प्रसाद पूर्व नाटक MCQ Quiz in मल्याळम - Objective Question with Answer for प्रसाद पूर्व नाटक - സൗജന്യ PDF ഡൗൺലോഡ് ചെയ്യുക
Last updated on Mar 24, 2025
Latest प्रसाद पूर्व नाटक MCQ Objective Questions
Top प्रसाद पूर्व नाटक MCQ Objective Questions
प्रसाद पूर्व नाटक Question 1:
रचनाकाल के अनुसार भारतेंदु के निम्न नाटकों का सही क्रम पहचानिए I
Answer (Detailed Solution Below)
प्रसाद पूर्व नाटक Question 1 Detailed Solution
रचनाकाल के अनुसार भारतेंदु के नाटकों का सही क्रम :
- भारत दुर्दशा, नीलदेवी, अंधेर नगरी, सती प्रताप
Key Points
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र:
- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (9 सितंबर 1850-6 जनवरी 1885) आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाते हैं।
- वे हिन्दी में आधुनिकता के पहले रचनाकार थे। इनका मूल नाम 'हरिश्चन्द्र' था, 'भारतेन्दु' उनकी उपाधि थी।
- उनका कार्यकाल युग की सन्धि पर खड़ा है।
- भारतेन्दु बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे।
- हिन्दी पत्रकारिता, नाटक और काव्य के क्षेत्र में उनका बहुमूल्य योगदान रहा।
- हिन्दी में नाटकों का प्रारम्भ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से माना जाता है।
- भारतेन्दु के नाटक लिखने की शुरुआत बंगला के विद्यासुन्दर (1867) नाटक के अनुवाद से होती है।
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा रचित काव्य कृतियाँ:
- भक्तसर्वस्व
- प्रेममालिका
- कार्तिक स्नान
- वैशाख महात्म्य
- प्रेम सरोवर
- प्रेमाश्रुवर्षण
- जैन कुतूहल
- प्रेम सतसई श्रृंगार
- प्रेम माधुरी
- प्रेम-तरंग
प्रसाद पूर्व नाटक Question 2:
“दुःखिनी बाला' नाटक के लेखक कौन हैं?
Answer (Detailed Solution Below)
प्रसाद पूर्व नाटक Question 2 Detailed Solution
“दुःखिनी बाला' नाटक के लेखक :- राधाकृष्ण दास है।
- राधा कृष्ण दास के नाटक:-
- दुःखिनी बाला (1880) , पद्मावती तथा महाराणा प्रताप
Key Points
- राधा कृष्ण दास नागरी प्रचारिणी पत्रिका संपादक हैं।
- नागरी प्रचारिणी सभा के प्रथम अध्यक्ष भी थे।
- नागरीप्रचारिणी पत्रिका का प्रकाशन नागरीप्रचारिणी सभा द्वारा 1896 में आरम्भ हुआ था।
- उस समय यह हिन्दी की त्रैमासिक पत्रिका थी।
- 1907 ई. में यह मासिक पत्रिका में परिवर्तित कर दी गई।
- श्यामसुन्दर दास, महामहोपाध्याय सुधाकर द्विवेदी, कालीदास और राधाकृष्ण दास इसके सम्पादक थे।
- नागरी प्रचारिणी पत्रिका हिंदी की सबसे प्राचीन शोध पत्रिका है।
प्रसाद पूर्व नाटक Question 3:
'अंधेर नगरी' नाटक का अंतिम दृश्य है
Answer (Detailed Solution Below)
प्रसाद पूर्व नाटक Question 3 Detailed Solution
- सही उत्तर विकल्प 4 है।
- अंधेर नगरी नाटक का अंतिम दृश्य श्मशान का है।
- अंधेर नगरी - भारतेंदु हरिश्चंद्र
- वर्ष - 1881
- यह एक प्रहसन है।
- अंक - 6
- राजा की मूर्खता, अन्याय पर व्यंग्य
Important Points
- अंक - स्थान
- प्रथम - बाह्य
- द्वितीय - बाजार
- तृतीय - जंगल
- चतुर्थ - राजसभा
- पंचम - आरण्य
- षष्ठ - श्मशान
- पात्र - महंत, गोबर्धन दास, राजा, मंत्री आदि
Additional Information
- भारतेंदु के अन्य प्रमुख नाटक -
- वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति -1873
- भारत दुर्दशा - 1880
- नीलदेवी - 1881
- सती प्रताप - 1883
प्रसाद पूर्व नाटक Question 4:
'अंधेर नगरी' नाटक के दूसरे दृश्य(बाजार) में आए पात्रों को पहले से बाद के क्रम में लगाइए :
(A) हलवाई
(B) घासीराम
(C) नरंगीवाली
(D) कबाबवाला
(E) कुजडिन
नीचे दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर का चयन कीजिए:
Answer (Detailed Solution Below)
प्रसाद पूर्व नाटक Question 4 Detailed Solution
'अंधेर नगरी' नाटक के दूसरे दृश्य(बाजार) में आए पात्रों को पहले से बाद के क्रम- "(D), (B), (C), (A), (E)"।
- (D) कबाबवाला
- (B) घासीराम
- (C) नरंगीवाली
- (A) हलवाई
- (E) कुजडिन
Key Pointsअंधेर नगरी-
- रचनाकार- भारतेन्दु हरिश्चंद्र
- विधा- नाटक
- प्रकाशन वर्ष- 1881 ईo
- अंक- 6
- कुल दृश्य- 6
- प्रथम अंक- स्थान - बाहरी प्रान्त।
- द्वितीय अंक- स्थान - बाजार।
- तृतीय अंक- स्थान - जंगल।
- चतुर्थ अंक- स्थान - राजसभा।
- पंचम अंक- स्थान - अरण्य।
- छठा दृश्य- स्थान - श्मशान।
- श्रेणी- प्रहसन।
- विषय वस्तु-
- 'अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा’ इस प्रहसन में भारतेंदु जी ने उस समय के राज व्यवस्था, उच्चवर्गों की खुशामदी, जातिप्रथा की आलोचना की है।
- अंग्रेजी राज्य के सामाजिक और व्यवासायिक स्थिति का चित्रण किया गया है।
- लालच छोड़कर ज्ञानी और समझदार बनाने का नसीहत है।
- इस प्रहसन का अंत ‘असत्य पर सत्य’ की विजय के साथ सुखांत है।
- मुख्य पात्र-
- महंत, गोवर्धनदास, नारायनदास, कबाबवाला, घासीराम, नारंगीलाल, हलवाई,
- कुजड़ीन, मुगल, पाचकवाला, मछलीवाली, जातवाला, बनिया, राजा, मंत्री, माली,
- दो नौकर, फरियादी, कल्लू, कारीगर, चूनेवाला, भिश्ती, कस्साई, गड़ेरिया, कोतवाल, चार सिपाही।
Important Pointsभारतेन्दु हरिश्चंद्र-
- जन्म- 1850 - 1885 ईo
- आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाते हैं।
- वे हिन्दी में आधुनिकता के पहले रचनाकार थे।
- इनका मूल नाम 'हरिश्चन्द्र' था, 'भारतेन्दु' उनकी उपाधि थी।
- भारतेन्दु के वृहत साहित्यिक योगदान के कारण ही 1857 से 1900 तक के काल को भारतेन्दु युग के नाम से जाना जाता है।
- हिन्दी में नाटकों का प्रारम्भ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से माना जाता है।
- भारतेन्दु के नाटक लिखने की शुरुआत बंगला के विद्यासुन्दर (1867) नाटक के अनुवाद से होती है।
- मौलिक नाटक-
- वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति (1873)
- विषस्य विषमौषधम् (1876)
- प्रेम जोगिनी (1875)
- चन्द्रावली (1876)
- भारत-दुर्दशा (1880)
- नीलदेवी (1881)
- अंधेर नगरी (1881)
- सती प्रताप (1883)
- अनूदित नाट्य रचनाएँ-
- रत्नावली (1868)
- विद्यासुंदर (1868)
- पाखंड विडम्बन (1872)
- धनंजय विजय (1873)
- मुद्रा राक्षस (1878)
- दुर्लभ बंधु (1880)
- कर्पूरमंजरी (1875)
- सत्य हरिश्चन्द्र (1875)
- भारत जननी (1877)
प्रसाद पूर्व नाटक Question 5:
भारत दुर्दशा नाटक के तीसरे अंक का स्थान क्या है?
Answer (Detailed Solution Below)
प्रसाद पूर्व नाटक Question 5 Detailed Solution
- एक - बीथी(मार्ग)
- दो - श्मसान
- तीन - मैदान
- चार - कमरा
- पांच - किताबखाना
- छह - गंभीर वन का मध्यभाग
प्रसाद पूर्व नाटक Question 6:
'नीलदेवी' के रचनाकार कौन है?
Answer (Detailed Solution Below)
प्रसाद पूर्व नाटक Question 6 Detailed Solution
नीलदेवी - 1881 (गीतिरूपक) --> भारतेंदु हरिश्चन्द्र
- वैदिक हिंसा हिंसा न भवति - 1873
- यह प्रहसन सामाजिक धार्मिक विसंगति पर व्यंग्य हैI
- अंधेर नगरी - 1881
- इस प्रहसन में राजा की मूर्खता, अन्याय, और अंधेरगर्दी पर व्यंग्य है।
- राजनीतिक व्यंग्य का अच्छा उदाहरणI
Important Points
- भारतेंदु के समस्त मौलिक एवं अनूदित नाटकों की संख्या - 17
- भारतेंदु को ही हिंदी साहित्य में नाट्य विधा का प्रवर्तक माना जाता हैI
- अंधेर नगरी, भारत - जननी, नील देवी, भारत दुर्दशा की रचना देश वस्त्सलता के उद्देश्य से की।
Additional Information
- भारतेंदु के मौलिक नाटक
- विषस्य विषमौषधम - 1876 (भाण -एक पात्रीय नाटक)
- प्रेम जोगिनी - 1875 (4 अंकों की नाटिका)
- चंद्रावली - 1876 (नाटिक)
- भारत दुर्दशा - 1880 (नाट्य रूपक)
- नीलदेवी - 1881 (गीतिरूपक)
- अंधेर नगरी - 1881 (प्रहसन)
- सती प्रताप (यह नाटक अधूरा रहा जिसे राधा कृष्णदास ने पूरा किया) - 1883 (पौराणिक नाटक)
प्रसाद पूर्व नाटक Question 7:
भारतेंदु की निम्नलिखित मौलिक नाट्यरचनाओं में कौन-से प्रहसन हैं ?
A. वैदिक हिंसा हिंसा न भवति
B. नीलदेवी
C. अंधेरनगरी
D. भारत दुर्दशा
नीचे दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर चुनिये:
Answer (Detailed Solution Below)
प्रसाद पूर्व नाटक Question 7 Detailed Solution
- भारतेंदु द्वारा रचित प्रहसन हैं -
- वैदिक हिंसा हिंसा न भवति
- अंधेर नगरी
- अतः सही उत्तर विकल्प 4 होगा - A और C
- वैदिक हिंसा हिंसा न भवति - 1873
- यह प्रहसन सामाजिक धार्मिक विसंगति पर व्यंग्य हैI
- अंधेर नगरी - 1881
- इस प्रहसन में राजा की मूर्खता, अन्याय, और अंधेरगर्दी पर व्यंग्य है।
- राजनीतिक व्यंग्य का अच्छा उदाहरणI
Important Points
- भारतेंदु के समस्त मौलिक एवं अनूदित नाटकों की संख्या - 17
- भारतेंदु को ही हिंदी साहित्य में नाट्य विधा का प्रवर्तक माना जाता हैI
- अंधेर नगरी, भारत - जननी, नील देवी, भारत दुर्दशा की रचना देश वस्त्सलता के उद्देश्य से की।
Additional Information
- भारतेंदु के मौलिक नाटक
- विषस्य विषमौषधम - 1876 (भाण -एक पात्रीय नाटक)
- प्रेम जोगिनी - 1875 (4 अंकों की नाटिका)
- चंद्रावली - 1876 (नाटिक)
- भारत दुर्दशा - 1880 (नाट्य रूपक)
- नीलदेवी - 1881 (गीतिरूपक)
- अंधेर नगरी - 1881 (प्रहसन)
- सती प्रताप (यह नाटक अधूरा रहा जिसे राधा कृष्णदास ने पूरा किया) - 1883 (पौराणिक नाटक)
प्रसाद पूर्व नाटक Question 8:
‘दु:खिनी बाला’ नाटक के लेखक हैं
Answer (Detailed Solution Below)
प्रसाद पूर्व नाटक Question 8 Detailed Solution
दुखिनी बाला नाटक के लेखक राधा कृष्ण दास है।
दुःखिनी बाला
- लेखक :- राधा कृष्ण दास
- वर्ष :- 1980
राधा कृष्ण दास के अन्य नाटक-
- पद्मावती :- 1882
- महाराणा प्रताप :- 1897
- यह भारतीय युग के प्रमुख ऐतिहासिक नाटकों में शामिल हैं।
लाला श्रीनिवास दास के नाटक-
- प्रह्लाद चरित्र (1888)
- राम कृष्ण के चरित्र पर आधारित पौराणिक नाटक।
- रणधीर प्रेम मोहिनी (1877)
- तप्ता संवरण (1883)
- भारतेंदु युग का प्रेम प्रधान रोमानी नाटक।
- संयोगिता स्वयंवर (1886)
- भारतेंदु युग का ऐतिहासिक नाटक।
किशोरी लाल गोस्वामी के नाटक
- मयंक मंजरी (1891)
- प्रणयिनी परिणय (1890)
- यह प्रेम प्रधान रोमानी नाटक है।
चौपट चपेट भी इन्हीं का नाटक है।
प्रताप नारायण मिश्र के नाटक-
- गो संकट, भारत दुर्दशा, कलिकौतुक, कलिप्रभाव, हठी हम्मीर।
- जुआरी-खुआरी (प्रहसन)।
- संगीत शाकुंतल (कालिदास के 'अभिज्ञानशाकुंतम्' का अनुवाद है)।
प्रसाद पूर्व नाटक Question 9:
अंग्रेजी नाटक 'मर्चेंट ऑफ़ वेनिस' का अनुवाद भारतेंदु ने किस नाम से किया?
Answer (Detailed Solution Below)
प्रसाद पूर्व नाटक Question 9 Detailed Solution
भारतेंदु ने मर्चेट आँफ वेनिस का 'दुर्लभ बंधु' के नाम से अनुवाद किया।
Key Points
- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (9 सितंबर 1850-6 जनवरी 1885) आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाते हैं।
- वे हिन्दी में आधुनिकता के पहले रचनाकार थे। इनका मूल नाम 'हरिश्चन्द्र' था, 'भारतेन्दु' उनकी उपाधि थी।
- उनका कार्यकाल युग की सन्धि पर खड़ा है।
- भारतेन्दु बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे।
- हिन्दी पत्रकारिता, नाटक और काव्य के क्षेत्र में उनका बहुमूल्य योगदान रहा।
- हिन्दी में नाटकों का प्रारम्भ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से माना जाता है।
- भारतेन्दु के नाटक लिखने की शुरुआत बंगला के विद्यासुन्दर (1867) नाटक के अनुवाद से होती है।
- भारतेंदु ने मर्चेट आँफ वेनिस का 'दुर्लभ बंधु' के नाम से अनुवाद किया।
- इसकी भाषा खड़ी बोली थी।
भारतेंदु(जन्म1850) के प्रमुख नाटक-
मौलिक नाटक |
अनुदित नाटक |
वैदिक हिंसा हिंंसा न भवति (1973), विषस्य विषमोषधम् (1876), प्रेम जोगिनी (1875), चंद्रावली (1876), भारत-दूर्दशा (1880), नीलदेवी (1881), अंधेर नगरी (1881)। |
रत्नावली (1868), विद्यासुंदर (1868), पाखंड विडम्बन (1872), धनंजय विजय (1873), दुर्लभ बंधु (1880) , कपूर मंजरी(1875), सत्य हरिश्चंद (1875), भारत जननी (1877) आदि। |
Important Points
- भारतेंदु के नाटक के पाँच उद्देश हैः-
- हास्य
- श्रृंगार
- कौतुक
- समाज संस्कार
- देश वात्सलता
भारतेंदु ने तीन पत्रिका का संपादन किया हैः-
- कविवचन सुधा (1888 ई.)
- हरिश्चंद्र मैगजीन (1873ई.)
- बालाबोधिनी (1874ई.)
प्रसाद पूर्व नाटक Question 10:
रणधीर प्रेम मोहिनी नाटक के रचनाकार है:-
Answer (Detailed Solution Below)
प्रसाद पूर्व नाटक Question 10 Detailed Solution
"रणधीर प्रेम मोहिनी" नाटक के रचनाकार लाला श्रीनिवास दास हैं। अतः उपर्युक्त विकल्पों में से विकल्प (3) लाला श्रीनिवास दास सही है तथा अन्य विकल्प असंगत है।
- लाला श्रीनिवास दास (1850-1907) को हिंदी का पहला उपन्यास लिखने का गौरव प्राप्त है।
- इस उपन्यास का नाम परीक्षा गुरू (हिन्दी का प्रथम उपन्यास) है जो 25 नवम्बर 1882 को प्रकाशित हुआ।
- इनके नाटकों में शामिल हैं, प्रह्लाद चरित्र, तप्ता संवरण, रणधीर और प्रेम मोहिनी और संयोगिता स्वयंवर।
Additional Information
- बालकृष्ण भट्ट के मौलिक नाटक :-
- दमयन्ती स्वयंवर, बाल-विवाह, चन्द्रसेन, रेल का विकट खेल, आदि।
- राधा कृष्ण दास के नाटक:-
- दुःखिनी बाला (1880) , पद्मावती तथा महाराणा प्रताप