से स्वयं करता है।' बच्चा स्वभाविक रूप से ही अपने आप को दूसरों से जोड़ कर देखता है, जिससे उसकी समझ विकसित होती है और अपने इन्हीं अनुभवों के आधार पर वह अपने जीवन के कार्य कर पाता है।
  • ज्ञान के सृजन की इसी प्राकृतिक विधा को शिक्षा शास्त्र में 'रचनावाद' कहा गया है। यह पूर्णतया मनोवैज्ञानिकी क्रिया है। जो करके सीखना के सिद्धान्त पर आधारित है।
  • रचनात्मक शिक्षा समस्या-समाधान में छात्र की सक्रिय भागीदारी और अधिगम की गतिविधियों के बारे में गहन सोच पर आधारित है।
  • छात्र अपने स्वयं के ज्ञान का निर्माण करते हैं और उन्हें नई स्थिति में लागू करते हैं।
  • शिक्षक एक सूत्रधार या प्रशिक्षक होता है, जो अधिगम प्रक्रिया के दौरान छात्र की गहन सोच, विश्लेषण और संश्लेषण क्षमताओं का मार्गदर्शन करता है।
  • शिक्षण को हमेशा रुचिपूर्ण बनाया जाना चाहिए क्योंकि यह बच्चे को संज्ञानात्मक, सामाजिक, भावनात्मक विकास आदि सभी पहलुओं में विकसित करने में मदद कर सकता है।
  • प्रत्येक बच्चे में अपनी समझ और ज्ञान का निर्माण करने की क्षमता होती है।
  • छात्र को स्वयं प्रयोग करने चाहिए और इससे आत्मविश्वास का निर्माण होगा।
  • छात्रों में संज्ञानात्मक क्षमताओं का विकास छात्रों को एक वैज्ञानिक की तरह सोचने में मदद करता है।

 

अतः कहा जा सकता है कि रचनावाद शिक्षण सिद्धान्त के रूप में मानते हैं कि बालक पूर्वज्ञान के संयोग से सीखते हैं। (अन्य सभी विकल्प यहाँ असंगत हैं।)

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