लेव वायगोत्स्की व जीन पियाजे के सिद्धान्तों में मुख्य भेद क्या है?

This question was previously asked in
CTET Paper 2 Maths & Science 30th Dec 2021 (English-Hindi-Sanskrit)
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  1. अर्थ-निर्माण की प्रक्रिया में बच्चों की रचनात्मक/वस्तुनिष्ठ भूमिका
  2. बच्चो को सक्रिय/निष्क्रिय कार्यकर्ता के रूप में देखना 
  3. भाषा व सोच के बीच संबंध 
  4. सीखने की प्रक्रिया की सरल/जटिल समझ

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Option 3 : भाषा व सोच के बीच संबंध 
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संज्ञानात्मक विकास में समस्या-समाधान, नैतिक समझ, अवधारणात्मक समझ, भाषा अर्जन, सामाजिक, व्यक्तित्व और भावनात्मक विकास, और आत्म-अवधारणा और पहचान निर्माण जैसे क्षेत्र शामिल हैं। बच्चों में संज्ञानात्मक विकास को प्रभावित करने वाले जोखिम कारकों और हस्तक्षेपों को तीन क्षेत्रों: पोषण, पर्यावरण और मातृ-बाल अन्तः क्रिया में विभाजित किया जा सकता है।

Key Points

रचनावादी जैसे कि जीन पियाजे और लेव वायगोत्स्की अधिगम को सक्रिय संबंध द्वारा अर्थ-निर्माण की एक सतत प्रक्रिया के रूप में देखते हैं। लेव वायगोत्स्की और जीन पियाजे के सिद्धांत के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर भाषा और विचार के बीच का संबंध है।

  • जीन पियाजे के अनुसार, विचार बच्चे में भाषा या भाषा के विकास से पहले होता है, दूसरी ओर, वायगोत्स्की का विचार है कि विचार और भाषा पहले स्वतंत्र रूप से विकसित होते हैं और फिर एक दूसरे के साथ विलीन हो जाते हैं।
  • जीन पियाजे का मानना था कि भाषा का विकास केवल बच्चे की संज्ञानात्मक या जन्मजात क्षमताओं से होता है, दूसरी ओर, वायगोत्स्की का मानना है कि भाषा का विकास संज्ञानात्मक और सामाजिक दोनों कारकों से होता है।
  • इसलिए इन सभी निष्कर्षों से, हम विचार कर सकते हैं कि लेव वायगोत्स्की और जीन पियाजे के सिद्धांतों के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर भाषा और विचार के बीच का संबंध है।

Additional Information

  • लेव वायगोत्स्की एक रूसी मनोवैज्ञानिक हैं जिन्होंने सामाजिक-सांस्कृतिक विकास के सिद्धांत का प्रस्ताव रखा था। इस सिद्धांत में, वायगोत्स्की बच्चे के विकास में समाज और संस्कृति की भूमिका पर जोर देते हैं। उनके अनुसार बच्चे के विकास के लिए तीन मुख्य जरूरतें होती हैं और ये हैं-
    • सामाजिक अन्तः क्रिया
    • संस्कृति
    • भाषा
  • जीन पियाजे ने विभिन्न आयु वर्ग के बच्चों में संज्ञानात्मक विकास का एक व्यवस्थित अध्ययन किया और इसे विभिन्न विकासात्मक अवस्थाओं में वर्गीकृत किया। जीन पियाजे ने कहा कि बच्चे सक्रिय रूप से विश्व की अपनी समझ का निर्माण करते हैं। उनका मानना ​​था कि एक बच्चे का मस्तिष्क शैशवावस्था से किशोरावस्था तक विचार के चरणों की एक श्रृंखला से गुजरता है।
  • जीन पियाजे ने प्रस्तावित किया कि मनुष्य चार विकासात्मक अवस्थाओं संवेदी-गामक, पूर्व संक्रियात्मक, मूर्त संक्रियात्मक, औपचारिक संक्रियात्मक के माध्यम से प्रगति करता है।
अवस्थाएं परिवर्तन
संवेदी-गामक अवस्था
  • इंद्रिय अंग शिक्षक हैं
  • प्रतिवर्त क्रिया
  • अंतरंग व्यवहार
पूर्व संक्रियात्मक अवस्था
  • भाषा विकास
  • अपरिवर्तनीयता
  • अहंकेंद्रिता
  • जीववाद
मूर्त संक्रियात्मक अवस्था
  • तर्क शुरू होता है
  • प्रतिवर्तिता
  • वर्गीकरण
  • संरक्षण
औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था
  • काल्पनिक-निगमनात्मक चिंतन
  • अपसारी/अभिसारी चिंतन
  • गहन चिंतन।
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