सिद्धान्त MCQ Quiz - Objective Question with Answer for सिद्धान्त - Download Free PDF

Last updated on Apr 11, 2025

Latest सिद्धान्त MCQ Objective Questions

सिद्धान्त Question 1:

अधोलिखितेषु व्याकरणशिक्षणस्य श्रेष्ठतमा पद्धतिः का अस्ति ?

  1. व्याख्यानम् (Lecture)
  2. अभ्यासकार्यम् (Practice-drill)
  3. अनुवादः (Translation)
  4. आगमनत्मिका- निगमनात्मिका पद्धतिः

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : आगमनत्मिका- निगमनात्मिका पद्धतिः

सिद्धान्त Question 1 Detailed Solution

प्रश्नार्थ- व्याकरण पढ़ाने की सबसे अच्छी विधि निम्नलिखित में से कौन सी है?

उत्तर- आगमनत्मिका- निगमनात्मिका पद्धतिः

Important Points"आगमनत्मिका-निगमनात्मिका पद्धति" या "Inductive-Deductive Method" व्याकरण को सिखाने की एक प्रभावी विधि मानी जाती है।

यह विधि छात्रों को नियमों और संरचनाओं को स्वयं खोजने में मदद करती है, जिससे उनके अनुभव और समझ को बढ़ावा मिलता है। इसके दो चरण होते हैं:

आगमनत्मिका (Inductive): इस चरण में, छात्रों को वाक्यों या भाषा संरचनाओं के उदाहरण प्रस्तुत किए जाते हैं और उन्हें इनमें पैटर्न या नियमों को खोजने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

छात्रों को अपनी भाषा की विशेषताओं पर विचार करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, और वे स्वयं नियमों का अनुमान लगाते हैं।

निगमनात्मिका (Deductive): एक बार जब छात्रों ने नियमों या पैटर्नों का अनुमान लगा लिया होता है, तब शिक्षक या पाठ्यक्रम इन नियमों की पुष्टि करता है और उन्हें अधिक विस्तार से जानकारी देता है।

यह विधि भाषा की जटिलताओं को समझने में मदद करती है, क्योंकि छात्र स्वयं नियमों को पहचानते हैं और इस प्रक्रिया के माध्यम से व्याकरण की गहराई से समझते हैं।

इसलिए, इस विधि को व्याकरण सिखाने की सबसे अच्छी विधि माना जाता है।

सिद्धान्त Question 2:

पञ्चमकक्षायाः शिक्षकः विद्यार्थिनां पृष्ठभूमि - रीति-परम्पराभिः सह पाठयतः पाठस्य सम्बन्धः स्थापयति । अत्र शिक्षकेन भाषाशिक्षणस्य कः सिद्धान्तः प्रयुज्यते ?

  1. शुद्धता - सिद्धान्तः
  2. सामूहिकता सिद्धान्तः
  3. अभ्यास - सिद्धान्तः
  4. जीवनेन सह सम्बन्धस्थापन-सिद्धान्तः

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : जीवनेन सह सम्बन्धस्थापन-सिद्धान्तः

सिद्धान्त Question 2 Detailed Solution

प्रश्नार्थ- पाँचवीं कक्षा का शिक्षक जो पाठ पढ़ाता है उसे विद्यार्थियों की पृष्ठभूमि - रीति-रिवाजों और परंपराओं से जोड़ता है। यहाँ शिक्षक द्वारा भाषा शिक्षण के किस सिद्धांत का प्रयोग किया जा रहा है?

उत्तर- जीवनेन सह सम्बन्धस्थापन-सिद्धान्तः

Important Pointsशिक्षक यहाँ "जीवन के साथ संबंध स्थापित करने का सिद्धांत" का अनुपालन कर रहा है। इस सिद्धांत का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जो कुछ भी बच्चों को सीखाया जा रहा है, वह उनके जीवन के वास्तविक अनुभवों, उनकी संस्कृति, रीति-रिवाज और परम्पराओं से संबंधित हो।

जब शिक्षण सामग्री और विद्यार्थियों की व्यक्तिगत जीवन के अनुभवों से संबंधित होती है, तो यह सीखने की प्रक्रिया को और अधिक सार्थक और समझने योग्य बनाती है।

इसके अलावा, इसका मानना है कि विद्यार्थी जब नई जानकारी को पहले के ज्ञान और अनुभवों के साथ जोड़ते हैं, तो वे उसे बेहतर तरीके से समझते हैं और उसे याद रखते हैं।

इसलिए, पाँचवीं कक्षा का शिक्षक जो पाठ्यक्रम को विद्यार्थियों की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि और अनुभवों से जोड़ रहा है, वह वास्तव में "जीवन के साथ संबंध स्थापित करने का सिद्धांत" का पालन कर रहा है।

Additional Informationपर्यायों का हिन्दी अनुवाद-

  • शुद्धता - सिद्धान्त
  • सामूहिकता सिद्धान्त
  • अभ्यास - सिद्धान्त
  • जीवन के साथ संबंध स्थापित करने का सिद्धांत

सिद्धान्त Question 3:

एका शिक्षिका मन्यते यत् मानवाः जन्मतः एकभाषार्जनस्य योग्यतां। तस्याः विचारः केन सह सङ्गतः अस्ति- 

  1. संक्रियावादी अनुकूलनेन
  2. अवलोकनपरकशिक्षणेन
  3. सहजज्ञानवादेन
  4. पुनर्बलनेन

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : सहजज्ञानवादेन

सिद्धान्त Question 3 Detailed Solution

प्रश्नार्थ- एक शिक्षिका का मानना ​​है कि मनुष्य एक भाषा सीखने की क्षमता के साथ पैदा होता है। उनका विचार किसके अनुरूप है:

उत्तर- सहजज्ञानवादेन

Important Points

  • एक शिक्षिका का मानना कि मनुष्य एक भाषा सीखने की क्षमता के साथ पैदा होता है, वह सहज सिद्धांत या स्वाभाविकता सिद्धांत के अनुरूप है।
  • सहज सिद्धांत या इन्नेटिस्ट थ्योरी का प्रस्ताव नोम चॉम्सकी ने किया था, एक भाषा वैज्ञानिक जो मानते हैं कि मनुष्य का मस्तिष्क भाषा सीखने के लिए पैदा होते ही तैयार होता है।
  • चॉम्सकी के अनुसार, सभी मनुष्यों के मस्तिष्क में एक 'अदृश्य व्याकरण' (Universal Grammar) होता है जो सभी मानवी भाषाओं के सामान्य संरचनात्मक तत्वों को निर्दिष्ट करता है।
  • इस सिद्धांत के अनुसार, जब बच्चे भाषा की ध्वनियाँ सुनते हैं, तो उनका मस्तिष्क इन ध्वनियों को परिचित 'अदृश्य व्याकरण' के ढांचे में फिट करता है, जिससे उन्हें भाषा सीखने में मदद मिलती है।
  • इसलिए, यदि एक शिक्षिका मानती है कि मनुष्य भाषा सीखने की क्षमता के साथ पैदा होता है, तो उनके विचार सहज सिद्धांत के अनुरूप हैं।

Additional Informationपर्यायों का हिन्दी अनुवाद-

  • संक्रियावादी अनुकूलनेन- कार्यात्मक अनुकूलन द्वारा
  • अवलोकनपरकशिक्षणेन- अवलोकन सीखने से
  • सहजज्ञानवादेन- सहज सिद्धांत द्वारा
  • पुनर्बलनेन- पुनर्बलन द्वारा

सिद्धान्त Question 4:

कः अधिगम सिद्धान्तः एतत् मन्यते यत् त्रुट्यः भाषा-अधिगम प्रक्रियायाः अंशाः सन्ति?

  1. संरचनावादी
  2. अन्तर्क्रियावादी
  3. व्यवहारवादी
  4. संज्ञानवादी

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : संज्ञानवादी

सिद्धान्त Question 4 Detailed Solution

प्रश्नार्थ- कौन सा शिक्षण सिद्धांत मानता है कि त्रुटियाँ भाषा-अर्जन प्रक्रिया का हिस्सा हैं?

उत्तर- संज्ञानवादी

Important Points

  • संज्ञानवादी शिक्षण सिद्धांत का मानना है कि अधिगम की प्रक्रिया एक सक्रिय प्रक्रिया है जिसमें विद्यार्थी स्वयं को ज्ञान और समझ में जोड़ने के लिए नई जानकारी का उपयोग करते हैं।
  • संज्ञानवादी दृष्टिकोण भाषा अर्जन पर विशेष जोर देता है क्योंकि इसका मानना है कि विद्यार्थी स्वतंत्र और सक्रिय भाषा उपयोगकर्ता होते हैं, जिन्हें उनके अपने उपयोगकर्ता के अनुभवों और ज्ञान के आधार पर नई भाषा संरचनाओं को अनुकरण और पुनर्क्रियाप्रवृत्ति करना होता है।
  • त्रुटियाँ और समस्याओं के निदान को संज्ञानवादी दृष्टिकोण द्वारा एक महत्वपूर्ण अर्जन प्रक्रिया के रूप में माना जाता है। यह सिद्धांत मानता है कि विद्यार्थी को भाषा संरचनाओं, वाक्यांशों, और शब्दावली के अर्थ और उपयोग को समझने के लिए अपनी त्रुटियों से सीखने की अनुमति होनी चाहिए।
  • त्रुटियाँ, संज्ञानवादी सिद्धांत अनुसार, भाषा अर्जन के एक स्वाभाविक और महत्वपूर्ण हिस्से को प्रदर्शित करती हैं।
  • ये त्रुटियाँ विद्यार्थी को उनकी सीखने की प्रगति के बारे में प्रतिसाद देती हैं और उन्हें भविष्य में उनकी भाषा क्षमताओं को सुधारने में मदद करती हैं।
  • इस प्रकार, संज्ञानवादी शिक्षण सिद्धांत भाषा अर्जन की यात्रा को एक अविरत विकास प्रक्रिया के रूप में देखता है, जिसमें त्रुटियाँ और सुधार एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

सिद्धान्त Question 5:

भाषाशिक्षणस्य बलाघाते व्याकरणानुवादपद्धतिः केन्द्रीकरोति

  1. मुख्यकेन्द्रबिन्दुरूपेण भाषायाः प्रयोगः ।
  2. रूपकेन्द्रितं शिक्षणम् ।
  3. अर्थकेन्द्रितं शिक्षणम् ।
  4. अधिगमकाले उच्चारणं सुदृढीकरणम् ।

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : रूपकेन्द्रितं शिक्षणम् ।

सिद्धान्त Question 5 Detailed Solution

प्रश्न का अनुवाद- व्याकरण अनुवाद दृष्टिकोण भाषा सीखने पर जोर देने पर केंद्रित है-

उत्तर- रूपकेन्द्रितं शिक्षणम् ।

  • रूपकेन्द्रित शिक्षण व्याकरण अनुवाद दृष्टिकोण भाषा सीखने पर जोर देता है। इस पद्धति का मुख्य केंद्र व्याकरण का अध्ययन होता है, जिसमें वाक्यों, शब्दों, और वाक्यांशों की संरचना का अध्ययन होता है।
  • यह पद्धति छात्रों को भाषा के नियमों, रूपों, और संरचनाओं को समझने और सही ढंग से उपयोग करने की क्षमता विकसित करती है।
  • छात्रों को वाक्य रचना, संधि, समास, कारक, अव्यय, वर्ण-विचार, और वर्तनी के नियमों को समझने का अभ्यास किया जाता है।
  • इससे छात्र भाषा के सामान्य नियमों के माध्यम से सही रूप से वाक्य गठन करने, वाक्यों को अनुवाद करने, और वाक्यांशों को सही ढंग से प्रयोग करने में सक्षम होते हैं।
  • इससे छात्रों की भाषा में सहीता, नियमितता, और स्वच्छता विकसित होती है और वे स्वयं को सामाजिक और व्यावसायिक स्तरों पर संवाद करने के लिए तैयार होते हैं।

Additional Informationपर्यायों का हिन्दी अनुवाद-

  • मुख्यकेन्द्रबिन्दुरूपेण भाषायाः प्रयोगः ।- मुख्य केंद्र के रूप में भाषा का उपयोग करना।
  • रूपकेन्द्रितं शिक्षणम् ।- रूपकेन्द्रित शिक्षण
  • अर्थकेन्द्रितं शिक्षणम् ।- अर्थकेन्द्रित शिक्षण
  • अधिगमकाले उच्चारणं सुदृढीकरणम् ।- अधिग्रहण के दौरान उच्चारण का सुदृढीकरण।

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रचनात्मकतावादस्य (Constructivism) सिद्धान्तोऽयं यत् भाषाशिक्षार्थी वर्तते

  1. शिक्षकस्य अनुसरणकर्ता
  2. ज्ञानस्य पुनःप्रस्तुतिकर्ता
  3. ज्ञानस्य प्रहणकर्ता
  4. ज्ञानस्य निर्माणकर्त्ता

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : ज्ञानस्य निर्माणकर्त्ता

सिद्धान्त Question 6 Detailed Solution

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प्रश्न का अनुवाद - रचनात्मकतावाद का जो सिद्धांत है, उसमें भाषा शिक्षार्थी है_______

स्पष्टीकरण -

सीखना एक सतत, सहज, निरंतर चलने वाली एक सामाजिक प्रक्रिया है, जिसमे सीखने वाला अपने वातावरण से परस्पर अंत:क्रिया करते हुए अपने अनुभवों से स्वयं सीखता है। बच्चे अपने आस पास की चीजों से जुड़े रहते हैं। खोजबीन करना, सबाल पूछना, करके देखना, अपने अर्थ बनाना बच्चो की स्वाभिक प्रकृति होती है। 

रचनात्मकतावाद - रचनावाद या रचनात्मकवाद सीखने सिखाने के सिद्धांत को कहते है, जिसमे 'विद्यार्थी अपने ज्ञान की रचना अथवा निर्माण वातावरण से अंत:क्रिया करते हुए अपने अनुभवों से स्वयं करता है।' बच्चा स्वभाविक रूप से ही अपने आप को दूसरो से जोड़ कर देखता है जिससे उसकी समझ विकसित होती है और अपने इन्ही अनुभवों के आधार पर वह अपने जीवन के कार्य कर पाता है। ज्ञान के सृजन की इसी प्राकृतिक विधा को शिक्षा शास्त्र में 'रचनावाद' कहा गया है ।

वर्तमान शिक्षा प्रणाली पर रचनात्मकतावाद का बहुत प्रभाव है  यह शिक्षण और अधिगम का एक प्रभावी तरीका है। वर्तमान स्कूली शिक्षा कार्यक्रम रचनात्मकतावाद पर आधारित है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली में किए गए परिवर्तन इस प्रकार हैं:

  • अधिगम के उद्देश्यों का चयन।
  • उपयुक्त शिक्षण-अधिगम रणनीतियों का चयन करना।
  • छात्र प्रगति को मापने और निर्णय लेने के लिए लिखित परीक्षा द्वारा मूल्यांकन।
  • अधिगम के उद्देश्यों को मापने के लिए परीक्षा।
  • शिक्षार्थी की उपलब्धि की कोई वस्तुपरक व्याख्या नहीं।
  • संज्ञानात्मक उद्देश्यों पर जोर। प्रत्येक बच्चे में अपनी समझ और ज्ञान का निर्माण करने की क्षमता होती है

Key Points

रचनात्मकतावाद -

  • रचनात्मक शिक्षा समस्या-समाधान में छात्र की सक्रिय भागीदारी और अधिगम की गतिविधियों के बारे में गहन सोच पर आधारित है।
  • छात्र अपने स्वयं के ज्ञान का निर्माण करते हैं और उन्हें नई स्थिति में लागू करते हैं।
  • शिक्षक एक सूत्रधार या प्रशिक्षक होता है जो अधिगम प्रक्रिया के दौरान छात्र की गहन सोच, विश्लेषण और संश्लेषण क्षमताओं का मार्गदर्शन करता है।
  • विज्ञान शिक्षण को हमेशा दिलचस्प बनाया जाना चाहिए क्योंकि यह बच्चे को संज्ञानात्मक, सामाजिक, भावनात्मक विकास आदि सभी पहलुओं में विकसित करने में मदद कर सकता है।
  • प्रत्येक बच्चे में अपनी समझ और ज्ञान का निर्माण करने की क्षमता होती है।
  • छात्र को स्वयं प्रयोग करने चाहिए, और यह बहुत आत्मविश्वास का निर्माण करेगा।
  • छात्रों में संज्ञानात्मक क्षमताओं का विकास छात्रों को एक वैज्ञानिक की तरह सोचने में मदद करता है।

अतः स्पष्ट है कि रचनात्मकतावाद का जो सिद्धांत है, उसमें भाषा शिक्षार्थी 'ज्ञान का निर्माण करने वाला' होता है। 

गद्यखण्डानां पद्यानां च शुद्धोच्चारणे वाचनस्य कार्य कस्मिन् सिद्धान्ते भवति ?

  1. अभ्यास सिद्धान्ते
  2. सक्रियता सिद्धान्ते
  3. रुचि सिद्धान्ते
  4. मौखिककार्य सिद्धान्ते

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : अभ्यास सिद्धान्ते

सिद्धान्त Question 7 Detailed Solution

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प्रश्नानुवाद - गद्यखण्डों और पद्यों के शुद्धोच्चारण में वाचन का कार्य किस सिद्धान्त में होता है ?

स्पष्टीकरण -

  • गद्य और पद्य के शुद्धोच्चारण के लिए अभ्यास का सिद्धान्त महत्वपूर्ण है।
  • अभ्यास द्वारा व्यक्ति किसी भी कार्य में दक्ष हो सकता है। इसी प्रकार शुद्ध उच्चारण के लिए वाचन का निरन्तर अभ्यास अत्यन्त आवश्यक है।
  • शुद्धोच्चारण केवल बोलने से सम्भव नहीं है। इसके लिए अभ्यास अपेक्षित है।

Important Points

  • भाषा को सीखने और समझने के लिए चार कौशल महत्वपूर्ण है - श्रवण-वाचन-पठन-लेखन।
  • इन चारों ही कौशलों में निपुण होने के लिए व्यक्ति को अभ्यास की आवश्यकता होती है।
  • जहाँ श्रवण कौशल का विकास श्रवणाभ्यास द्वारा, वाचन कौशल का विकास वाचनाभ्यास द्वारा, पठन कौशल का विकास पठनाभ्यास द्वारा एवं लेखन कौशल का विकास लेखनाभ्यास द्वारा किया जा सकता है।

 

अतः कहा जा सकता है कि जिस प्रकार किसी भी कार्य में दक्षता हेतु अभ्यास अपेक्षित है, उसी प्रकार शुद्धोच्चारण के लिए अभ्यास का सिद्धान्त उचित है।Additional Information

अन्य विकल्पों का स्पष्टीकरण -

  • सक्रियता का सिद्धान्त - इस सिद्धान्त में व्यक्ति सक्रिय होकर किसी कार्य को करता है और उसमें दक्ष होने का प्रयास करता है।
  • रुचि का सिद्धान्त - रुचि एक ऐसा अभिप्रेरक है, जिसके बिना व्यक्ति किसी कार्य को करने के लिए प्रवृत्त नहीं होता है। उसकी जिस कार्य में रुचि होती है, वह उसी कार्य को करना पसन्द करता है एवं उसमें सफल भी हो सकता है।
  • मौखिक कार्य का सिद्धान्त - इसमें व्यक्ति मौखिक कार्यों को करता है अर्थात् वाचन और पठन जैसी क्रियाओं को करता है। इसके द्वारा शुद्धोच्चारण हो पाना सम्भव नहीं है। यह केवल मौखिक कार्य (बोलने) से सम्बद्ध है।

बालकः ‘प्रयोगाश्रितपरीक्षाविधिना (Trial and Error Method) शिक्षति इत्येतत् _______ भाषाशिक्षणस्य सैद्धान्तिक-परिप्रेक्ष्यात् स्पष्टम् अस्ति।

  1. संज्ञानात्मक (Cognitive)
  2. व्यवहाराश्रित (Behaviouristic)
  3. सामाजिक-सांस्कृतिक (Socio-Cultural)
  4. जन्माश्रित (Nativist)

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : व्यवहाराश्रित (Behaviouristic)

सिद्धान्त Question 8 Detailed Solution

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प्रश्नानुवाद - बालक ‘प्रयोगाश्रित परीक्षा विधि द्वारा (Trial and Error Method) सीखता है यह _______ भाषा शिक्षण के सैद्धान्तिक परिप्रेक्ष्य से स्पष्ट है।

स्पष्टीकरण - जब बालक प्रयोगाश्रित परीक्षा विधि के द्वारा सीखता है, तो इसे व्यवहाराश्रित भाषा शिक्षण कहा जाता है। जहाँ बालक किसी विषय को प्रयोग द्वारा सीखते हुए उसमें त्रुटि करता है एवं धीरे-धीरे उस त्रुटि में सुधार करते हुए विषय को सीख जाता है। 'व्यवहाराश्रित' अधिगम यह व्यवहारवाद से सम्बन्धित है। जिसे प्रयास और त्रुटि का सिद्धान्त कहा जाता है।

Important Pointsव्यवहारवाद-

  •  जे. बी. वाटसन को व्यवहारवाद का संस्थापक और जनक के रूप में जाना जाता है।
  • व्यवहारवाद की स्थापना वाटसन के पारम्परिक पत्र "साइकोलॉजी ऐज़ द बिहेवियरिस्ट व्यू इट" के प्रकाशन के साथ हुई थी।
  • व्यवहारवाद के अनुसार किसी भी व्यक्ति के व्यवहार को मनोवैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा परिवर्तित किया जा सकता है।
  • व्यवहारवादियों के अनुसार मनुष्य के व्यवहार पर पर्यावरण का बहुत प्रभाव पड़ता है। व्यवहारवाद इस विचार पर केंद्रित है कि सभी व्यवहार पर्यावरण के साथ अंत:क्रिया के माध्यम से सीखे जाते हैं।
  • व्यवहारवाद के मुख्य प्रतिनिधि  - जे.बी. वाटसन, ई.एल. थार्नडाइक, बी.एफ.स्किनर, ई. टोलमैन आदि हैं।
  • थार्नडाइक एक अमेरिकी पशु मनोवैज्ञानिक थे, इन्होंने बिल्ली, चूहे, मुर्गी आदि पर प्रयोग करके यह निष्कर्ष निकाला कि पशु-पक्षी व बच्चे प्रयत्न व भूल द्वारा सीखते हैं।

व्यवहारवादी सिद्धांत से सम्बंधित नियम निम्नलिखित हैं-

  1. तत्परता का नियम - यदि बालक अधिगम के लिये तैयार नहीं है, तो उसके अधिगम का दर कम होता है।
  2. प्रभाव का नियम - सकारात्मक परिणाम मिलने पर अधिक पाने की अभिलाषा रखता है।
  3. अभ्यास का नियम - सीखने के लिये क्रिया को बार बार दोहराने क्रिया अनुकूलित होती है।
  4. बहु प्रतिक्रिया का नियम - समस्या के समाधान हेतु अधिगमकर्ता की बहुत सारी प्रतिक्रियाएं देनी होती हैं।
  5. मानसिक मनोवृत्ति का नियम - सकारात्मक दृष्टिकोण से विद्यार्थी शीघ्रतापूर्वक सीखता है।
  6. आंशिक क्रिया का नियम - विषयवस्तु के छोटे विभाग कर उन्हें सीखने से शीघ्रता से समझ आता है।
  7. साहचर्य - परिवर्तन का नियम - अधिगम परिस्थितीयाँ समान होने पर दो क्रियायें एकसाथ कर सकते है।
  8. आत्मसातीकरण का नियम - लंबे समय तक चलती आयी क्रियाऐं आत्मसात् होती है।

 

अतः कहा जा सकता है कि बालक जब प्रयोगाश्रित परीक्षा विधि द्वारा (Trial and Error Method) सीखता है, तो यह व्यवहाराश्रित भाषा शिक्षण का सैद्धान्तिक परिप्रेक्ष्य है।

भाषाशिक्षणार्थम् अधस्तनेषु कतमं व्यवहारवादस्य सिद्धान्तं न अनुसरति?

  1. भाषाशिक्षणार्थम् अन्तर्निहितयन्त्रम्
  2. अनुकरणं दृढीकरणं च
  3. कण्ठस्थीकरणम् अभ्यासश्च
  4. अभ्यासनिर्माणप्रक्रिया

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : भाषाशिक्षणार्थम् अन्तर्निहितयन्त्रम्

सिद्धान्त Question 9 Detailed Solution

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प्रश्न का अनुवाद - भाषा शिक्षण हेतु निम्नलिखित में से कौन से सिद्धान्त का अनुसरण नहीं करते हैं? 

स्पष्टीकरण -

भाषा शिक्षण वह प्रक्रिया तथा वह माध्यम हैं, जिसमें इस बात पर बल दिया जाता हैं कि बच्चा पढ़ना-लिखना कैसे सिखाता हैं, किसी बच्चें को पढ़ना-लिखना कैसे सिखाया जाता हैं।

वाइगोत्स्की के अनुसार -''बालक को भाषा सीखने में समाज तथा परिवार एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है"।

भाषा शिक्षण के सिद्धांत -

  • अनुकरणं दृढीकरणं च (अनुकरण का सिद्धान्त) - बालक अपने परिवार या समाज में बोली जाने वाली भाषा का अनुकरण करके भाषा अर्जित करता है। इसलिए यदि परिवार या समाज में त्रुटिपूर्ण भाषा का प्रयोग होता है तो बच्चा भी त्रुटिपूर्ण भाषा ही सिखाता है। बच्चे अपने शिक्षक के बोलने-लिखने स्वर एवं गति आदि का अनुकरण करके वैसे ही सीखने का प्रयत्न करते हैं। अतः शिक्षकों को स्वयं अपनी उच्चारण, बोलने की गति तथा लेखन को शुद्ध तथा स्वच्छ रखना चाहिए । 
  • कण्ठस्थीकरणम् अभ्यासश्च - अर्थात् याद करना, प्राचीन समय मुद्रित पुस्तके नहीं थी तब कण्ठस्थीकरण पर बल दिया जाता था। आज भी पाठशालाओं में विभिन्न विधियों में शिष्यों को पढ़ाता है और छात्र उसे सहजता से अभ्यासपूर्वक कण्ठस्थीकरण करता है
  • अभ्यासनिर्माणप्रक्रिया - अर्थात् साथ-साथ अभ्यास निर्माण सिखाते या सिखाने के समय ही नोट्स तैयार करना

Additional Information

शिक्षण कार्य को सुव्यवस्थित तरीके से प्रस्तुत करना ही शिक्षण विधि कहलाता हैं शिक्षण को सम्यक ढंग से चलाने के लिए शिक्षण विधि अत्यंत आवश्यक है उनमें से अनुकरण और दृढ़ीकरण, याद करना एवं अभ्यास करना के साथ-साथ अभ्यास निर्माण प्रक्रिया भाषा शिक्षण का व्यवहारवादी सिद्धान्त है। 
अतः स्पष्ट है कि भाषा शिक्षण हेतु अन्तर्निहित यंत्र व्यवहारवादी सिद्धान्त का अर्थात् अंगभूत क्षमता का अनुसरण नहीं करता। 

रचनात्मकतावादस्य (Constructivism) सिद्धान्तोऽयं चेत् भाषाशिक्षार्थी वर्तते-

  1. ज्ञानस्य पुनः प्रस्तुतकर्ता
  2. ज्ञानस्य ग्रहणकर्ता
  3. ज्ञानस्य निर्माणकर्ता
  4. शिक्षकस्य अनुसरणकर्ता

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : ज्ञानस्य निर्माणकर्ता

सिद्धान्त Question 10 Detailed Solution

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प्रश्न का अनुवाद - रचनात्मकतावाद का जो सिद्धांत है, उसमें भाषा शिक्षार्थी है_______

स्पष्टीकरण -

सीखना एक सतत, सहज, निरंतर चलने वाली एक सामाजिक प्रक्रिया है, जिसमे सीखने वाला अपने वातावरण से परस्पर अंत:क्रिया करते हुए अपने अनुभवों से स्वयं सीखता है। बच्चे अपने आस पास की चीजों से जुड़े रहते हैं। खोजबीन करना, सबाल पूछना, करके देखना, अपने अर्थ बनाना बच्चो की स्वाभिक प्रकृति होती है। 

रचनात्मकतावाद - रचनावाद या रचनात्मकवाद सीखने सिखाने के सिद्धांत को कहते है, जिसमे 'विद्यार्थी अपने ज्ञान की रचना अथवा निर्माण वातावरण से अंत:क्रिया करते हुए अपने अनुभवों से स्वयं करता है।' बच्चा स्वभाविक रूप से ही अपने आप को दूसरो से जोड़ कर देखता है जिससे उसकी समझ विकसित होती है और अपने इन्ही अनुभवों के आधार पर वह अपने जीवन के कार्य कर पाता है। ज्ञान के सृजन की इसी प्राकृतिक विधा को शिक्षा शास्त्र में 'रचनावाद' कहा गया है ।

वर्तमान शिक्षा प्रणाली पर रचनात्मकतावाद का बहुत प्रभाव है  यह शिक्षण और अधिगम का एक प्रभावी तरीका है। वर्तमान स्कूली शिक्षा कार्यक्रम रचनात्मकतावाद पर आधारित है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली में किए गए परिवर्तन इस प्रकार हैं:

  • अधिगम के उद्देश्यों का चयन।
  • उपयुक्त शिक्षण-अधिगम रणनीतियों का चयन करना।
  • छात्र प्रगति को मापने और निर्णय लेने के लिए लिखित परीक्षा द्वारा मूल्यांकन।
  • अधिगम के उद्देश्यों को मापने के लिए परीक्षा।
  • शिक्षार्थी की उपलब्धि की कोई वस्तुपरक व्याख्या नहीं।
  • संज्ञानात्मक उद्देश्यों पर जोर। प्रत्येक बच्चे में अपनी समझ और ज्ञान का निर्माण करने की क्षमता होती है।

Key Points

रचनात्मकतावाद -

  • रचनात्मक शिक्षा समस्या-समाधान में छात्र की सक्रिय भागीदारी और अधिगम की गतिविधियों के बारे में गहन सोच पर आधारित है।
  • छात्र अपने स्वयं के ज्ञान का निर्माण करते हैं और उन्हें नई स्थिति में लागू करते हैं।
  • शिक्षक एक सूत्रधार या प्रशिक्षक होता है जो अधिगम प्रक्रिया के दौरान छात्र की गहन सोच, विश्लेषण और संश्लेषण क्षमताओं का मार्गदर्शन करता है।
  • विज्ञान शिक्षण को हमेशा दिलचस्प बनाया जाना चाहिए क्योंकि यह बच्चे को संज्ञानात्मक, सामाजिक, भावनात्मक विकास आदि सभी पहलुओं में विकसित करने में मदद कर सकता है।
  • प्रत्येक बच्चे में अपनी समझ और ज्ञान का निर्माण करने की क्षमता होती है।
  • छात्र को स्वयं प्रयोग करने चाहिए, और यह बहुत आत्मविश्वास का निर्माण करेगा।
  • छात्रों में संज्ञानात्मक क्षमताओं का विकास छात्रों को एक वैज्ञानिक की तरह सोचने में मदद करता है।

अतः स्पष्ट है कि रचनात्मकतावाद का जो सिद्धांत है, उसमें भाषा शिक्षार्थी 'ज्ञान का निर्माण करने वाला' होता है। 

कः शिक्षणसिद्धान्तः मानसिकविकासे तीव्रगतिमादधाति ?

  1. अभ्यासस्य सिद्धान्तः
  2. रुचे∶ सिद्धान्तः
  3. मौखिककार्यस्य सिद्धान्तः
  4. सक्रियतायाः सिद्धान्तः

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : सक्रियतायाः सिद्धान्तः

सिद्धान्त Question 11 Detailed Solution

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प्रश्न का हिंदी अनुवाद - कौनसा सिद्धांत मानसिक विकास की तीव्र गति मानता है?

स्पष्टीकरण - सक्रिय अनुबंधन सिद्धांत अर्थात 'सक्रियता का सिद्धान्त' स्किनर की खोज है| इस अनुबंधन की मूल धारणा है कि सीखने वाले की क्रिया का पुनर्बलन ( Reinforcement ) हो जाता है। यह स्थिति किसी वातावरण में क्रियाशील (सक्रियता) होने पर होती है। अतः इसे 'क्रिया-प्रसूत अनुबंधन' भी कहा जाता है और यह एक मनोवैज्ञानिक अधिगम सिद्धांत है।
स्किनर ( Skinner ) के अनुसार दो प्रकार के व्यवहार होते हैं-अनुक्रिया तथा सक्रियता ( Operant )। अनुक्रिया का संबंध उद्दीपन से होता है। सक्रियता (सक्रिय व्यवहार)  का संबंध किसी ज्ञात उद्दीपन से नहीं होता।
अनुक्रिया की दर ही सक्रिय शक्ति की माप है।

प्रयोग - क्रिया-प्रसूत अनुबंधन सिद्धांत के सबसे बड़े पक्षधर बी एफ स्किनर हैं। उसने चूहे पर प्रयोग किया। उसने एक डिब्बे का निर्माण करवाया जिसे स्किनर बॉक्स कहा जाता है। इस डिब्बे में सामने की दीवार पर एक लीवर लगा था। लिवर को दबाना वह अनुक्रिया थी, जो चूहे को सिखानी थी। एक भूखे चूहे को बॉक्स में बंद कर दिया गया।  चूहे ने अंदर जाकर अनेक प्रकार की क्रियाएं की। कुछ देर बाद अचानक उस से लीवर दब गया और उसके सामने की प्लेट में खाना आकर गिर गया। भोजन खाने के बाद चूहे ने दोबारा क्रियाएं की। कुछ देर बाद उससे वह लीवर दोबारा दब गया। पुन: प्लेट में भोजन गिर गया।
अंत में चूहा यह सीख गया कि लीवर को दबाने पर भोजन मिलता है। यह उसके लिए एक संतुष्टि प्रदान करने वाला परिणाम था। दूसरे शब्दों में चूहे द्वारा लिवर को दबाना भोजन (पुनर्बलन) प्रदान करने वाला निमित्त (साधन /कारण) बन गया। चूहे का लीवर दबाना एक पुनर्बलित अनुक्रिया (Reinforced Response) थी।
इसको “यांत्रिक अनुबंधन” (Instrumental Conditioning) भी कहा जाता है तथा “क्रिया-प्रसूत”(Operant Conditioning) भी कहा जाता है। स्कीनर के अनुसार पुनर्बलन से मानसिक विकास तीव्र गति से होता है।

अतः स्पष्टीकरण से ज्ञात होता है कि 'सक्रिय अनुबंधन सिद्धांत अर्थात 'सक्रियता का सिद्धान्त' मानसिक विकास की तीव्र गति मानता है।

ज्ञानवादिसिद्धान्तानुसारं बालाः भाषायाः अधिगमनं प्रभाविरूपेण कुर्वन्ति यदा

  1. कक्षा शिक्षकस्य नियन्त्रणे स्यात् तथा च सः छात्राणां कृते अधिकम् अवकाशं न ददाति।
  2. व्याकरणस्य नियमान् कण्ठस्थी कर्तुं छात्रान् प्रोत्साहयति।
  3. कृष्णफलकात् छात्राः स्पष्टतया उत्तराणि लिखन्ति।
  4. विभिन्नकौशलाधारितकार्येषु गतिविधिषु च सहभागं ग्रहीतुं शिक्षकः छात्रान् प्रोत्साहयति।

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : विभिन्नकौशलाधारितकार्येषु गतिविधिषु च सहभागं ग्रहीतुं शिक्षकः छात्रान् प्रोत्साहयति।

सिद्धान्त Question 12 Detailed Solution

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प्रश्नार्थ- ज्ञानवादी सिद्धांत के अनुसार बच्चे भाषा का अधिगम तब करते है जब-

स्पष्टीकरण -

ज्ञानवादी अवधारणा के अनुसार शिक्षार्थियों में विचारों के कारण प्रेरणा होती है। उन्हें सीखने के लिए बाह्य प्रेरणा की भूमिका में विश्वास नहीं है। वे मानते हैं कि शिक्षार्थियों की आंतरिक प्रेरणा सीखने के लिए, उनका ध्यान (किसी व्यक्ति की व्याख्या करने की क्षमता, औचित्य और बहाना) और उनके पर्यावरण को नियंत्रित करने के लिए उनका विश्वास प्रेरणा में योगदान देता है। शिक्षार्थियों को सक्रिय और उत्सुक व्यक्तियों के रूप में देखा जाता है जो स्वयं से अपनी समस्याओं को हल करने के लिए जानकारी की खोज कर रहे होते हैं।

अतः स्पष्ट है कि ज्ञानवादी सिद्धान्तानुसार शिक्षक जब छात्रों को विविध कौशलाधारित गतिविधियों के अवसर देता है और उसमें सक्रिय भूमिका के लिए उन्हें प्रोत्साहित करता है तो  बच्चे भाषा का अधिगम तब करते है।

इसीलिए उचित पर्याय 'विभिन्नकौशलाधारितकार्येषु गतिविधिषु च सहभागं ग्रहीतुं शिक्षकः छात्रान् प्रोत्साहयति'

Additional Information

जैसा कि उपर्युक्त पङ्क्तियों से स्पष्ट है कि ज्ञानवादी सिद्धान्त के अनुसार छात्र को अधिगम के उचित अवसर प्राप्त होने चहिए तो निम्नलिखित पर्याय स्वतः ही अर्थहीन हो जाते हैं -

  • कक्षा शिक्षकस्य नियन्त्रणे स्यात् तथा च सः छात्राणां कृते अधिकम् अवकाशं न ददाति।- कक्षा शिक्षक के नियंत्रण में होंगी और वह छात्रों के लिए अधिक समय नहीं देंगे, ऐसा करने पर छात्र को अवसर नहीं मिलेगा।
  • व्याकरणस्य नियमान् कण्ठस्थी कर्तुं छात्रान् प्रोत्साहयति।- व्याकरण नियमो को कंठस्थ करने के लिए छात्रों को प्रोत्साहित करना, ज्ञानवादी छात्रों की आन्तरिक प्रेरणा पर विश्वास करते हैं और कंठस्थ करने पर आन्तरिक प्रेरणा का ह्रास होता है।
  • कृष्णफलकात् छात्राः स्पष्टतया उत्तराणि लिखन्ति।- श्यामपट्ट से छात्र उत्तर स्पष्टतः लिखते हैं, यहाँ तो छात्रों में विचार के अवसर को ही समाप्त कर दिया जाता है। 

परिपृच्छा-आधारितम् अधिगमनम्

  1. छात्रान् प्रश्नान् प्रष्‍टुं प्रेरयति।
  2. छात्रेभ्यः चिन्तनात्मकं प्रोत्साहनं न प्रयच्छति।
  3. केवलं शान्तदछात्रान् प्रेरयति।
  4. छात्रेषु रचनात्मक-चिन्तनं न पोषयति।

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : छात्रान् प्रश्नान् प्रष्‍टुं प्रेरयति।

सिद्धान्त Question 13 Detailed Solution

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प्रश्न अनुवाद - परिपृच्छा आधारित अधिगम का अर्थ क्या होता है? 

स्पष्टीकरण - परिपृच्छा आधारित अधिगम का अर्थ छात्रों को प्रश्न पुछने के लिए प्रेरित करना यह होता है। 

Important Points

परिपृच्छा शिक्षण प्रतिमान -

परिपृच्छा शिक्षण प्रतिमान के मुख्य प्रवर्तक रिचर्ड सचमैन हैं।

'परिपृच्छा आधारित अधिगम' को  'पूछताछ अधिगम सिद्धान्त' यह नाम से भी जाना जाता है। 

परिपृच्छा शिक्षण प्रतिमान का उद्देश - 

  • वैज्ञानिक पूछताछ के विश्लेषण द्वारा छात्रों को नवीन ज्ञान प्रदान कराने के लिए पृच्छा प्रशिक्षण प्रतिमान का विकास किया गया।
  • छात्र स्वयं पूछताछ के माध्यम से प्रत्ययों की तार्किक ढंग से व्याख्या करता है। इसके उपयोग से छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी उत्पन्न करने में सहायता मिलती है।
  • सर्वप्रथम यह केवल 'भौतिक विज्ञान' की समस्याओं के समाधान हेतु में उपयोग में लाया गया। पर बाद में सभी विषयों में इसका प्रयोग किया जाने लगा।
  • परिपृच्छा प्रतिमान का प्रयोग - 'संज्ञानात्मक कौशलों के विकास' हेतु सहायक है।
  • परिपृच्छा प्रशिक्षण प्रतिमान - 'आगमनानक विधि सिद्धान्त' पर आधारित है।
  • इस प्रतिमान के प्रवर्तक सचमैन का विश्वास था कि बालक स्वभाव से जिज्ञासु होते हैं तथा वे अपनी जिज्ञासा की सन्तुष्टि के लिये पूछताछ में आनन्द का अनुभव करते हैं।
  • पूछताछ की प्रक्रिया से बच्चों में पूछताछ के कौशल का विकास होता है।

अत: उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है की परिपृच्छा आधारित अधिगम में  छात्रों को प्रश्न पुछने के लिए प्रेरित किया जाता है। 

 

Additional Information

अन्य विकल्पों का विश्लेषण :

  • छात्रेभ्यः चिन्तनात्मकं प्रोत्साहनं न प्रयच्छति - छात्रों के लिए चिन्तनात्मक प्रोत्साहन नही देती ।
  • केवलं शान्तदछात्रान् प्रेरयति - केवल शान्त छात्रों को ही प्रोत्साहन देती है।
  • छात्रेषु रचनात्मक-चिन्तनं न पोषयति - छात्रों में रचनात्मक तथा चिन्तनात्मक विकास नहीं करती।

Key Points

इस प्रतिमान का विकास 1966 में हुआ था। 

रचनावाद (Constructivism) शिक्षण सिद्धान्तरूपेण मन्यते -

  1. बालाः नवज्ञानं अर्जनं कुर्वन्ति कक्षाशिक्षणमाध्यमेन।
  2. संरचितप्रविधिमाध्यमेन भाषा शिक्ष्यते।
  3. एकेन एव विधिना सर्व छात्राः शिक्ष्यन्ते।
  4. बालाः पूर्वज्ञानसंयोगेन शिक्षयन्ति।

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : बालाः पूर्वज्ञानसंयोगेन शिक्षयन्ति।

सिद्धान्त Question 14 Detailed Solution

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प्रश्नानुवाद - रचनावाद (Constructivism) शिक्षण सिद्धान्त के रूप में मानते हैं -

स्पष्टीकरण - रचनावाद से अभिप्राय है कि छात्र अपने अनुभवों के आधार पर तथ्यों और तत्वों को जाने और ज्ञान निर्माण में संलग्न हो।

  • सीखना एक सतत, सहज, निरंतर चलने वाली एक सामाजिक प्रक्रिया है, जिसमें सीखने वाला अपने वातावरण से परस्पर अंत:क्रिया करते हुए अपने अनुभवों से स्वयं सीखता है।
  • बच्चे अपने आस-पास की चीजों से जुड़े रहते हैं। खोजबीन करना, सवाल पूछना, करके देखना, अपने अर्थ बनाना बच्चों की स्वाभाविक प्रकृति होती है। 
  • शिक्षण सिद्धान्त के रूप में निर्भीयता (रचनावाद) शिक्षण की पूर्ण मनोवैज्ञानिक क्रिया है।

Important Points

रचनात्मकतावाद/रचनावाद-

  • रचनावाद या रचनात्मकवाद सीखने सिखाने के सिद्धांत को कहते हैं, जिसमें 'विद्यार्थी अपने ज्ञान की रचना अथवा निर्माण वातावरण से अंत:क्रिया करते हुए अपने अनुभवों से स्वयं करता है।' बच्चा स्वभाविक रूप से ही अपने आप को दूसरों से जोड़ कर देखता है, जिससे उसकी समझ विकसित होती है और अपने इन्हीं अनुभवों के आधार पर वह अपने जीवन के कार्य कर पाता है।
  • ज्ञान के सृजन की इसी प्राकृतिक विधा को शिक्षा शास्त्र में 'रचनावाद' कहा गया है। यह पूर्णतया मनोवैज्ञानिकी क्रिया है। जो करके सीखना के सिद्धान्त पर आधारित है।
  • रचनात्मक शिक्षा समस्या-समाधान में छात्र की सक्रिय भागीदारी और अधिगम की गतिविधियों के बारे में गहन सोच पर आधारित है।
  • छात्र अपने स्वयं के ज्ञान का निर्माण करते हैं और उन्हें नई स्थिति में लागू करते हैं।
  • शिक्षक एक सूत्रधार या प्रशिक्षक होता है, जो अधिगम प्रक्रिया के दौरान छात्र की गहन सोच, विश्लेषण और संश्लेषण क्षमताओं का मार्गदर्शन करता है।
  • शिक्षण को हमेशा रुचिपूर्ण बनाया जाना चाहिए क्योंकि यह बच्चे को संज्ञानात्मक, सामाजिक, भावनात्मक विकास आदि सभी पहलुओं में विकसित करने में मदद कर सकता है।
  • प्रत्येक बच्चे में अपनी समझ और ज्ञान का निर्माण करने की क्षमता होती है।
  • छात्र को स्वयं प्रयोग करने चाहिए और इससे आत्मविश्वास का निर्माण होगा।
  • छात्रों में संज्ञानात्मक क्षमताओं का विकास छात्रों को एक वैज्ञानिक की तरह सोचने में मदद करता है।

 

अतः कहा जा सकता है कि रचनावाद शिक्षण सिद्धान्त के रूप में मानते हैं कि बालक पूर्वज्ञान के संयोग से सीखते हैं। (अन्य सभी विकल्प यहाँ असंगत हैं।)

ज्ञानवादिनाम् अवधारणानुसारं (Cognitivists Perspective) भाषाशिक्षकस्य दृष्ट्या बालानां त्रुटयः सन्ति _______

  1. अधिगमे बाधकरूपेण 
  2. अधिगमस्य अङ्गरूपेण येन चिन्तने अन्तदृष्टिः लभ्यते 
  3. तत्क्षणे एव ताः निवारणीयाः भवन्ति येन तासां पुनरावृत्तिः न भवेत् 
  4. तेषांम् अनवधानकारणात् यस्य निराकरणं शीघ्रतया करणयीयम् भवति 

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : अधिगमस्य अङ्गरूपेण येन चिन्तने अन्तदृष्टिः लभ्यते 

सिद्धान्त Question 15 Detailed Solution

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प्रश्न का अर्थ- ज्ञानवादियों के अवधारणानुसार भाषा शिक्षक की दृष्टी में बालकों की त्रुटिया है-

स्पष्टीकरण -

ज्ञानवादी अवधारणा के अनुसार शिक्षार्थियों में विचारों के कारण प्रेरणा होती है। उन्हें सीखने के लिए बाह्य प्रेरणा की भूमिका में विश्वास नहीं है। वे मानते हैं कि शिक्षार्थियों की आंतरिक प्रेरणा सीखने के लिए, उनका ध्यान (किसी व्यक्ति की व्याख्या करने की क्षमता, औचित्य और बहाना) और उनके पर्यावरण को नियंत्रित करने के लिए उनका विश्वास प्रेरणा में योगदान देता है।। शिक्षार्थियों को सक्रिय और उत्सुक व्यक्तियों के रूप में देखा जाता है जो स्वयं से अपनी समस्याओं को हल करने के लिए जानकारी की खोज कर रहे हैं।

अतः स्पष्ट है कि ज्ञानवादियों के अवधारणानुसार भाषा शिक्षक की दृष्टी में बालकों की त्रुटियां अधिगम में प्रधान रूप से है जिससे शिक्षार्थियों में चिन्तन के लिए अन्तःदृष्टि प्राप्त होती है।
इसलिए उचित पर्याय यह 'अधिगमस्य अङ्गरूपेण येन चिन्तने अन्तदृष्टिः लभ्यते' होगा। अन्य पर्याय अनुचित होगे। 
Additional Information
  • अधिगमे बाधकरूपेण- अधिगममे बाधक रूपसे 
  • तत्क्षणे एव ताः निवारणीयाः भवन्ति येन तासां पुनरावृत्तिः न भवेत्- उसी समय ही उसका निवारण करना, जिससे उसकी पुनरावृत्ति न हो 
  • तेषांम् अनवधानकारणात् यस्य निराकरणं शीघ्रतया करणयीयम् भवति- उनके अनवधान के कारण से उसका निराकरण शीघ्रता से करना चाहिए 
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