सिद्ध काव्य और कवि MCQ Quiz - Objective Question with Answer for सिद्ध काव्य और कवि - Download Free PDF
Last updated on May 29, 2025
Latest सिद्ध काव्य और कवि MCQ Objective Questions
सिद्ध काव्य और कवि Question 1:
इनमें से चौरासी सिद्धों में प्रथम सिद्ध कौन हैं?
Answer (Detailed Solution Below)
सिद्ध काव्य और कवि Question 1 Detailed Solution
इनमें से चौरासी सिद्धों में प्रथम सिद्ध हैं- सरहपा
Key Pointsसरहपा-
- जन्म-9 वीं शती
- सरहपा हिन्दी के पहले कवि माने जाते हैं।
- इन्होने मैथिली, उड़ीया ,बंगाली में भी रचनाएँ की हैं।
- इनको बौद्ध धर्म की वज्रयान और सहजयान शाखा का प्रवर्तक तथा आदि सिद्ध माना जाता है।
- उनका मूल नाम ‘राहुलभद्र’ था और उनके ‘सरोजवज्र’, ‘शरोरुहवज्र’, ‘पद्म‘ तथा ‘पद्मवज्र’ नाम भी मिलते हैं।
- प्रमुख रचनाएँ-
- श्रीबुद्धकपालतन्त्रपञ्जिका
- श्रीबुद्धकपालसाधनानाम
- सर्वभूतबलिबिद्धि
- श्रीबुद्धकपालमण्डलबिद्धिक्रम प्रद्योत्ननामा
- दोहाकोषगीति
- दोहाकोषनाम चर्यागीति
- दोहाकोषोपदेशगीतिनाम
- कखस्यदोहनाम आदि।
Important Pointsप्रमुख सिद्ध कवि व उनकी रचनाएँ-
- सरहपा (769 ई.) - दोहाकोष
- लुइपा (773 ई. लगभग) -- लुइपादगीतिका
- शबरपा (780 ई.) -- चर्यापद , महामुद्रावज्रगीति , वज्रयोगिनीसाधना
- कण्हपा (820 ई. लगभग) -- चर्याचर्यविनिश्चय, कण्हपादगीतिका
- डोंभिपा (840 ई. लगभग) -- डोंबिगीतिका, योगचर्या, अक्षरद्विकोपदेश
- भूसुकपा-- बोधिचर्यावतार
- आर्यदेवपा -- कावेरीगीतिका
- कंवणपा -- चर्यागीतिका
- कंबलपा -- असंबंध-सर्ग दृष्टि
- गुंडरीपा -- चर्यागीति
- जयनन्दीपा -- तर्क मुदँगर कारिका
- जालंधरपा -- वियुक्त मंजरी गीति, हुँकार चित्त , भावना क्रम
- दारिकपा -- महागुह्य तत्त्वोपदेश
- धामपा -- सुगत दृष्टिगीतिकाचर्या
Additional Informationप्रमुख सिद्ध कवि व उनकी रचनाएँ-
- कण्हपा-
- जन्म- 820 ई. लगभग
- रचना-
- चर्याचर्यविनिश्चय
- कण्हपादगीतिका
- डोम्भिया-
- जन्म- 840 ई.
- रचना-
- डोम्बि-गीतिका
- योगाचर्या
- अक्षरद्विकोपदेश।
- शबरपा-
- जन्म- 780 ई. लगभग
- रचना- चर्यापद
- लुइपा-
- जन्म- 773 ई. लगभग
- रचना- लुइपादगीतिका
सिद्ध काव्य और कवि Question 2:
आलवार भक्तों की संख्या कितनी मानी जाती है?
Answer (Detailed Solution Below)
सिद्ध काव्य और कवि Question 2 Detailed Solution
आलवार भक्तों की संख्या बारह मानी जाती है।
Key Points
- विष्णु या नारायण की उपासना करनेवाले भक्त 'आलवार' कहलाते हैं।
- इनकी संख्या 12 हैं।
- उनके नाम इस प्रकार है -
- पोय्गै आलवार
- भूतत्तालवार
- पेयालवार
- तिरुमालिसै आलवार
- नम्मालवार
- मधुरकवि आलवार
- कुलशेखरालवार
- पेरियालवार
- आण्डाल
- तोण्डरडिप्पोड़ियालवार
- तिरुप्पाणालवार
- तिरुमंगैयालवार
Additional Informationआलवार-
- आलवार भक्त का अर्थ : ‘भगवान में डुबा हुआ' होता है।
- आलवार तमिल कवि एवं सन्त थे।
- आलवार भक्त का काल 6वीं से 9वीं शताब्दी के बीच रहा।
- आलवार के पदों का संग्रह "दिव्य प्रबन्ध" कहलाता है।
- आलवार के पदों को 'वेदों' के तुल्य माना जाता है।
- आलवार सन्त भक्ति आन्दोलन के जन्मदाता माने जाते हैं।
सिद्ध काव्य और कवि Question 3:
स्वयंभू ने पद्धड़िया बंध का प्रवर्तक किसे कहा है ?
Answer (Detailed Solution Below)
सिद्ध काव्य और कवि Question 3 Detailed Solution
स्वयंभू ने पद्धड़िया बंध का प्रवर्तक किसे कहा है- चतुर्मुख
Key Pointsस्वयंभू -
- आठवीं शती (783 ई.) के कवि है।
- स्वयंभू को जैन परंपरा तथा अपभ्रशं का प्रथम कवि माना जाता है।
- स्वयंभू को अपभ्रशं भाषा का वाल्मीकि तथा व्यास कहा जाता है।
- डॉ. भयाणी ने स्वयंभू का अपभ्रशंस का कालिदास कहा है।
- स्वयंभू ने स्वयं कुकवि कहा है।
Important Points
- डॉ रामकुमार वर्मा ने इन हिंदी का प्रथम कवि माना है।
- स्वयंभू की कृतियां –
- पउम चरिउ
- स्वयंभू छंद
- रिटठणेमि चरिउ
- पउम चरिउ –
- यह रामकथा से संबंधित ग्रंथ है।
- इसे अपभ्रशं की रामायण का जाता है और अपभ्रशं में रचित रामकथा से संबंधित प्रथम ग्रंथ है।
- पउम चरिउ में 90 संधिया है।
- इसमें आठ 8 पंक्तियों के बाद दोहा रखा गया यह अपभ्रशं में रचित प्रथम कड़वक रचना है।
- पउम चरिउ को उसके पुत्र त्रिभुवन ने पूरा किया।
- रिटठणेमि चरिउ –
- कृष्ण कथा से संबंधित ग्रंथ है।
- स्वयंभू ने अपनी भाषा को 'देशी भाषा' कहा है।
Additional Informationपुष्पदंत-
- समय-10 वीं शती (इनके समय को लेकर विवाद है सामान्यतः 972 ई. माना जाता है)
- रचनाएँ-
- महापुराण
- णयकुमारचरिउ
- जसहर-चरिउ आदि।
- यह स्वयं को अभिमान मेरु, काव्य रत्नाकार, कविकुल तिलक आदि कहते थे।
- इन्हें अपभ्रंश का भवभूति कहा जाता है।
- शिवसिंह सेंगर ने इन्हें 'भाखा की जड़' कहा है।
धनपाल-
- मुंज ने सरस्वती की उपाधि दी।
- रचनाएँ-
- भविसयत्त कहा(10 वीं शती)।
जोइंदु -
- समय - छठी शती
- जोइंदु से दोहा छंद का आरंभ माना गया है।
- अपभ्रशं से दोहे की शुरुआत मिलती है।
सिद्ध काव्य और कवि Question 4:
निम्नलिखित में से चौरासी सिद्धों के अर्न्तगत नहीं हैं
A. लूहिपा
B. कण्हपा
C. देवसेन
D. विरूपा
E. स्वयंभू
नीचे दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर चुनें:
Answer (Detailed Solution Below)
सिद्ध काव्य और कवि Question 4 Detailed Solution
सही उत्तर है- केवल C, E
सिद्ध काव्य और कवि Question 5:
नाथ सम्प्रदाय में नाथों की कितनी संख्या मानी गई है ?
Answer (Detailed Solution Below)
सिद्ध काव्य और कवि Question 5 Detailed Solution
Top सिद्ध काव्य और कवि MCQ Objective Questions
राहुल सांकृत्यायन ने हिंदी का प्रथम कवि किसे माना है?
Answer (Detailed Solution Below)
सिद्ध काव्य और कवि Question 6 Detailed Solution
Download Solution PDFराहुल सांकृत्यायन ने सिद्ध कवि सरहपा को हिंदी का पहला कवि माना है।
Key Points
- सरहपा का समय इन्होंने 769 ई. माना है।
- सरहपा के अन्य नाम-सरोजवज्र,राहुल भद्र,सरहपाद आदि।
- इनके लिखे 32 ग्रन्थ बताये जाते हैं जिनमें 'दोहा कोश' प्रमुख है।
Important Points
- 'दोहा कोश' का संपादन प्रबोध चन्द्र बागची ने किया।
- बच्चन सिंह-"आक्रोश की भाषा का पहला प्रयोग सरहपा में ही दिखाई देता है।"
Additional Information
रचनाकार | रचना |
अमीर खुसरो | खालिक बारी,पहेलियां,मुकरियां, दो सूखने आदि। |
विद्यापति | कीर्तिलता,कीर्तिपताका,पदावली,गोरक्ष विजय आदि। |
अब्दुर्रहमान | संदेश रासक(खण्ड काव्य) |
'सरहपा' का संबंध निम्नांकित में से किससे है ?
Answer (Detailed Solution Below)
सिद्ध काव्य और कवि Question 7 Detailed Solution
Download Solution PDF- सरहपा का सम्बन्ध सिद्ध साहित्य से है | इनका मत सिद्धमत कहलाता है |
- सिद्धों मे सबसे पुराने सरहपा ही है |
Key Points
- सरहपा का जन्म - 769 ई . में हुआ था |
- सरहपा को सरोजव्रज , राहुल भद्र आदि नामों से भी जाना जाता है|
- सरहपा को हिंदी का प्रथम कवि माना जाता है |
- सरहपा की प्रसिद्ध रचना "दोहाकोश" है |
- सरहपा दोहा - चौपाई छन्द के प्रथम प्रयोक्ता है |
Important Points
- सिद्धो का सम्बन्ध बौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा से है |
- महायान > मंत्रयान > वज्रयान >सहजयान (सिद्धमत )
Additional Information
- सिद्धों का योगदान -
- सिद्धों ने ही सर्वप्रथम जाति , वर्ण - भेद की निंदा की |
- दोहा चौपाई छन्द का सर्वप्रथम प्रयोग सिद्ध सरहपा द्वारा |
- शास्त्रवाद का विरोध एवं लोकवाद की तरफ रुझान |
- ब्राहमणवाद का खण्डन किया एवं कायासाधना पर बल दिया |
- सिद्धों की भाषा को "संध्याभाषा" का नाम मुनिदत्त ने दिया |
सिद्ध-साहित्य के अन्तर्गत चौरासी सिद्धों की वे साहित्यिक रचनाएं आती हैं जो:
Answer (Detailed Solution Below)
सिद्ध काव्य और कवि Question 8 Detailed Solution
Download Solution PDFसिद्ध-साहित्य के अन्तर्गत चौरासी सिद्धों की वे साहित्यिक रचनाएं आती हैं जो तात्कालिक लोक भाषा हिंदी में लिखी गई है। Key Points
- सिद्ध साहित्य के अंतर्गत 84 सिद्धों के समय प्रचलित लोक भाषा हिंदी में जो साहित्य ग्रंथ लिखे गए हैं उनको शामिल किया गया है।
- सिद्ध बौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा से सम्बंधित हैं। सिद्धों ने बौद्ध-धर्म के वज्रयान तत्व का प्रचार करने के लिए जन भाषा में जो साहित्य लिखा वह हिन्दी के सिद्ध साहित्य के अन्तर्गत आता है।
- राहुल सांकृत्यायन ने चौरासी सिद्धों के नामो का उल्लेख किया है।
- सिद्ध साहित्य का आरम्भ सिद्ध सरहपा से होता है। सरहपा को प्रथम सिद्ध माना जाता है।
- इन सिद्धों में सरहपा, शबरपा, लुइपा, डोम्भिपा, कण्हपा तथा कुक्कुरिपा हिन्दी के प्रमुख सिद्ध कवि हैं।
अपभ्रश में दोहा-काव्य की परम्परा का आरम्भ किस कवि ने किया ?
Answer (Detailed Solution Below)
सिद्ध काव्य और कवि Question 9 Detailed Solution
Download Solution PDFअपभ्रंश भाषा में दोहा-काव्य का आरम्भ छठी शताब्दी के कवि जोइन्दु से माना जाता है।
Additional Information
"योगसार" "जोइन्दु" की रचना है।
Key Points
- योग सार की रचना छठी शताब्दी में की गई थी।
- दोहा काव्य का आरंभ छठी शताब्दी के कवि जोइन्दू से माना जाता है।
- जोइन्दू ने दो पुस्तकों की रचना की है:-
- परमात्म प्रकाश
- योग सार
Additional Information
- हेमचन्द्र अपने समय के सबसे प्रसिद्ध जैन आचार्य थे ।
- इन्हें 'प्राकृत का पाणिनि' कहा जाता है ।
Key Points
- हेमचन्द्र अपभ्रंश के भाषिक और व्याकरणिक रूप का स्पष्ट और मानक विवेचन किया ।
- प्राकृत व्याकरण इनका प्रसिद्ध व्याकरण ग्रन्थ है।
Important Points
- हेमचन्द्र द्वारा रचित 'कुमारपालचरित' एक प्राकृत काव्य है , जिसमें अपभ्रंश के पद्य भी रखे गए हैं।
- इनेक अन्य ग्रन्थ हैं - योगशास्त्र , छंदोंनुशासन , देशी नाममाला कोष
कालक्रम की दृष्टि से निम्नलिखित रचनाकारों का सही अनुक्रम है :
Answer (Detailed Solution Below)
सिद्ध काव्य और कवि Question 10 Detailed Solution
Download Solution PDFसही उत्तर - सरहपा, पुष्पदंत, अद्दहमाण, हेमचन्द्र
Key Points
सरहपा | 769 ई. |
पुष्पदंत | 10 वीं शती |
अद्दहमाण | 12 वीं शती |
हेमचन्द्र | 12 वीं शती |
Important Points
- सरहपा 84 सिद्धों में से एक हैं और राहुल सांकृत्यायन ने इन्हें हिंदी का प्रथम कवि माना हैI
- पुष्पदंत अपभ्रंश के मुख्य कवि हैंI
- अद्दहमाण को अब्दुल रहमान भी कहा जाता हैI इन्होंने महत्वपूर्ण ग्रन्थ सन्देशरासक की रचना की हैI
- हेमचन्द्र जैन आचार्यों में से एक हैंI
Additional Information
- राहुल सांकृत्यायन के अनुसार – सरहपा (769 ई.)
- शिवसिंह सेंगर के अनुसार – पुष्प या पुण्ड (10 वीं शताब्दी)
- गणपति चंद्र गुप्त के अनुसार – शालिभद्र सूरि (1184 ई.)
- रामकुमार वर्मा के अनुसार – स्वयंभू (693 ई.)
- हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार- अब्दुल रहमान (13 वीं शताब्दी)
- बच्चन सिंह के अनुसार – विद्यापति (15 वीं शताब्दी)
- चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ के अनुसार- राजा मुंज (993 ई.)
- रामचंद्र शुक्ल के अनुसार- राजा मुंज व भोज (993 ई.)
निम्नलिखित में से कौन-सा नाम सिद्ध - परम्परा की योगिनी का नहीं बल्कि योगी का है
Answer (Detailed Solution Below)
सिद्ध काव्य और कवि Question 11 Detailed Solution
Download Solution PDF- पुतलिपा सिद्ध - परंपरा की योगिनी का नहीं बल्कि योगी का है।
- सिद्धों की संख्या 84 है , इनका केंद्र श्रीपर्वत था।
- सिद्धों ने सन्धा भाषा - शैली का प्रयोग किया है।
Key Points
- सिद्धों का प्रभाव नाथों से होता हुआ भक्तिकालीन निर्गुण संत कवियों पर पड़ा और उन्होंने उलटबासियों लिखीं।
- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने चौरासी सिद्धों के नामों का वर्णन किया।
'घोर अँधारे चंदमणि जिमि उज्जोअ करेइ |
परम महासुह एखु कणे दुरिअ अशेष हरेइ ||'
उपर्युक्त दोहे में 'महासुह' का संबंध किस-किससे है?
(a)महासुख 'महासुह' का तत्सम रूप है |
(b) महासुख वज्रयानियों का पारिभाषिक शब्द है |
(c) प्रज्ञा और योग से महासुख की दशा संभव है |
(d) महासुख निर्वाण-प्राप्ति में बाधक है |
Answer (Detailed Solution Below)
सिद्ध काव्य और कवि Question 12 Detailed Solution
Download Solution PDF'महासुह' का संबंध-3) (a), (b) और (c) से है।
(a)महासुख 'महासुह' का तत्सम रूप है।
(b) महासुख वज्रयानियों का पारिभाषिक शब्द है।
(c) प्रज्ञा और योग से महासुख की दशा संभव है।
Important Points
- वज्रयानशाखा में जो योगी 'सिद्ध' के नाम से प्रसिद्ध हुए वे अपने मत का संस्कार जनता पर भी डालना चाहते थे।
- इससे वे संस्कृत रचनाओं के अतिरिक्त अपनी बानी अपभ्रंशमिश्रित देशभाषा या काव्यभाषा में भी बराबर सुनाते रहे।
- उपर्युक्त पंक्तियाँ इसी का उदाहरण है।
- वज्रयान संस्कृत शब्द,अर्थात् हीरा या तड़ित का वाहन है,जो तांत्रिक बौद्ध धर्म भी कहलाता है।
रचनाकाल के अनुसार निम्नलिखित कवियों का सही अनुक्रम है :
Answer (Detailed Solution Below)
सिद्ध काव्य और कवि Question 13 Detailed Solution
Download Solution PDFरचनाकाल के अनुसार कवियों का सही अनुक्रम-4) सरहपा,लुइपा,पुष्पदंत,अददहमाण है।
Important Points
- सरहपा के प्रथम कवि माने जाते हैं।
- उनका मूल नाम ‘राहुलभद्र’ था और उनके ‘सरोजवज्र’,‘शरोरुहवज्र’,‘पद्म‘ तथा ‘पद्मवज्र’ नाम भी मिलते हैं।
- वे पालशासक धर्मपाल (770-810 ई.) के समकालीन थे।
- लुइपा (773 ई. लगभग) ने लुइपादगीतिका की रचना की।
Additional Information
- सिद्धों का सम्बन्ध बौद्ध धर्म से है।
- इनकी संख्या 84 मानी जाती है जिनमें सरहपा,शबरप्पा,लुइपा,कणहपा आदि मुख्य हैं।
- पुष्पदंत अपभ्रंश भाषा के महाकवि थे जिनकी तीन रचनाएँ प्रकाश में आ चुकी हैं-महापुराण,जसहरचरित(यशोधरचरित) और णायकुमारचरिअ (नागकुमारचरित)।
- अददहमाण का जन्म 12वीं शताब्दी में माना है।
जन्मकाल के अनुसार निम्नलिखित कवियों का सही अनुक्रम है -
(A) लुइपा
(B) स्वयंभू
(C) हेमचन्द्र
(D) पुष्पदंत
नीचे दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर का चयन चुनिए -
Answer (Detailed Solution Below)
सिद्ध काव्य और कवि Question 14 Detailed Solution
Download Solution PDFविकल्प 2 (B,A,D,C) सही है।
स्वयंभू :- 783
लुइपा :- 840 ईस्वी
पुष्यदंत :- 972
हेमचन्द्र :- 1088
लुइपा
- इनके द्वारा इक्कीस ग्रंथों की रचना की गई, जिनमें 'डोम्बि-गीतिका', 'योगाचर्या' और 'अक्षरद्विकोपदेश' प्रमुख हैं।
- यह 84 सिद्धों में से एक हैं।
स्वयम्भू
- ग्रंथ :- पउम चरिउ, रिट्ठणेमि चरिउ, स्वयम्भू छंद।
- यह जैन परंपरा के प्रथम कवि हैं।
पुष्यदंत
- रचनाएँ :- तिरसठी महापुरिस गुणालंकार, णयकुमार चरिउ, जसहर चरिउ।
- तिरसठी महापुरिस गुणालंकार को महापुराण के नाम से जाना जाता है।
हेमचन्द्र
- पुस्तक :- सिद्ध हेमचंद्र शब्द अनुशासन, कुमारपाल चरित्र, योगशास्त्र, प्राकृत व्याकरण, छंदोनुशासन, देशी नाम माला कोष।
- हेमचंद्र का व्याकरण सिद्ध हेम नाम से प्रसिद्ध हुआ।
हेमचंद्र को प्राकृत का पाणिनि कहते हैं।
पुष्यदंत को हिंदी का भवभूति कहते हैं।
स्वयंभू को अपभ्रंश का वाल्मीकि कहते हैं।
"पउमचरिउ" में किसका वर्णन है?
Answer (Detailed Solution Below)
सिद्ध काव्य और कवि Question 15 Detailed Solution
Download Solution PDF'पउमचरिउ' मानव मूल्यों की सक्रिय चेतना का एक ऐसा ललित काव्य है जिसमें रामकथा का परम्परागत वर्णन होने पर भी जिसके शैली-शिल्प, चित्रांकन, लालित्य और कथावस्तु में अनेक विशेषताएँ हैं।
- इसके रचनाकार: स्वयं भू
Key Points
"पउमचरिउ", "स्वयंभू" की रचना है।
Important Points
- पउमचरिउ को पूरा स्वयंभू के पुत्र त्रिभुवन ने किया थाl
- पउमचरिउ, रामकथा पर आधारित अपभ्रंश का एक महाकाव्य है।
- बारह हजार पद हैं।
- मूलरूप से इस रामायण में कुल 92 सर्ग थे, जिनमें स्वयंभू के पुत्र त्रिभुवन ने अपनी ओर से 16 सर्ग और जोड़े।
- गोस्वामी तुलसीदास के 'रामचरित मानस' पर महाकवि स्वयंभू रचित 'पउम चरिउ' का प्रभाव स्पष्ट दिखता है।
रचना |
रचनाकार |
शताब्दी |
रिट्ठमेणी चरिउ |
स्वयंभू |
आठवीं शताब्दी |
नागकुमारचरिउ |
स्वयंभू |
आठवीं शताब्दी |