कालविभाजन और नामकरण MCQ Quiz in বাংলা - Objective Question with Answer for कालविभाजन और नामकरण - বিনামূল্যে ডাউনলোড করুন [PDF]
Last updated on Mar 22, 2025
Latest कालविभाजन और नामकरण MCQ Objective Questions
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कालविभाजन और नामकरण Question 1:
गार्सा द तासी के इतिहास ग्रंथ 'द ला लितरेत्यूर ऐन्दुई ए ऐन्दुस्तानी' का दूसरा संस्करण कब प्रकाशित हुआ था ?
Answer (Detailed Solution Below)
कालविभाजन और नामकरण Question 1 Detailed Solution
- गार्सा द तासी के इतिहास ग्रन्थ का दूसरा संस्करण 1871 ई. में प्रकाशित हुआ।
- यह इतिहास ग्रन्थ दो भागों(पहला संस्करण :- 1839 ई. और 1847 ई. में प्रकाशित हुए।
- इसमें उर्दू और हिंदी के 738 कवियों का विवरण उनके अंग्रेज़ी वर्ण के क्रम से दिया गया था , केवल 72 कवि हिंदी से सम्बंधित थे।
- यह फ्रेंच भाषा में लिखा गया था।
- डॉ लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय ने इस ग्रन्थ में वर्णित हिंदी रचनाकारों सम्बन्धी सामग्री का हिंदी अनुवाद 'हिन्दुई साहित्य का इतिहास' शीर्षक से 1952 ई. में प्रकाशित कराया।
Key Points
Important Points
कालविभाजन और नामकरण Question 2:
'कबीर के 'निर्गुण पंथ' का आधार भारतीय वेदांत और 'सूफियों का प्रेम तत्व' है |' यह विचार किसका है?
Answer (Detailed Solution Below)
कालविभाजन और नामकरण Question 2 Detailed Solution
"कबीर के निर्गुण पंथ का आधार भारतीय वेदांत और सूफियों का प्रेमत्व है" उपर्युक्त कथन रामचंद्र शुक्ल जी का है। अतः उपर्युक्त विकल्पों में से रामचंद्र शुक्ल सही है तथा अन्य विकल्प असंगत हैं।Key Points
- कबीर दास
- कबीर या भगत कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे।
- वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन युग में ज्ञानाश्रयी-निर्गुण शाखा की काव्यधारा के प्रवर्तक थे।
- इनके पंथ का आधार भारतीय वेदांत और सूफियों का प्रेमत्व है।
- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (11 अक्टूबर, 1884ईस्वी- 2 फरवरी, 1941ईस्वी)
- हिन्दी आलोचक, निबन्धकार, साहित्येतिहासकार, कोशकार, अनुवादक, कथाकार और कवि थे।
- हिन्दी में पाठ आधारित वैज्ञानिक आलोचना का सूत्रपात उन्हीं के द्वारा हुआ।
- हिन्दी निबन्ध के क्षेत्र में भी शुक्ल जी का महत्त्वपूर्ण योगदान है।
- भाव, मनोविकार सम्बंधित मनोविश्लेषणात्मक निबन्ध उनके प्रमुख हस्ताक्षर हैं।
कालविभाजन और नामकरण Question 3:
'द माडर्न वर्नाक्युलर लिट्रेचर ऑफ़ हिन्दुस्तान' इतिहास ग्रंथ में क्या स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है?
Answer (Detailed Solution Below)
कालविभाजन और नामकरण Question 3 Detailed Solution
उपर्युक्त विकल्पों में से विकल्प "कवियों और लेखकों का कालक्रम अनुसार वर्गीकरण करते हुए उनकी प्रवृत्तियों का उल्लेख है।" सही है तथा अन्य विकल्प असंगत है।Key Points
- 'द माडर्न वर्नाक्युलर लिट्रेचर ऑफ़ हिन्दुस्तान' 1888 ई. में जॉर्ज ग्रियर्सन द्वारा लिखा गया हिंदी साहित्य के इतिहास की पुस्तक है।
- यह हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन का तीसरा प्रयास था।
- यह पुस्तक अंग्रेजी में लिखी गई थी।
- इसमें पहली बार हिंदी साहित्य के काल विभाजन का प्रयास किया गया था।
- इसमें हिंदी साहित्य के काल को दस अध्यायों में बाँटा गया था।
- ग्रियर्सन ने अपने ग्रंथ में 952 कवियों को शामिल किया है।
- हिंदी साहित्य के विकास क्रम का निर्धारण चारण काव्य धार्मिक काव्य, प्रेम काव्य, दरबारी काव्य के रूप में किया गया है।
- ग्रियर्सन ने इसे सच्चे अर्थों में हिंदी साहित्य का पहला इतिहास ग्रंथ माना है।
कालविभाजन और नामकरण Question 4:
हिन्दी का प्रथम व्याकरण लिखने वाला विद्वान है:-
Answer (Detailed Solution Below)
कालविभाजन और नामकरण Question 4 Detailed Solution
"हिंदी का प्रथम व्याकरण", "केटलर" ने लिखा है। अतः उपर्युक्त विकल्पों में से विकल्प (3) केटलर सही है तथा अन्य विकल्प असंगत हैं।Key Points
- केटलर ने पहला हिंदुस्तानी भाषा का व्याकरण ग्रंथ लिखा था।
- यह उन्होंने डच भाषा में लिखा था।
- जान जेशुआ केटलेर (1659-1718) डच भाषी केटलेर व्यापार के लिए सूरत शहर में आए।
- भारत आने के बाद इन्होंने हिन्दी सीखी तथा अपने देश के लोगों के लिए डच भाषा में हिन्दुस्तानी भाषा का व्याकरण लिखा।
- इस डच मूल की नकल इसाक फान दर हूफ नामक हॉलैण्डवासी ने सन् 1698 ईसवी में की।
- इसका अनुवाद दावीद मिल ने लैटिन भाषा में किया।
- हॉलैण्ड के लाइडन नगर से लैटिन भाषा में सन् 1743 ईस्वी में यह पुस्तक प्रकाशित हुई।
- इस प्रकाशित पुस्तक की एक प्रति कोलकता की नेशनल लाईब्रेरी में उपलब्ध है।
- इस व्याकरण का विवरण सर्वप्रथम डॉ॰ ग्रियर्सन ने प्रस्तुत किया ।
- इन्होंने शाह आलम बहादुर शाह तथा जहाँदरशाह से डच प्रतिनिधि के रूप में मान्यता प्राप्त की थी।
- आचार्य किशोरीदास वाजपेयी
- आचार्य किशोरीदास वाजपेयी (1898-1981) हिन्दी के साहित्यकार एवं सुप्रसिद्ध व्याकरणाचार्य थे।
- पंडित किशोरी दास वाजपेयी कृत "हिंदी शब्दानुशासन" भाषा विज्ञान से संबंधित हिंदी का व्याकरण है।
- पंडित कामता प्रसाद
- पंडित कामता प्रसाद गुरु को हिंदी व्याकरण का "पाणिनी" में कहा जाता है।
- ग्रियर्सन के कार्य
- पद्मावती का संपादन (1902) महामहोपाध्याय सुधाकर द्विवेदी की सहकारिता में
- बिहारीकृत सतसई (लल्लूलालकृत टीका सहित) का संपादन
- नोट्स ऑन तुलसीदास
- दि माडर्न वर्नाक्युलर लिटरेचर ऑव हिंदुस्तान (1889)
कालविभाजन और नामकरण Question 5:
किस विद्वान ने कहा था कि 'बुद्धदेव के बाद भारत में सबसे बड़े लोकनायक तुलसीदास थे'?
Answer (Detailed Solution Below)
कालविभाजन और नामकरण Question 5 Detailed Solution
- सही उत्तर विकल्प 2 है।
- ग्रियर्सन के अनुसार बुद्धदेव के बाद भारत में सबसे बड़े लोकनायक तुलसीदास थे।
- तुलसीदास - रामभक्ति शाखा के प्रतिनिधि कवि
- भक्तिभावना - दास्य भाव
- दर्शन - विशिष्टाद्वैत
- तुलसी की भक्ति-भावना लोकमंगल से प्रेरित है।
- रचनाएं -
- दोहावली
- कवितावली
- गीतावली
- रामचरित मानस
- रामाज्ञा प्रश्नावली
- विनय पत्रिका
- रामलला नवधू
- पार्वती मंगल
- बरवै रामायण आदि
- नाभादास के अनुसार - ‘कलिकाल का वाल्मीकि’
- स्मिथ के अनुसार - ‘मुगल काल का सबसे महान व्यक्ति’
- रामविलास शर्मा के अनुसार - जातीय कवि
- आ. शुक्ल के अनुसार - हिंदी काव्य की प्रौढता के युग का आरंभ
Key Points
Important Points
Additional Information
कालविभाजन और नामकरण Question 6:
'कबीर और तुलसी भाषा मे एक मिशन के तहत लिख रहे थे।' यह कथन किसका है ?
Answer (Detailed Solution Below)
कालविभाजन और नामकरण Question 6 Detailed Solution
- 'कबीर और तुलसी भाषा में एक मिशन की तहत लिख रहे थे यह कथन बच्चन सिंह का है।
- हिन्दी साहित्य में बच्चन सिंह की ख्याति सैद्धान्तिक लेखन के क्षेत्र में असंदिग्ध है।
- कबीर और तुलसी भक्तिकाल के प्रमुख कवि हैं।
- भाषा पर कबीर का ज़बरदस्त अधिकार था , वे वाणी के डिक्टेटर थे - हज़ारी प्रसाद द्विवेदी।
- शुक्ल जी ने रामभक्ति में भक्ति का पूर्ण स्वरूप माना है।
- तुलसीदास को हिंदी का जातीय कवि माना जाता है।
Key Points
Important Points
कालविभाजन और नामकरण Question 7:
हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग किसे माना जाता है?
Answer (Detailed Solution Below)
कालविभाजन और नामकरण Question 7 Detailed Solution
दिए गए विकल्पों में सही उत्तर विकल्प 2 ‘भक्तिकाल’ है। अन्य विकल्प त्रुटिपूर्ण उत्तर होंगे।
Key Points
- हिन्दी साहित्य का भक्ति काल 1375 वि0 से 1700 वि0 तक माना जाता है।
- इस काल को श्याम सुंदर दास ने स्वर्णयुग कह कर संबोधित किया है।
- यह काल प्रमुख रूप से भक्ति भावना से ओतप्रोत है।
- इस काल को समृद्ध बनाने वाली दो काव्य-धाराएं हैं - 1.निर्गुण भक्तिधारा तथा 2.सगुण भक्तिधारा।
- निर्गुण भक्तिधारा को आगे दो हिस्सों में बांटा गया है-
एक है संत काव्य जिसे ज्ञानाश्रयी शाखा के रूप में भी जाना जाता है, इस शाखा के प्रमुख कवि , कबीर, नानक, दादूदयाल, रैदास, मलूकदास, सुन्दरदास, धर्मदास आदि हैं।
निर्गुण भक्तिधारा का दूसरा हिस्सा सूफी काव्य का है
- भक्तिकाल की दूसरी धारा को सगुण भक्ति धारा कहा जाता है।
Additional Information
- आदिकाल- हिन्दी साहित्य के इतिहास में लगभग 8वीं शताब्दी से लेकर 14वीं शताब्दी के मध्य तक के काल को आदिकाल कहा जाता है।
- इस युग को यह नाम डॉ॰ हजारी प्रसाद द्विवेदी से मिला है।
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने 'वीरगाथा काल' तथा विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने इसे 'वीरकाल' नाम दिया है।
- रीतिकाल- रीति का अर्थ है बना बनाया रास्ता या बंधी-बंधाई परिपाटी। इस काल को रीतिकाल कहा गया क्योंकि इस काल में अधिकांश कवियों ने श्रृंगार वर्णन, अलंकार प्रयोग, छंद बद्धता आदि के बंधे रास्ते की ही कविता की। हालांकि घनानंद, बोधा, ठाकुर, गोबिंद सिंह जैसे रीति-मुक्त कवियों ने अपनी रचना के विषय मुक्त रखे। इस काल को रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध और रीतिमुक्त तीन भागों में बांटा गया है।
- आधुनिक काल- आधुनिक काल हिंदी साहित्य पिछली दो सदियों में विकास के अनेक पड़ावों से गुज़रा है। जिसमें गद्य तथा पद्य में अलग अलग विचार धाराओं का विकास हुआ। जहां काव्य में इसे छायावादी युग, प्रगतिवादी युग, प्रयोगवादी युग और यथार्थवादी युग इन चार नामों से जाना गया, वहीं गद्य में इसको, भारतेंदु युग, द्विवेदी युग, रामचंद शुक्ल व प्रेमचंद युग तथा अद्यतन युग का नाम दिया गया।
कालविभाजन और नामकरण Question 8:
आधुनिक काल का नामकरण आचार्य शुक्ल ने क्या किया?
Answer (Detailed Solution Below)
कालविभाजन और नामकरण Question 8 Detailed Solution
आचार्य शुक्ल ने आधुनिक काल का नाम गद्य काल रखा है। अतः उक्त विकल्पों में से विकल्प (2) गद्य काल सही है तथा अन्य विकल्प असंगत है।Key Points
- इसको हिंदी साहित्य का सर्वश्रेष्ठ युग माना जा सकता है, जिसमें पद्य के साथ-साथ गद्य, समालोचना, कहानी, नाटक व पत्रकारिता का भी विकास हुआ।
आधुनिक काल के प्रमुख रचनाकार निम्नलिखित हैं:-
समालोचक |
उपन्यासकार |
नाटककार |
निबंध लेखक |
आचार्य द्विवेदी जी |
प्रेमचंद |
प्रसाद |
आचार्य द्विवेदी |
पद्म सिंह शर्मा |
प्रतापनारायण मिश्र |
सेठ गोविंद दास, |
माधव प्रसाद शुक्ल |
विश्वनाथ प्रसाद मिश्र |
प्रसाद |
गोविंद वल्लभ पंत |
रामचंद्र शुक्ल |
आचार्य रामचंद्र शुक्ल |
उग्र |
लक्ष्मीनारायण मिश्र |
बाबू श्यामसुंदर दास |
डॉ रामकुमार वर्मा |
हृदयेश |
उदयशंकर भट्ट |
पद्म सिंह |
श्यामसुंदर दास |
जैनेंद्र |
रामकुमार वर्मा |
अध्यापक पूर्णसिंह |
डॉ रामरतन भटनागर |
भगवतीचरण वर्मा |
||
वृंदावन लाल वर्मा |
|||
गुरुदत्त |
- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (4 अक्टूबर, 1884ईस्वी- 2 फरवरी, 1941ईस्वी)
- हिन्दी आलोचक, निबन्धकार, साहित्येतिहासकार, कोशकार, अनुवादक, कथाकार और कवि थे।
- आलोचनात्मक ग्रंथ :
- सूर
- तुलसी
- जायसी पर की गई आलोचनाएं
- काव्य में रहस्यवाद
- काव्य में अभिव्यंजनावाद
- रसमीमांसा
कालविभाजन और नामकरण Question 9:
'केवल 'प्रेम लक्षणा भक्ति' का आधार ग्रहण करने के कारण कृष्ण भक्ति शाखा में अश्लील विलासिता की प्रवृत्ति जाग्रत हुई |' - यह विचार किसका है ?
Answer (Detailed Solution Below)
कालविभाजन और नामकरण Question 9 Detailed Solution
उपर्युक्त कथन रामचंद्र शुक्ल जी का है। अतः उपर्युक्त विकल्पों में से विकल्प रामचंद्र शुक्ल सही है तथा अन्य विकल्प असंगत हैं।Key Points
- केवल प्रेम लक्ष्णा भक्ति का आधार ग्रहण करने के कारण कृष्ण भक्ति शाखा में अश्लील विलासिता की प्रवृत्ति जागृत हुई यह कथन रामचंद्र शुक्ल जी ने कहा है।
- यह उन्होंने कृष्ण भक्ति शाखा में केवल प्रेम लक्ष्णा भक्ति को आधार बनाने के कारण आलोचनात्मक रूप में कहा है।
Important Points
- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (11 अक्टूबर, 1884ईस्वी- 2 फरवरी, 1941ईस्वी)
- हिन्दी आलोचक, निबन्धकार, साहित्येतिहासकार, कोशकार, अनुवादक, कथाकार और कवि थे।
- हिन्दी में पाठ आधारित वैज्ञानिक आलोचना का सूत्रपात उन्हीं के द्वारा हुआ।
- हिन्दी निबन्ध के क्षेत्र में भी शुक्ल जी का महत्त्वपूर्ण योगदान है।
- भाव, मनोविकार सम्बंधित मनोविश्लेषणात्मक निबन्ध उनके प्रमुख हस्ताक्षर हैं।
- ग्रियर्सन के कार्य
- पद्मावती का संपादन (1902) महामहोपाध्याय सुधाकर द्विवेदी की सहकारिता में
- बिहारीकृत सतसई (लल्लूलालकृत टीका सहित) का संपादन
- नोट्स ऑन तुलसीदास
- दि माडर्न वर्नाक्युलर लिटरेचर ऑव हिंदुस्तान (1889)
- मिश्रबंधु
- मिश्रबंधु नाम के तीन सहोदर भाई थे, गणेशबिहारी, श्यामबिहारी और शुकदेवबिहारी।
- प्रमुख रचनाएँ
- लवकुश चरित्र,
- हिंदी नवरत्न
- मिश्रबंधु विनोद(4 भाग):-गणेशबिहारी मिश्र द्वारा रचित हिन्दी साहित्य का इतिहास
- डॉ राम कुमार वर्मा
- इन्हें हिन्दी एकांकी का जनक माना जाता है।
- इन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन 1963 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
- इनके काव्य में 'रहस्यवाद' और 'छायावाद' की झलक है।
कालविभाजन और नामकरण Question 10:
'प्रत्येक देश का साहित्य वहाँ की जनता की चित्तवृत्ति का संचित प्रतिबिंब होता है' - किसका कथन है?
Answer (Detailed Solution Below)
कालविभाजन और नामकरण Question 10 Detailed Solution
उपर्युक्त विकल्पों में से विकल्प "आचार्य रामचंद्र शुक्ल" सही है तथा अन्य विकल्प असंगत है।Key Points
- रामंचद्र शुक्ल ने 'साहित्य का इतिहास' की परिभाषा इस प्रकार की है -“प्रत्येक देश का साहित्य वहाँ की जनता की चित्तवृत्ति का संचित प्रतिबिंब होता है, तब यह निश्चित है कि जनता की चित्तवृत्ति के परिवर्तन के साथ-साथ साहित्य के स्वरूप में भी परिवर्तन होता चला जाता है।'
- हिन्दी में पाठ आधारित वैज्ञानिक आलोचना का सूत्रपात शुक्ल जी के द्वारा हुआ।
- हिन्दी निबन्ध के क्षेत्र में भी शुक्ल जी का महत्त्वपूर्ण योगदान है।
- भाव, मनोविकार सम्बंधित मनोविश्लेषणात्मक निबन्ध उनके प्रमुख हस्ताक्षर हैं।
- हजारी प्रसाद द्विवेदी
- साहित्य मनुष्य के अंतर का उच्छलित आनंद है जो उसके अंतर में अटाए नहीं अट सकता है। साहित्य का मूल यही आनंद का अतिरेक है। उच्छलित आनंद के अतिरिक्त से उद्भुत सृष्टि ही सच्चा साहित्य है।
- नलिन विलोचन शर्मा
- नलिन विलोचन शर्मा के अनुसार साहित्येतिहास में वस्तु-विवरण न्यूनतम साहित्यिक इतिहास होता है।
- वास्तव में साहित्य किसी न किसी विधा में लिखा जाता है, और विधाएँ भी विकासमान होती हैं, इसलिए साहित्य को पढ़ने और समझने के लिए विधाओं में आनेवाले परिवर्तनों और नई विधाओं के आविष्कार को समझना निहायत जरूरी है।
Confusion Points
- आचार्य विश्वनाथ
- यह संस्कृत के आचार्य हैं।
- साहित्य दर्पण में उनका सूत्र वाक्य रसात्मकं वाक्यं काव्यम् आज भी साहित्य का मूल माना जाता है और बार बार उद्धृत किया जाता है।
- साहित्य दर्पण और काव्य प्रकाश की टीका के अतिरिक्त विश्वनाथ द्वारा अनेक काव्यों की भी रचना भी की गई है जिनका पता साहित्य दर्पण और काव्यप्रकाश दर्पण से लगता है।
- यह रस को काव्य की आत्मा मानते हैं।