Question
Download Solution PDFसंस्कृतशिक्षणे प्रस्तावना, विषयोपस्थापनम्, तुलना, सामान्यीकरणम्, प्रयोगश्च कस्य विधेः सोपानानि सन्ति?
Answer (Detailed Solution Below)
Detailed Solution
Download Solution PDFप्रश्नानुवाद - संस्कृत शिक्षण में प्रस्तावना, विषयोपस्थापन, तुलना, सामान्यीकरण और प्रयोग किस विधि के सोपान हैं?
स्पष्टीकरण - संस्कृत शिक्षण हेतु विभिन्न शिक्षण विधियों का उपयोग किया जाता है। संस्कृत शिक्षण में प्रस्तावना, विषयोपस्थापन, तुलना, सामान्यीकरण और प्रयोग इन सभी सोपानों का उपयोग हरबर्टीय विधि में किया जाता है। ये सभी सोपान हरबर्टीय विधि के सोपान हैं। इन सोपानों का उपयोग मुख्यतया व्याकरण शिक्षण में किया जाता है।
Important Points
हरबर्टीय पञ्चपदी पद्धति/विधि - प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री एवं मनोवैज्ञानिक हरबर्ट स्पेंसर के सिद्धांतों के आधार पर उनके शिष्यों ने इस पद्धति को विकसित किया।
अन्य विषयों की भांति संस्कृत शिक्षण करते समय भी इसका उपयोग किया जाने लगा है। इसमें पाँच पदों द्वारा पाठ के शिक्षण का विधान किया गया हैं। इसलिए इसे पंचपदी विधि/पद्धति भी कहते हैं। इसका उपयोग व्याकरण शिक्षण में किया जाता है। इस विधि के पाँच सोपान इस प्रकार से हैं-
- प्रस्तावना - यह छात्रों के पूर्व ज्ञान से सम्बन्धित होती है। इसमें पढ़ाए जाने वाले पाठ को सम्बद्ध करने के लिए कुछ सरल प्रश्न पूछे जाते हैं। जो परस्पर सम्बन्धित होते हैं, यदि प्रस्तावना सफल रहती हैं, तब पाठ की सफलता के अवसर भी बढ़ जाते हैं
- प्रस्तुतिकरण (विषयोपस्थापन) - इस सोपान में उद्देश्य कथन के साथ विषय का प्रस्तुतिकरण किया जाता है। प्रत्येक विधा को पढ़ाते समय विषयोस्थापन अलग-अलग ढंग से किया जाना चाहिए। जिससे छात्र उस विषय को समझ सके।
- तुलना - जिन जिन स्थलों पर कठिनाई होती है, उन शब्दों एवं भावों को स्पष्ट करने के लिए दृश्य श्रव्य सामग्री का प्रयोग किया जाता हैं तथा तुलना करवाते हुए विषय को स्पष्ट किया जाता है।
- सामान्यीकरण - इस सोपान में पढ़े हुए पाठ के निष्कर्ष पर छात्र पहुँचने का प्रयास करते हैं। जैसे - व्याकरण शिक्षण में विभिन्न उदाहरणों का अध्ययन करने के बाद तत्सम्बन्धी नियम बताना। गद्य तथा पद्य शिक्षण में पाठ का सार शिक्षक द्वारा बताना तथा छात्रों से प्रश्नों द्वारा मुख्य भाव को जानना। समान भाव की कविता के आधार पर प्रश्न पूछना आदि।
- प्रयोग - पाठ को पढ़ने तुलनात्मक अध्ययन करने के बाद नवार्जित ज्ञान को व्यवहार में लाने की योग्यता छात्रों में उत्पन्न करना आवश्यक है। इस सोपान में संस्कृत भाषा के पाठों में छात्रों से अभ्यास कार्य करवाया जाता है। यह अभ्यास कार्य कक्षा कार्य तथा गृहकार्य के माध्यम से सम्पन्न होता है। इसका मुख्य उद्देश्य छात्रों द्वारा प्राप्त ज्ञान को प्रतिपुष्टि प्रदान करना है।
इस तरह स्पष्ट है कि उपरोक्त सभी हरबर्टीय विधि के सोपान हैं। (भण्डारकर विधि - व्याकरणानुवाद विधि है।)
Last updated on Jul 19, 2025
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