विद्यार्थियों में भाषा की रूचि का विकास करने का उपयुक्त उपाय क्या है?

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HTET TGT Mathematics and Science 2013 - 2014 Official Paper
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  1. विद्यार्थियों के व्याकरण के ज्ञान को बढ़ाना
  2. विद्यार्थियों को पाठ्यपुस्तकें पढ़वाना
  3. विद्यार्थियों को मौखिक रूप से अधिकाधिक समझाना
  4. उपर्युक्त सभी

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Option 3 : विद्यार्थियों को मौखिक रूप से अधिकाधिक समझाना
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विद्यार्थियों में भाषा की रूचि का विकास करने का उपयुक्त उपाय है कि उसे भाषा प्रयोग के अधिक से अधिक अवसर उपलब्ध हो और ऐसे वातावरण में बालक सक्रिय रूप से भाग ले। बालक की अभिव्यक्ति के विकास के लिए आवश्यक है बालको द्वारा भाषा कौशल के प्रयोग की क्षमता का विकास करना। विद्यार्थियों को मौखिक रूप से अधिकाधिक समझाने से तात्पर्य बालक के श्रवण कौशल या सुनना कौशल का विकास करना है।

भाषा रूची का विकास करने के बाद बच्चों को भाषा के चारों कौशलों को एकीकृत करके पढ़ाया जाता है।

Important Points

'सुनना' कौशल के महत्व:

  • सुनना, भाषा कौशल विकास का प्रथम और महत्वपूर्ण चरण है। सुनकर समझना ही ज्ञान का आधार बनता है।
  • श्रवण कौशल बच्चे को कथन से संबंधित उचित और सहज प्रतिक्रिया देने या निर्णय लेने योग्य बनाता है।
  • भाषा अनुकरण द्वारा सीखी जाती है। नये-नये शब्दों को सुनकर बालक अपने शब्द भण्डार मेंं वृद्धि करता है।
  • श्रवण कौशल बच्चे द्वारा प्रतिक्रिया देने के दौरान उनकी तर्किक क्षमता तथा चिंतन कौशल को भी सही दिशा देता है।
  • साहित्य की विभिन्न विधाओं का अध्ययन तथा इनकी व्याख्या को सुनकर ही उसकी विषय वस्तु को ग्रहण किया जा सकता है।
  • यह बच्चे को किसी कथन को सुनकर उस पर चिंतन मनन करने योग्य बनाता है। भाषा की नियमबद्ध व्यवस्था को समझने में 'सुनने' का विशेष महत्त्व है।

अतः निष्कर्ष निकलता है कि विद्यार्थियों में भाषा की रूचि का विकास करने का उपयुक्त उपाय विद्यार्थियों को मौखिक रूप से अधिकाधिक समझाना।

Hint 

  • व्याकरण का ज्ञान भाषागत शुद्धता के लिए आवश्यक है।
  • विद्यार्थियों के व्याकरण के ज्ञान को बढ़ाना अर्थात् बालक के भाषा प्रयोग में शुद्धता का विकास करना है।
  • व्याकरण का अकेले ज्ञान रूची का विकास नहीं करता बल्कि सीखने-सीखाने के वातावरण को नीरस बना देता है।
  • व्याकरण के ज्ञान को रूचीकर बनाने के लिए इसे अन्य पाठ्य सामग्री(गद्य, पद्य आदि) के साथ दिया जाता है।
  • विद्यार्थियों को पाठ्यपुस्तकें पढ़वाने से केवल पठन कौशल का विकास होता है।
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